शीर्षासन
हठ योग का प्रमुख आसन है शीर्षासन। देखने में बहुत आसान है, किंतु है नहीं। सच पूछिए तो हठयोग शरीर को कठोर बनाने वाला योग है। हठयोग के योगासन दर्शक को तो चमत्कृत करते ही हैं सहज योगियों को भी प्रलोभित करते हैं। यही कारण है की अनेक हठयोगीय आसन सहजयोगीय आसनों के साथ स्वीकार कर लिए गए हैं। उनमें से प्रमुख है शीर्षासन।
कभी आपने उदरासन, वक्षासन, पृष्ठासन
अथवा हस्तासन का नाम सुना क्या? नहीं न? फिर शीर्षासन ही क्यों? जी हां आपने सही सुना, सिर के बल उल्टा खड़े हो जाने मात्र से शीर्षासन संपन्न नहीं हो सकता। अध्यात्म की तरह बहुत ही गंभीर और गूढ़ आसन है यह। शीर्षासन नहीं इसे जड़ासन कहना उचित रहेगा। इस आसन का सबसे बड़ा योगी है वृक्ष। सर मिट्टी में गाड़, मन को जड़ बनाकर जीवन पर्यंत एक स्थान पर खड़ा वृक्ष ही इस आसन का प्रतीक है।
जब हम सीधा खड़ा होकर वृक्षासन करते हैं तो उसके वाह्य वैभव को अपने भीतर आवाहित करते हैं। किंतु जब हम सिर के बल खड़ा होकर वृक्षासन करते हैं तो उसकी अंतर चेतना, उसके जड़त्व को अपने भीतर आवाहित करते हैं।
मन पर विजय, अवसाद से मुक्ति और जगत को समर्पित लंबा जीवन चाहिए तो शीर्षासन अर्थात जड़ासन सर्वोत्तम है।
वृक्ष की सबसे बड़ी शक्ति उसका सहज समाधिस्थ होना है। जब मन विचलित हो, सुस्त हो जाए, अनिर्णय की स्थिति हो, याददाश्त में कमी आ रही हो अथवा चिंताओं का पहाड़ सर पर टूट पड़े तो कुछ देर शीर्षासन कर लेना अत्यंत लाभदायक होगा।
अकेले अथवा किसी के सहयोग से या किसी दीवाल के सहारे सर के बल खड़ा होकर शांति चित्र भाव से वृक्ष के जड़त्व को अपने भीतर प्रवाहित होते हुए महसूस कीजिए।
अत्यंत उच्च रक्तचाप एवं सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस से पीड़ित व्यक्ति इस आसन को करने से बचें।
यह आसन होम्योपैथिक औषधियों इग्नेशिया, एनाकार्डियम ओरियंटेलिस, जेलसिमिय., ओपियम , बेराईटा कार्ब,
पिक्रिक एसिड इत्यादि की कार्य क्षमता को बढ़ा सकता है।
(दवा के साथ योग का निर्णय होमियोपैथिक चिकित्सक को करना चाहिए)
(अपनी पुस्तक 'समग्र योग सिद्धांत एवं होम्योपैथिक दृष्टिकोण' से)
डॉ एम डी सिंह
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