मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

मैं गाजीपुर हूं- नीरज सिंह अजेय हिन्दी साहित्यकार


मैं_गाजीपुर_हूं

 गाजीपुर की भी कुछ सुनिए

"हटो व्योम के मेघ स्वर्ग लूटने हम आते हैं
गौरव बलिदानी गाजीपुर तेरी कीर्ति गाते हैं"

'सुनो तुम कब जानोगे कि मेरा हाल कैसा है
अभी मेरे कांधे से सारी दुनिया देखते हों |'

भागीरथी की धारा और गोमती की लहरों के साथ लिपटे हुए श्वेत व चमकते रेत भण्डारों की भांति मैं कभी जल की धार में बहता रहा और कभी पवन की प्रबल वेग में पूरे पूर्वांचल की मिट्टी में अपने और तुमको भी चमकाता रहा हूं।
तुम तो अभी भी बच्चे हो क्योंकि वैदिक युग से लेकर वर्तमान कलयुग तक न जाने कितनी पीढ़ियों का पालन और विसर्जन करना पड़ा है मुझे ... ...
राजा गधि व उनके पुत्र महर्षि जगदमिनी की वैभव गरिमा के कारण ही कालांतर में मैं गाजीपुर बना, जब तुम आत्मा के स्वरूप में किसी अन्य नश्वर शरीर में विराजमान थे उस वैदिक युग में भी मैं इस पावन भारत भूमि का प्रमुख घनघोर वन और इस ऋषियों मुनियों की तपस्थली रहा। तुम मेरे बारे में रामायण काल मैं भी उल्लेख देखोगे |
मेरी गोद में महर्षि यमदग्नी जो कि महाश्री परशुराम के पिता थे, पले और बढ़े थे। प्रसिद्ध ऋषियों गौतम और च्यवन ने मेरी ही पावन मिट्टी में प्राचीन काल में शिक्षण और धर्मोपदेश दिए ...
भगवान बुद्ध, जिन्होंने वाराणसी में सारनाथ में पहला धर्मोपदेश दिया था, के ज्ञान प्रसार केंद्र के रूप में मेरा अंश औहरहार (औड़िहार) शिक्षा का मुख्य केंद्र बनकर उभरा। मेरे कई स्तूपों और खंभे उस अवधि की गौरव गाथा को समेटे हुए है तुमने जाकर उसे देखा कभी पढ़ा, तुमने कभी उन पर अपनी उंगलियों को घुमाया और कुछ महसूस किया ... ...
मेरी पावन धरा पर ऋषि मुनि संग देवर्षि को भी आना पड़ा है, ऐसा लगता था कि इनके आगमन से मेरे रजो भूमि की दूर्वा से लेकर इमली वटवृक्ष तक हर्षित हो गये। देवर्षि विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण के साथ गाजीपुर के ददरीघाट पर ही ताड़का वध के समय जाते हुए पार किया था, ऐसी मान्यता वहां के लोगो की है । तुम्हारा ताड़ी घाट ताड़का राक्षसी का अपभ्रंश है जो ताड़का के अधिकार क्षेत्र में ही आता था । राक्षस संस्कृति का विस्तार के लिये गङ्गा नदी के दक्षिणी किनारे तक के भूभाग पर राक्षसों ने बलात अधिकार कर लिया था। देवर्षि विश्वामित्र का आगमन राक्षस संस्कृति के विस्तार को रोकने का हेतु बना। रघुनंदन श्रीराम और लक्ष्मण भी शिक्षा कौशल में पारंगत होने निमित्त विश्वामित्र संग हमारी वसुंधरा पर आये है।
चीनी यात्री ह्यूएन त्संग भी आया था मेरे गांव और शहर में और मुझे चंचू “युद्ध क्षेत्र की भूमि” के रूप में उल्लेख किया खैर अच्छा ही किया क्योंकि मैं शांति और युद्ध दोनों में शामिल रहता हूं ...
मैंने कभी धर्म के आधार पर भेदभाव करना नहीं सीखा, मुगल काल में भी मेरा शानदार इतिहास नासाज फरमाया गया |
कुछ नामचीन कलमकारों व इतिहास नविशों यह भी लिखा है कि मेरा नाम 'गाजीपुर' शैयद मसूद गाजी के नाम पर पड़ा,
मेरे लख्ते जिगर इस्तकेबल कहते हैं कि हिंदू-मुस्लिम एकता के हमराह शैयद मस्सद गाजी ने 1330 ईस्वी में शहर बसाया तो कुछ ने कहा कि मैं उस्ताद गाजी मशूक द्वारा स्थापित हूं खैर जो भी हो मैं सदियों पहले भी था और आज भी हूं और कल भी रहूंगा ...
मुझे लहुरी काशी यानि काशी की बहन भी बोला जाता है शायद काशी की तरह हर ओ नाम जो मेरे घर में विद्यमान है लेकिन मुझे काशी की तरह सम्मान नहीं मिला। गंगा नदी मेरे आंगन से होकर बहती है गंगा सिधौना क्षेत्र से गोमती नदी का संगम करते हुए मेरे घर में प्रवेश करती है मेरे यहां भी काशी के घाटों की तरह ही कई गंगाघाट है जिनमें ददरी घाट, कलेक्टर घाट, स्ट्रीमर घाट, चितनाथ घाट, महावीर घाट सैदपुर, बाराह घाट औड़िहार तथा श्मशान घाट आदि है।
                मेरे घर में आस्था का द्वार है मौनी बाबा धाम चौचकपुर मेला और स्नान के लिए, पवहारी बाबा आश्रम जहां स्वामी विवेकानंद जी ने दीक्षा लिया, गंगा दास आश्रम जहां स्व. मुलायम सिंह यादव और योगी जी ने भी दर्शन प्राप्त किया।
                                           सिद्धपीठ हथियाराम मठ जहां लकवा के मरीजों का जादुई शीशे के द्वारा इलाज होता रहा है। निर्गुण पंथ (बावरी) की धरोहर सिद्धपीठ भुड़कुड़ा मठ जहां लोग आज भी झूठी कसम खाने से डरते हैं। यहां गिरती हुई दीवार का गुरु के आदेश पर रुक जाना, चलती हुई ट्रेन का खड़ा हो जाना, हरवाहे बुलाकी दास (बुला साहेब) लिए भगवान द्वारा दही भेजना।
 चौमुख धाम आश्रम, कीनाराम आश्रम, नागा बाबा आश्रम, बिछुड़ननाथ, बुढ़े महादेव, सांई तकिया आश्रम, चंडी धाम, नवाजू बाबा धाम पशुओं के रोग मुक्ति के लिए मसान धाम आश्रम, मतंग ऋषि की तपोभूमि संगत घाट, सैदपुर भीतरी के स्थान को हूणों के युद्ध के लिए जाना जाता है।
           मेरे आंगन में कितने ही ऐसे सपूतों ने किलकारी भरी है कि मन गर्वित हो जाता है जिसके लिए मुझे पूरा देश याद करता है। मेरे सपूतों में स्वामी सहजानंद सरस्वती, मोहम्मद अयूब खान,शहीद वीर अब्दुल हमीद, शहीद राम उग्रह पाण्डेय, नजीर हुसैन  (भोजपुरी के प्रणेता), राही मासूम रजा, विवेकी राय, भोलानाथ गहमरी, विश्वनाथ सिंह गहमरी आदि ऐसे अनेक सपूत हुए।
दुश्मनों से देश की रक्षा के लिए 1962, 1965, 1971,  1999 के युद्ध में मेरे सपूतों ने अदम्य साहस का प्रदर्शन किया।
     एशिया का सबसे बड़ा गांव गहमर मेरे पास है। ऐतिहासिक अशोक स्तूप जमानियां,  स्कंद गुप्त के समय के सैदपुर भितरी में पुरातात्विक अवशेष जो मेरे लिए विशेष होने के अनकहे प्रमाण है 
18 वीं शताब्दी में में फिरंगियों ने आर्यावर्त की इस पावन भूमि को जंजीरों में जकड़ लिया और मुझे भी बक्सर के साथ जीत लिया जिस पर उनकी ईस्ट इंडिया कंपनी की हुकूमत थी,  कंपनी ने रिचर्डसन को एक न्यायाधीश के रूप में भेजा और  रॉबर्ट वॉर्लो को इस जिले के पहला कलेक्टर बनाया | लार्ड कार्नवालिस का मकबरा तो तुमने देखा ही होगा नहीं देखा तो पहले मेरे पूरे शहर और गांव के प्रमुख स्थलों को देख कर आओ फिर बताओ मैं कैसा हूं ... ...
मेरी उर्वरता जगजाहिर रही है; मेरी पोषक मिट्टी में नील, अफीम, केवड़ा, गेंदा गुलाब की खेती दशकों तक मेरे कृषकों की आजिविका का मुख्य साधन बना रहा फिर अंग्रेजों ने भी नील, अफीम, केवड़ा और गुलाब की खेती के लिए मुझे उपयोग किया मैंने भी उनके लिए ना सही पर अपने किसानों और अपनी मिट्टी के लिए इसको स्वीकार कर लिया। उन्होंने मुझ में अफ़ीम फैक्टरी स्थापित कर दिया यह वही अफीम फैक्ट्री है जिसे तुम आज भी मेरे शहर में देखते हो  अब तो मैं भारत सरकार को भी सरकारी राजस्व मुहैया करा रहा हूं |
पहले मेरा अफीम ब्रिटिश शासन के दौरान बंगाल की खाड़ी के माध्यम से नौकाओं पर चीन के लिए भेजा जाता था ...
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में मेरे राष्ट्र प्रेमी पुत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। फिरंगियों के शासन में 1942 में रोलेक्ट अधिनियम, ख़िलाफत आंदोलन, नमक सत्याग्रह, विदेश बैरिस्टर के बहिष्कार सत्याग्रह और आंदोलन में देश के अन्य हिस्सों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर और अपने गौरव से निडर होकर भाग लिया।  मेरे बेशकीमती लालों डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी, भागवत मिश्रा, गजानन मारवाड़ी, विश्वनाथ शर्मा, हरि प्रसाद सिंह, राममरात सिंह, रामराज सिंह, इंद्रदेव त्रिपाठी, देवकरण सिंह, सरजू पाण्डेय और अन्य पुत्रों जिनका नाम अभी भूल रहा हूं अरे ! आज भी मैं किशोरों सा साहसी और कर्मवीर बना रहा हूं इन्होंने अपने अदम्य साहस से कीर्तिमान स्थापित किया | मेरे लोगों ने क्विट इंडिया आंदोलन में अभूतपूर्व भूमिका निभाई ...
    मेरे कुलदीपक डॉ. शिवपुजन राय के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों के जत्थे ने मेरे दिल के टुकड़े मुहम्मददाबाद तहसील में ध्वज पताका फहराया। डॉ. शिवपुजन राय, वननारायण राय, रामबदन राय आदि ने तो 18 अगस्त 1942 को देश के लिए अपना जीवन भी बलिदान कर दिया, मैं आज भी इनके लिए अभिमान का भान लिए हुए आंखों से गर्म लाल लाल आंसू गिराता हूं तुम उन बूंदों को अपनी आंखों में ढूंढना फिर तुम्हें मेरे ऊपर गर्व होने लगेगा ...
                       आजादी के बाद, मेरा विकास पिछड़ गया मेरे अपनों ने मेरी मिट्टी के कर्ज को चुकाने में कुछ लापरवाही कर दी इसलिए मैं विकसित नहीं हो सका। आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक और सामाजिक समृद्धि के बाद भी मैं पिछली कतार में क्यों हूं ...
 खैर जो भी हो तुम मेरे इस सपने को पूरा करोगे ना और मुझे पूरे भारत देश का सर्वोत्तम जिला बनाओगे ना ...
मेरी मिट्टी के बहादुर सैनिकों जैसे ब्रिगेडियर उस्मान, परमवीर चक्र पुरस्कार विजेता वीर अब्दुल हमीद, महावीर चक्र विजेता राम उग्रह पाण्डेय ने भी तो अखंड आर्यावर्त को सुरक्षित रखने के लिए अपनी कुर्बानी दे दी अभी तुमने देखा होगा कारगिल की विजयश्री में मेरे लालों ने उल्लेखनीय बहादुरी दिखायी और राष्ट्र के लिए स्वयं को शहीद कर दिया |
कभी बादशाह हिमायूं भी मेरे भिश्ती की मदद से व संत तपस्थली भुड़कुड़ा के परम संत गुरूजी के आशीर्वाद से खुद का जीवन बचाने में सफल रहा था |
मंदिरों, मस्जिदों, गुरूद्वारों व चर्चों के माध्यम से आज भी मेरे लोग धार्मिक सद्भाव के साथ मानवता का प्रसार कर रहे हैं ...
मेरी धरती ने देश को कई अच्छे नेता भी दिए हैं पर मुझे किसी पार्टी विशेष से मत जकड़ो पर मेरे कुल गौरव विकास पुरुष ने पिछले कुछ सालों में मेरे विकसित होने की सपने को पंख लगा दिया है ...
मैं आज भी राष्ट्रहित में प्रयत्नशील हूं पर यह मेरा खुद का प्रयास नहीं है मैं तो बस एक भारत भूमि का राष्ट्रप्रेमी टुकड़ा हूं ... ...
 मैं तो केवल एक प्रतिबिंब हूं , हां मैं केवल तुम्हारा दर्पण हूं तुम यदि अपने कर्तव्य और मानवता से अपने मुख्य मंडल को चमकाते रहोगे तो मैं सदा खिलखिलता रहूंगा ...
बस कुछ सपने अधूरे हैं की मेरे शहर में भी एक विश्वविद्यालय खुल जाए और मेरा अंधऊ हवाई पट्टी शुरू होकर हवाई अड्डा बने और उस पर से भी वायुदूत गुजरे, मेरे छोटे बाजारों और गांव की सड़कें जगह जगह खराब हो गई हैं तुम उस पर चलते हो तो मेरे बदन में भी दर्द होता है पर पता नहीं कब यह सपना पूरा होगा कभी-कभी सपना देखता हूं कि मेरे मिट्टी में भी कुछ कल कारखाने लगे हैं और मेरे लोग यहीं पर अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं। आध्यात्मिक ऐतिहासिक राजनीतिक और सामाजिक समृद्धि के बाद भी मैं पिछली कतार में क्यों हूं ... ... ...
बाकी फिर कभी

✍️ नीरज सिंह 'अजेय' 
नीरज सिंह 'अजेय'  'हिन्दी साहित्यकार' 
यदि लिखने में कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा करिएगा यह बस एक प्रयास है आप लोगों को अपने गाजीपुर जिले के गौरव गाथा से रूबरू कराने का |
यदि यह प्रयास अच्छा लगे तुम मेरे इस पेज को लाइक और फॉलो अवश्य करें नीरज सिंह 'अजेय'  'हिन्दी साहित्यकार' |




रविवार, 23 अप्रैल 2023

मैं जखनियां गाजीपुर हूं- नीरज सिंह अजेय हिन्दी साहित्यकार

मैं जखनियां हूँ

हजारों सालों से मैं निरंतर आबाद रहा यह और बात है कि पहले मैं एक छोटा सा गांव था समय की धार के साथ बढ़ते बढ़ते मैं एक छोटी बाजार बना फिर लोगों की जरूरत ने मुझे मशहुर कर दिया |
पहले तो केवल घनश्याम की मिठाई की दुकान, कन्हैया के कपड़े की दुकान थीं हा मुन्ना बरई की पान की दुकान पर भी भीड़ लगतीं थी |
मैंने सन 69 में ट्रेन का नदी में गिरना भी देखा है |
हां मैं वही जखनियाँ हूं जिसमें आज से 50 साल पहले एक बुढ़िया जलेबी बनाती थी पहले मेरे पास आने के लिए सड़क नहीं थी, चारों तरफ से रेह ही रेह थी भला हो बच्चा बाबू रामसिंहपुर का की उन्होंने मुझे अपने जमीन में फलने फूलने दिया |

मैं सालों से लोगों को देखता चला रहा हूं मैंने लोगों को मरते देखा है मैंने बच्चों को जन्म लेते देखा है हां मैंने देखा है कि कैसे कुछ अपराधी मेरी धरती को खुन से लाल कर दिए थे पर तभी मुझे अपने वीर शहीद बेटों अब्दुल हमीद और रामउग्रह पाण्डेय का शौर्य और वीरता अभिमानित कर देती है तभी मुझे याद आता है बुढ़िया माई हथियाराम और संत समाधि स्थल भुड़कुड़ा मेरे अभिमान हैं खटिया बाबा, मौनी बाबा, लकड़ियाँ बाबा का आशीर्वाद मुझे हमेशा मिला |

कभी मोती सेठ और जगरनाथ साव ने मेरे बाजार को मशहूर किया, तो कभी हाकिम प्रधान मंदरा ने |

मेरे स्टेशन ने छोटी लाइन से लेकर बड़ी लाइन तक का सफर देखा है |
बच्चों से तो मुझे हमेशा प्यार रहा है ना जाने कितने बच्चे मेरे स्टेशन और बाजार में खेलकूद के बड़े हुए हैं |

मेरी पहचान तहसील बनने से और बढ़ गई उस दिन मैं बहुत खुश हुआ था पर एक बात का दुख भी था कि मेरे विधायकों ने मेरे लिए कभी कुछ नहीं किया, इनके लिए तो मैं बस एक दुधारू गाय🐄 ही बनीं रहीं |

मेरे अस्पताल पर जब डाक्टर मिश्रा आये तब लोगों का आना जाना और बढ़ गया |
शुरू शुरू में तो मेरे बाजार में चालीस पचास ही दुकानें थीं पर समय के साथ आज हजारों दुकानदार मेरी गोद में पल रहे हैं |

मैं अपनी सड़कों को देखता हूँ तो निराश हो जाता हूँ कि क्या ऐसा कोई मेरा लाल नहीं है कि जो मेरी सड़कों को सही से बनवा सकें |
एक समय जयकिशुन सिंह प्रमुख जी से उम्मीदें जगी थी पर बाद में किसी ने सड़कों की सुध नहीं ली |

डा. इन्द्रदेव सिंह ने मेरे क्षेत्र में शिक्षा का अच्छा प्रसार किया | कपिलदेव गुरुजी मंदरा ने भी मेरे मान सम्मान को बढ़ाने का प्रयास किया | मैने मुहनोचवा से लेकर कोरोना तक देखा है |
मेरे बाजार में सब कुछ मिलता है और मिलता है लोगों का प्रेम... ...
फोटो बहुत पुरानी है।

📝 नीरज सिंह
स्वलिखित रचना, अपने जखनियां बाजार को समर्पित करता हूँ |


बुधवार, 12 अप्रैल 2023

कंद-मूल खाने वालों से मांसाहारी डरते थे- शाकाहार अपनाओ

कंद-मूल खाने वालों से
मांसाहारी डरते थे।।

पोरस जैसे शूर-वीर को
नमन 'सिकंदर' करते थे॥

चौदह वर्षों तक खूंखारी
वन में जिसका धाम था।।

मन-मन्दिर में बसने वाला
शाकाहारी राम था।।

चाहते तो खा सकते थे वो
मांस पशु के ढेरो में।।

लेकिन उनको प्यार मिला
शबरी' के जूठे बेरो में॥

चक्र सुदर्शन धारी थे
गोवर्धन पर भारी थे॥

मुरली से वश करने वाले
गिरधर' शाकाहारी थे॥

पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम
चोटी पर फहराया था।।

निर्धन की कुटिया में जाकर
जिसने मान बढाया था॥

सपने जिसने देखे थे
मानवता के विस्तार के।।

नानक जैसे महा-संत थे
वाचक शाकाहार के॥

उठो जरा तुम पढ़ कर देखो
गौरवमय इतिहास को।।

आदम से आदी तक फैले
इस नीले आकाश को॥

दया की आँखे खोल देख लो
पशु के करुण क्रंदन को।।

इंसानों का जिस्म बना है
शाकाहारी भोजन को॥

अंग लाश के खा जाए
क्या फ़िर भी वो इंसान है?

पेट तुम्हारा मुर्दाघर है
या कोई कब्रिस्तान है?

आँखे कितना रोती हैं जब
उंगली अपनी जलती है

सोचो उस तड़पन की हद
जब जिस्म पे आरी चलती है॥

बेबसता तुम पशु की देखो
बचने के आसार नही।।

जीते जी तन काटा जाए
उस पीडा का पार नही॥

खाने से पहले बिरयानी
चीख जीव की सुन लेते।।

करुणा के वश होकर तुम भी
गिरी गिरनार को चुन लेते॥

शाकाहार अपनाओ...!


मंगलवार, 11 अप्रैल 2023

परमहंस श्री गंगा राम दास जी महाराज जी- लेखक श्री माधव कृष्ण।।

मेरे गुरुदेव की पुण्यतिथि पर

परमहंस श्री गंगा राम दास जी महाराज जी की आज २१वीं पुण्यतिथि हैl (वैशाख कृष्ण पंचमी दिनांक 11l04l23)l श्री महाराज जी श्री गंगा आश्रम बयेपुर देवकली, गाजीपुर के अधिष्ठाता और मानव धर्म प्रसार के प्रवर्तक युग पुरुष संत हैंl उनका जन्म उत्तर प्रदेश में ग़ाज़ीपुर जिला के ग्राम गुरैनी ( थाना शादियाबाद ) में 1 अगस्त 1920 ( श्रावण कृष्ण प्रतिपदा विक्रम संवत 1977 ) को एक संभ्रात कृषक परिवार में हुआ था। उनकी माता जी का नाम श्रीमती गुजरी देवी तथा पिता जी का नाम श्री ठकुरी यादव था।

बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा और शक्ति के धनी श्री महाराज जी बचपन से ही विरक्त थेl मात्र कक्षा 4 तक पढ़ने के बाद 12 वर्ष की अवस्था में उन्होंने सांसारिक बन्धनों से स्वयं को मुक्त करते हुए तपस्वियों की राह पकड़ीl संत श्री रामानन्द की गौरवशाली शिष्य परम्परा के संत परमहंस बाबा राममंगल दास जी ने उन्हें शिष्य के रूप में स्वीकार करते हुए दीक्षित कियाl श्री महाराज जी २५ वर्षों तक भारतीय आध्यात्मिक परम्परा के प्राचीन ऋषियों की भांति कानपुर के जंगलों में यमुनानदी के किनारे आत्म-साक्षात्कार के लिए तपस्यारत रहेl

जिन लोगों ने भारतीय समाज और अध्यात्म को सामंतवादी, जातिवादी, ब्राह्मणवादी इत्यादि सिद्ध कर नीचा दिखाने का प्रयास किया है, उनके लिए यह सोचना उनकी पाचनशक्ति की सामर्थ्य के बाहर है कि, "बाबा गंगाराम दास एक यादव कुल में उत्पन्न हुए थे, उनके गुरु एक ब्राह्मण कुल में उत्पन्न थे, लेकिन उनके गुरु ने केवल पात्रता देखी." और यही तो भारतीय आध्यात्मिक परम्परा चीख-चीख कर कह रही है - जात पात पूछे नहिं कोई/ हरि को भजे सो हरि का होई.

मेरे गुरुदेव ने न जाति देखी, और न धर्म. किसी का मनुष्य होना ही उनके लिए सब कुछ था. इसलिए आज भी आश्रम में सभी के लिए एक ही व्यवस्था है. उनके पास माननीय मुलायम सिंह यादव पहुंचे थे, उनसे भी गुरुदेव का यही प्रश्न था कि, घर घर में लगी आग कौन बुझाएगा? रक्षामंत्री ने उत्तर दिया, सपा बुझायेगी. लेकिन श्री महाराज जी संतुष्ट नहीं हुए. मुरारी बापू से गुरुदेव ने कहा, आप अंतर्राष्ट्रीय संत हैं, लोगों को मनुष्य बनाइए. बापू जी ने कहा, यह आप जैसे उछ कोटि के परमहंस की सामर्थ्य से ही हो सकता है.

आत्म साक्षात्कार और ईश्वर-प्राप्ति के बाद उन्होंने ईश्वर के आदेश से मानवता का प्रसार करने के लिए गाजीपुर के बयेपुर देवकली को अपना कर्म-क्षेत्र बनायाl उनके द्वारा स्थापित तप:स्थली श्री गंगा आश्रम आज गाजीपुर के दिव्यतम स्थान के रूप में प्रसिद्ध होती जा रही हैl वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत पूर्व रक्षा मंत्री स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव, प्रख्यात कथावाचक मुरारी बापू इत्यादि इस आश्रम ने आकर श्री महाराज जी का आशीर्वाद प्राप्त कर चुके हैंl यहाँ श्री राम-जानकी मंदिर, गुरु श्री राममंगल दास जी का मंदिर, यज्ञशाला और पूज्य महाराज जी गंगा राम दास बाबा का समाधि स्थल है, जो निःसंदेह दर्शनीय है। श्री महाराज जी से सम्बन्धित वस्तुओं दिव्य संग्रहालय भी है। यहाँ आश्रम की भावधारा से सम्बंधित पुस्तकें भी मिलती हैं जो अब आई आई टी कानपुर द्वारा भारतीय ग्रंथों के साथ शोध के लिए ऑनलाइन उपलब्ध हैं: https://wwwlrammangaldasjiliitklaclin/l श्री महाराज जी का नीति ग्रन्थ श्री रामचरितमानस हैl

श्री महाराज जी ने पुरातन ऋषियों की भांति धर्म और अध्यात्म को सामाजिक सरोकार से जोड़ाl श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार मनुष्य का कर्म ही परमात्मा की अर्चना हैl श्रीमहाराज जी ने अपने जीवन काल में ही मानव धर्म प्रसार के माध्यम से मनुष्य को मनुष्य बनने पर बल दिया जिससे जातिवाद, साम्प्रदायिक संकीर्णताओं को समाज से दूर किया जा सकेl उनके अनुसार मनुष्यता की तीन कसौटियां हैं – सत्य-न्याय-धर्मl स्थानीय पंचायत के माध्यम से न्याय व्यवस्था को लागू करने के लिए उन्होंने गाँव गाँव में शाखाएं स्थापित कींl आज भी गाजीपुर, फरीदाबाद, कोलकाता, वाराणसी, गोरखपुर, कानपुर लखनऊ, बांदा, मुम्बई, कच्छ इत्यादि शहरों में उनके शिष्य २०० से अधिक शाखाएं संचालित कर रहे हैंl इन शाखाओं की साप्ताहिक बैठक होती है, जिसमें एकत्र भक्त संगठित रहकर अन्याय का सामना करते हैंl गाजीपुर में अनेक शाखाओं के माध्यम से सालों तक चल रहे बैर को आपसी समझ और गाँव वालों की सहभागिता से समाप्त करने का प्रयास किया गया हैl श्री महाराज जी ने अपने जीवनकाल में एक गाँव को गोद लेकर उसे मुकदमाविहीन बनाकर सभी को ऐसा करने का सन्देश दियाl

आश्रम के साधु श्वेत भारतीय परिधान धारण करते हैंl उनके जीवन में सेवा और भजन मुख्य हैंl आज भी आश्रम जाने पर वे प्रत्येक व्यक्ति से समयानुकूल जलपान और भोजन का आग्रह करते हैंl आश्रम में प्रत्येक दिन सैकड़ों असहाय व्यक्ति भोजन पाते हैंl मानव धर्म प्रसार के उद्देश्य की पूर्ति का भार वर्तमान समाज के बीच छोड़कर श्री महाराज जी वैशाख कृष्ण पंचमी के दिन ०१l०५l२००२ को चौबीसवें मानवता अभ्युदय महायज्ञ की पूर्णाहुति के दिन भक्तों के बीच उन्मुनी मुद्रा में बैठकर देह छोड़ दिएl मानवता अभ्युदय यज्ञ का यह ४५ वां वर्ष हैl आज के दिन आश्रम में एक बड़ा भंडारा होता है, और लगभग ४५००० से ५०००० भक्त एक साथ एक पंक्ति में बैठकर आश्रम की महाप्रसाद ग्रहण करते हुए श्री महाराज जी के मार्ग पर चलने के संकल्प लेते हैंl

श्री महाराज जी ने धर्म पर चढ़ रही धूल को पोछते हुए वास्तविक अध्यात्म को प्रकट कियाl उन्होंने पारलौकिक वस्तु को भगवान् श्री राम और भगवान् श्री कृष्ण की भांति इहलौकिक बनाते हुए सत्य-न्याय-धर्म को आगे कियाl उनके सात महावाक्य हैं जो किसी भी धर्मावलम्बी के लिए सत्य हैं, और यही सभी धर्मों के शास्त्रों का निचोड़ है: १. कुछ भी बनने से पहले मानव बनेंl २. परमात्मा अहंकार ही खाता हैl ३. जो दूसरों को सुख देते हैं, परमात्मा उन्हें ही सुख देता हैl ४. परोपकारी धर्मात्मा बिना साधन-तप के भी ईश्वर को प्राप्त कर लेता हैl ५. सत्य न्याय धर्म की स्थापना में आपका सहयोग अपेक्षित हैl ६. परमात्मा अंधा-बहरा नहीं हैl ७. झूठ बोलने वाला कभी आगे नहीं बढ़ सकता हैl

गुरुदेव ने बचपन में मेरा हाथ पकड़ा, मेरी कविता सुनी, और कहा, तुम अच्छा लिखते हो बोलते हो, डी एम के पास जाओ, एस पी के पास जाओ, मानवता के लिए कार्य करो. मुझ जैसे अकिंचन जीव की सामर्थ्य नहीं थी कि उनकी विराट विश्विक चेतना को समझ सकूं. उस समय मुझे लगता था कि, मैं हाथ छुड़ाकर भाग जाऊं. उन्होंने हाथ छोड़ तो दिया और मुझे घूमने दिया, राउरकेला, बैंगलोर, मुम्बई, सिंगापोर, आर्ट ऑफ़ लिविंग, रामकृष्ण मिशन, चिन्मय मिशन, इस्कान इत्यादि. लेकिन वृथा न होय देव ऋषि वाणी.

मैं लौट आया और अपने गुरुदेव के मिशन से जुड़ गया. जब मैं परेशान होता हूँ तो उनकी समाधि पर जाता हूँ और मुझे पता है कि वह एक माँ की तरह मुझे सुन रहे हैं. मैं भयभीत होता हूँ तो आँख बंद कर उनका स्मरण कर लेता हूँ और मुझे पता है कि वह एक पिता की तरह मुझे अपनी सुरक्षा-कवच में लपेट लेते हैं. जब मैं सांसारिकता और तात्कालिकता में बह जाता हूँ, तब भी मुझे पता है कि वह माँ बिल्ली की तरह मुझे अपने मुंह में लिए घूम रहे हैं.

ऐसे कामधेनु को पाकर छेरी कौन दुहावे! मेरे गुरुदेव के विषय में अनेक चमत्कार प्रचलित हैं लेकिन उन्होंने कभी इनके प्रचार का आदेश नहीं दिया. उनके लिए केवल मानव धर्म का प्रसार ही एकमात्र कार्य है. आदि शंकर और उपनिषदों ने सभी को ब्रह्म बताकर ऐक्य स्थापित करने की घोषणा की लेकिन वह भाषा अब अन्य मतावलंबियों को मान्य नहीं है. मार्क्स ने सभी श्रमिकों मजदूरों को एक होने के लिए कहा लेकिन इसमें एक बड़ा वर्ग छूट जाता है जिससे संघर्ष की स्थिति लगातार बनी हुई है.

मेरे गुरुदेव ने सभी मनुष्यों के एक हो जाने का आह्वान किया. यही आज के युग की आवश्यकता है. यही सभी के लिए मान्य है. एक देवो देवकीपुत्र. एको गुरु मम गुरुदेव बाबा गंगारामदास, एको आश्रम: श्री गंगा आश्रम:. मेरे गुरुदेव धर्म के साक्षात विग्रह हैं. धर्म के दो मार्ग हैं: निवृत्ति जिसकी पद्धति हमारे गुरुदेव ने सुरति शब्द योग के रूप में डी. यह सर्व सुलभ और सहज मार्ग है. प्रवृत्ति मार्ग के रूप में उन्होंने मानव धर्म प्रसार का कार्य दिया जिससे शिव भाव से जीव सेवा हो सके.

गुरुदेव की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन!

लेखक - श्री माधव कृष्ण


मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

आसान नहीं सावरकर होना - श्री माधव कृष्ण ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश


तुम कहते हो
मैं सावरकर नहीं हूँ
यह सही है

तुम सावरकर हो भी नहीं सकते.
इसके लिए वीरता प्रथम चरण है और आत्मोत्सर्ग अंतिम.
नौ वर्ष की वय में हैजे से माँ की मृत्यु
सोलह वर्ष की वय में प्लेग से पिता की मृत्यु
कांटेदार बचपन में अपनी जड़ों को पकड़े रहना सावरकर है
मातृभूमि को माँ समझकर जकड़े रहना सावरकर है.

सोने की चम्मच लेकर
विदेशों में छुट्टियां मनाने वाले स्वातंत्र्यवीर नहीं होते
जिन्होंने अपने दल को ही सामन्तवाद से स्वतंत्र नहीं किया
जहाँ परिवार ही राष्ट्र है
और परिवार के प्रति श्रद्धा ही राष्ट्रभक्ति.
अंधे धृतराष्ट्र की गोद में उन्मादी कौरव पनपते हैं
वहाँ सावरकर जन्म नहीं लेते.
वहां जन्म लेती है सत्ता-लोलुप दुर्योधनी मानसिकता
जिसके लिए किसी और का सत्ता में होना राष्ट्रद्रोह है.

एक सावरकर 'द इण्डियन वॉर ऑफ़ इण्डिपेण्डेंस : 1857' लिखता है
और चीख चीखकर संसार को बता देता है
कि हम बेचैन हैं आज़ादी के लिए
हमारे पुरखों ने जान दी थी १८५७ में,
और वह ग़दर नहीं था
वह आज़ादी की पहली लड़ाई थी...

ऐसा सच बोलने के लिए साहस चाहिए
वह साहस तुम्हारे पास नहीं था
जब कश्मीर के पंडितों का नरसंहार होता रहा
तुम इसे सिद्ध करते रहे - एक छिटपुट घटना
और आज भी कर रहे.

यह साहस 'गाँधी' उपनाम की पूंजी नहीं
यह साहस गांधी महात्मा की पूंजी है, गांधी परिवार की नहीं...

"द हिस्ट्री ऑफ़ द वॉर ऑफ़ इण्डियन इण्डिपेण्डेन्स" लिखने के लिए
एक मनन चाहिए और अध्ययन
जो पुस्तकालयों में नहीं मिलता
अध्येता नहीं मिलते, पुस्तकें खुली हैं खुले आसमान में

एम॰एस॰ मोरिया जहाज के सीवर होल से आज़ादी की राह बना लेना सबके बूते की बात नहीं
असीम समुद्र की छाती को चीरना
सूर्यास्त-विहीन सशक्त राज्य को लांघकर
मनुष्य के असीम सामर्थ्य और सम्प्रभुता को सिद्ध करना हनुमत्ता है
लंका में रहकर लंका की जड़ें खोदना सावरकर है...
दो आजन्म कारावास मिल जाना ही प्रमाण है उस वीरता का
जिसे न देखने के लिए तुम्हारे चश्मों की प्रोग्रामिंग बदल दी गयी है
और तुम नहीं जानते
तुम बहुत छोटे हो उस सूर्य को उंगली दिखाने के लिए
जिसे मौलिक गांधी ने भी वीर कहा था.

सेलुलर जेल में कोल्हू का बैल बनकर नारियल से तेल निकालना
कैसे समझ सकता है एक आरामतलब युवराज
जिसके जीवन की कुल जमापूंजी एक उपनाम है
तुम्हें देखकर ही अब समझ पाता हूँ
कि नाम में क्या रखा है?

तिलक और पटेल की सलाह पर देशसेवा के लिए क्षमा मांगने में
और सरकारी अध्यादेश की कापी फाड़ने पर क्षमा मांगने,
चौकीदार चोर है कह देना और फिर क्षमा मांगने,
एक रक्षा सौदे को घोटाला कहने पर क्षमा मांगने, व
न्यायालय के प्रहार से बचने में अंतर है.

तुमने ठीक कहा
तुम सावरकर नहीं हो
क्योंकि सावरकर मनुष्यता की असीम समर्थ सम्भावनाओं के बीज का उपनाम है.

-माधव कृष्ण
२७.०३.२३
#PMOIndia #PMO #PMNarendraModi






रविवार, 2 अप्रैल 2023

ग़रीबी नहीं बिकती पर गरीब बिकते हैं. निष्ठा का आधार भूख है और भोजन बिकता है- श्री माधव कृष्ण जी

शुक्र है!
-माधव कृष्ण, ०२.०४.२३

(१)
शुक्र है धन है!
धन है तो विज्ञापन है
विज्ञापन है तो -
राजनीतिज्ञ हैं
साहित्यकार हैं
शिक्षक हैं.
शुक्र है! धन है
अन्यथा देश में
न राजनीतिज्ञ दिखते
न साहित्यकार
न विद्यालय.
बस दिखती शुद्ध प्रतिभा!

(२)
शुक्र है धन है!
धन है तो क्रयशक्ति है -
खरीद सकती है पुरस्कार
निकाल सकती है अपनी अज्ञात रचनाओं पर विशेषांक
आयोजित कर सकती है बड़ी गोष्ठियां
निर्मित हो सकते हैं अल्पकालीन साहित्यकार.
और इस क्षणिक प्रतिष्ठा के शृगाल आसन से
दिख सकती है मुड़ती हुई साहित्य की धारा.
पर एक दिन वर्षा होगी
और रंगरेज पकड़े जाएगा
रँगे सियार की भाषा उजागर होगी.
वर्षा के बाद आसमान साफ़ होगा और
रह जायेंगे
सूर सूर्य
तुलसी शशि.

(३)
धन है तो
खरीद सकते हैं मुर्गा
शराब और दंगाई,
ग़रीबी नहीं बिकती
पर गरीब बिकते हैं.
निष्ठा का आधार भूख है
और भोजन बिकता है.
वैचारिक संघर्ष में दो भक्त हैं -
एक भूख के और एक भजन के.
भूख जीत जाती है
और आका बनाते रहते हैं
लाखों करोड़ों और अरबों.
संसद भी जीवंत रहती है
सड़क भी.
शुक्र है भीड़ खरीदी जाती है
अन्यथा
सड़कों पर दीखते
केवल वे मुद्दे जो केवल और केवल जनता के हैं.

(४)
शुक्र है कि धन के साथ जाति है
इन के गोश्त में
कुछ प्रबंधक भेजते हैं दलाल
ताकि हलाल हो सके उनका प्रतिस्पर्धी.
चाहे राजनैतिक या व्यावसायिक या वैचारिक या साहित्यिक.
धन से जाति के नाम पर खरीदे गए उनके दलाल
काम खराब नहीं कर सकते हैं
तो नाम खराब करने का प्रयास करते हैं.
नाम खराब करने के लिए
उन्हें वराह अवतार लेना पड़ता है.
कीचड़ और गन्दगी में डूबकर
उन्हें भेजना पड़ता सन्देश
जिसके अंदर से झांकती है उनकी
धूमिल चेष्टा.
पर यह तो तय है कि बारिश होगी.
मौन की गूँज उठेगी.
पंकजनयन न्याय की लाठी से आवाज नहीं आती.
धुल जाएगा पंक
निखर उठेगा पंकज
कराह उठेंगे काज़ी
और रह जाएगा वही
जो सच है.
शुक्र है...बारिश होती है!

(५)
बिना आमन्त्रण जाना मत
बिना निमंत्रण खाना मत.
सीखे थे ये गुर चाची से.
इसलिए मैं फोन करके नहीं कहता
कि मुझे बुलाओ.
पैसे देकर नहीं कहता कि
मुझे छापो.
तलवे चाटकर नहीं कहता कि
मुझ पर लिखो.
झूठी निष्ठा प्रदर्शित नहीं करता कि
पुरस्कार मिले.
मैं जिस दिशा में हूँ
सहजता से हूँ
वह दिशा मेरी है
और
तुम्हारी दिशा में चलने से मुझे परहेज नहीं
पर उस दिशा में मेरी दिशा का असभ्य अतार्किक विखंडन दिखता है
मेरे पुरखों को अपशब्द मिलते हैं
और मैं विवश हो जाता हूँ
वह कहने और लिखने को
जो सत्य है
और सच की आदत है युगों पुरानी
अकेले खड़ा रहने की.
इसलिए जब तुम गोष्ठी करते हो
मुझे खुशी होती है
क्योंकि खुशी और जीवन्तता का एक गहरा सम्बन्ध है.
तुम किसे बुलाते, वह मेरा विषय नहीं
क्योंकि नानक चाहते थे
अनेक अच्छे लोग अनेक दिशाओं में बिखर जाएँ.
पर जब तुम पूछते हो कि बिना आमन्त्रण कोई क्यों नहीं आया
तो मुझे लगता है कि
तुम भी हलके हो
और मुझे भी हल्का बनाने की कोशिश कर रहे हो.
तुम्हें तुम्हारी हल्की मुस्कान मुबारक
जो तुम्हें क्षण भर का जीवन देती है
मुझे चलना है
अभी मीलों
मुझे जूते चाहिए
जिससे मैं निर्द्वन्द्व रौंदता रहूँ असत्य
और खोजता रहूँ अपना सच!
माधव कृष्ण
०२.०४.२३