मैं_गाजीपुर_हूं
गाजीपुर की भी कुछ सुनिए
"हटो व्योम के मेघ स्वर्ग लूटने हम आते हैं
गौरव बलिदानी गाजीपुर तेरी कीर्ति गाते हैं"
'सुनो तुम कब जानोगे कि मेरा हाल कैसा है
अभी मेरे कांधे से सारी दुनिया देखते हों |'
भागीरथी की धारा और गोमती की लहरों के साथ लिपटे हुए श्वेत व चमकते रेत भण्डारों की भांति मैं कभी जल की धार में बहता रहा और कभी पवन की प्रबल वेग में पूरे पूर्वांचल की मिट्टी में अपने और तुमको भी चमकाता रहा हूं।
तुम तो अभी भी बच्चे हो क्योंकि वैदिक युग से लेकर वर्तमान कलयुग तक न जाने कितनी पीढ़ियों का पालन और विसर्जन करना पड़ा है मुझे ... ...
राजा गधि व उनके पुत्र महर्षि जगदमिनी की वैभव गरिमा के कारण ही कालांतर में मैं गाजीपुर बना, जब तुम आत्मा के स्वरूप में किसी अन्य नश्वर शरीर में विराजमान थे उस वैदिक युग में भी मैं इस पावन भारत भूमि का प्रमुख घनघोर वन और इस ऋषियों मुनियों की तपस्थली रहा। तुम मेरे बारे में रामायण काल मैं भी उल्लेख देखोगे |
मेरी गोद में महर्षि यमदग्नी जो कि महाश्री परशुराम के पिता थे, पले और बढ़े थे। प्रसिद्ध ऋषियों गौतम और च्यवन ने मेरी ही पावन मिट्टी में प्राचीन काल में शिक्षण और धर्मोपदेश दिए ...
भगवान बुद्ध, जिन्होंने वाराणसी में सारनाथ में पहला धर्मोपदेश दिया था, के ज्ञान प्रसार केंद्र के रूप में मेरा अंश औहरहार (औड़िहार) शिक्षा का मुख्य केंद्र बनकर उभरा। मेरे कई स्तूपों और खंभे उस अवधि की गौरव गाथा को समेटे हुए है तुमने जाकर उसे देखा कभी पढ़ा, तुमने कभी उन पर अपनी उंगलियों को घुमाया और कुछ महसूस किया ... ...
मेरी पावन धरा पर ऋषि मुनि संग देवर्षि को भी आना पड़ा है, ऐसा लगता था कि इनके आगमन से मेरे रजो भूमि की दूर्वा से लेकर इमली वटवृक्ष तक हर्षित हो गये। देवर्षि विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण के साथ गाजीपुर के ददरीघाट पर ही ताड़का वध के समय जाते हुए पार किया था, ऐसी मान्यता वहां के लोगो की है । तुम्हारा ताड़ी घाट ताड़का राक्षसी का अपभ्रंश है जो ताड़का के अधिकार क्षेत्र में ही आता था । राक्षस संस्कृति का विस्तार के लिये गङ्गा नदी के दक्षिणी किनारे तक के भूभाग पर राक्षसों ने बलात अधिकार कर लिया था। देवर्षि विश्वामित्र का आगमन राक्षस संस्कृति के विस्तार को रोकने का हेतु बना। रघुनंदन श्रीराम और लक्ष्मण भी शिक्षा कौशल में पारंगत होने निमित्त विश्वामित्र संग हमारी वसुंधरा पर आये है।
चीनी यात्री ह्यूएन त्संग भी आया था मेरे गांव और शहर में और मुझे चंचू “युद्ध क्षेत्र की भूमि” के रूप में उल्लेख किया खैर अच्छा ही किया क्योंकि मैं शांति और युद्ध दोनों में शामिल रहता हूं ...
मैंने कभी धर्म के आधार पर भेदभाव करना नहीं सीखा, मुगल काल में भी मेरा शानदार इतिहास नासाज फरमाया गया |
कुछ नामचीन कलमकारों व इतिहास नविशों यह भी लिखा है कि मेरा नाम 'गाजीपुर' शैयद मसूद गाजी के नाम पर पड़ा,
मेरे लख्ते जिगर इस्तकेबल कहते हैं कि हिंदू-मुस्लिम एकता के हमराह शैयद मस्सद गाजी ने 1330 ईस्वी में शहर बसाया तो कुछ ने कहा कि मैं उस्ताद गाजी मशूक द्वारा स्थापित हूं खैर जो भी हो मैं सदियों पहले भी था और आज भी हूं और कल भी रहूंगा ...
मुझे लहुरी काशी यानि काशी की बहन भी बोला जाता है शायद काशी की तरह हर ओ नाम जो मेरे घर में विद्यमान है लेकिन मुझे काशी की तरह सम्मान नहीं मिला। गंगा नदी मेरे आंगन से होकर बहती है गंगा सिधौना क्षेत्र से गोमती नदी का संगम करते हुए मेरे घर में प्रवेश करती है मेरे यहां भी काशी के घाटों की तरह ही कई गंगाघाट है जिनमें ददरी घाट, कलेक्टर घाट, स्ट्रीमर घाट, चितनाथ घाट, महावीर घाट सैदपुर, बाराह घाट औड़िहार तथा श्मशान घाट आदि है।
मेरे घर में आस्था का द्वार है मौनी बाबा धाम चौचकपुर मेला और स्नान के लिए, पवहारी बाबा आश्रम जहां स्वामी विवेकानंद जी ने दीक्षा लिया, गंगा दास आश्रम जहां स्व. मुलायम सिंह यादव और योगी जी ने भी दर्शन प्राप्त किया।
सिद्धपीठ हथियाराम मठ जहां लकवा के मरीजों का जादुई शीशे के द्वारा इलाज होता रहा है। निर्गुण पंथ (बावरी) की धरोहर सिद्धपीठ भुड़कुड़ा मठ जहां लोग आज भी झूठी कसम खाने से डरते हैं। यहां गिरती हुई दीवार का गुरु के आदेश पर रुक जाना, चलती हुई ट्रेन का खड़ा हो जाना, हरवाहे बुलाकी दास (बुला साहेब) लिए भगवान द्वारा दही भेजना।
चौमुख धाम आश्रम, कीनाराम आश्रम, नागा बाबा आश्रम, बिछुड़ननाथ, बुढ़े महादेव, सांई तकिया आश्रम, चंडी धाम, नवाजू बाबा धाम पशुओं के रोग मुक्ति के लिए मसान धाम आश्रम, मतंग ऋषि की तपोभूमि संगत घाट, सैदपुर भीतरी के स्थान को हूणों के युद्ध के लिए जाना जाता है।
मेरे आंगन में कितने ही ऐसे सपूतों ने किलकारी भरी है कि मन गर्वित हो जाता है जिसके लिए मुझे पूरा देश याद करता है। मेरे सपूतों में स्वामी सहजानंद सरस्वती, मोहम्मद अयूब खान,शहीद वीर अब्दुल हमीद, शहीद राम उग्रह पाण्डेय, नजीर हुसैन (भोजपुरी के प्रणेता), राही मासूम रजा, विवेकी राय, भोलानाथ गहमरी, विश्वनाथ सिंह गहमरी आदि ऐसे अनेक सपूत हुए।
दुश्मनों से देश की रक्षा के लिए 1962, 1965, 1971, 1999 के युद्ध में मेरे सपूतों ने अदम्य साहस का प्रदर्शन किया।
एशिया का सबसे बड़ा गांव गहमर मेरे पास है। ऐतिहासिक अशोक स्तूप जमानियां, स्कंद गुप्त के समय के सैदपुर भितरी में पुरातात्विक अवशेष जो मेरे लिए विशेष होने के अनकहे प्रमाण है
18 वीं शताब्दी में में फिरंगियों ने आर्यावर्त की इस पावन भूमि को जंजीरों में जकड़ लिया और मुझे भी बक्सर के साथ जीत लिया जिस पर उनकी ईस्ट इंडिया कंपनी की हुकूमत थी, कंपनी ने रिचर्डसन को एक न्यायाधीश के रूप में भेजा और रॉबर्ट वॉर्लो को इस जिले के पहला कलेक्टर बनाया | लार्ड कार्नवालिस का मकबरा तो तुमने देखा ही होगा नहीं देखा तो पहले मेरे पूरे शहर और गांव के प्रमुख स्थलों को देख कर आओ फिर बताओ मैं कैसा हूं ... ...
मेरी उर्वरता जगजाहिर रही है; मेरी पोषक मिट्टी में नील, अफीम, केवड़ा, गेंदा गुलाब की खेती दशकों तक मेरे कृषकों की आजिविका का मुख्य साधन बना रहा फिर अंग्रेजों ने भी नील, अफीम, केवड़ा और गुलाब की खेती के लिए मुझे उपयोग किया मैंने भी उनके लिए ना सही पर अपने किसानों और अपनी मिट्टी के लिए इसको स्वीकार कर लिया। उन्होंने मुझ में अफ़ीम फैक्टरी स्थापित कर दिया यह वही अफीम फैक्ट्री है जिसे तुम आज भी मेरे शहर में देखते हो अब तो मैं भारत सरकार को भी सरकारी राजस्व मुहैया करा रहा हूं |
पहले मेरा अफीम ब्रिटिश शासन के दौरान बंगाल की खाड़ी के माध्यम से नौकाओं पर चीन के लिए भेजा जाता था ...
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में मेरे राष्ट्र प्रेमी पुत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। फिरंगियों के शासन में 1942 में रोलेक्ट अधिनियम, ख़िलाफत आंदोलन, नमक सत्याग्रह, विदेश बैरिस्टर के बहिष्कार सत्याग्रह और आंदोलन में देश के अन्य हिस्सों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर और अपने गौरव से निडर होकर भाग लिया। मेरे बेशकीमती लालों डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी, भागवत मिश्रा, गजानन मारवाड़ी, विश्वनाथ शर्मा, हरि प्रसाद सिंह, राममरात सिंह, रामराज सिंह, इंद्रदेव त्रिपाठी, देवकरण सिंह, सरजू पाण्डेय और अन्य पुत्रों जिनका नाम अभी भूल रहा हूं अरे ! आज भी मैं किशोरों सा साहसी और कर्मवीर बना रहा हूं इन्होंने अपने अदम्य साहस से कीर्तिमान स्थापित किया | मेरे लोगों ने क्विट इंडिया आंदोलन में अभूतपूर्व भूमिका निभाई ...
मेरे कुलदीपक डॉ. शिवपुजन राय के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों के जत्थे ने मेरे दिल के टुकड़े मुहम्मददाबाद तहसील में ध्वज पताका फहराया। डॉ. शिवपुजन राय, वननारायण राय, रामबदन राय आदि ने तो 18 अगस्त 1942 को देश के लिए अपना जीवन भी बलिदान कर दिया, मैं आज भी इनके लिए अभिमान का भान लिए हुए आंखों से गर्म लाल लाल आंसू गिराता हूं तुम उन बूंदों को अपनी आंखों में ढूंढना फिर तुम्हें मेरे ऊपर गर्व होने लगेगा ...
आजादी के बाद, मेरा विकास पिछड़ गया मेरे अपनों ने मेरी मिट्टी के कर्ज को चुकाने में कुछ लापरवाही कर दी इसलिए मैं विकसित नहीं हो सका। आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक और सामाजिक समृद्धि के बाद भी मैं पिछली कतार में क्यों हूं ...
खैर जो भी हो तुम मेरे इस सपने को पूरा करोगे ना और मुझे पूरे भारत देश का सर्वोत्तम जिला बनाओगे ना ...
मेरी मिट्टी के बहादुर सैनिकों जैसे ब्रिगेडियर उस्मान, परमवीर चक्र पुरस्कार विजेता वीर अब्दुल हमीद, महावीर चक्र विजेता राम उग्रह पाण्डेय ने भी तो अखंड आर्यावर्त को सुरक्षित रखने के लिए अपनी कुर्बानी दे दी अभी तुमने देखा होगा कारगिल की विजयश्री में मेरे लालों ने उल्लेखनीय बहादुरी दिखायी और राष्ट्र के लिए स्वयं को शहीद कर दिया |
कभी बादशाह हिमायूं भी मेरे भिश्ती की मदद से व संत तपस्थली भुड़कुड़ा के परम संत गुरूजी के आशीर्वाद से खुद का जीवन बचाने में सफल रहा था |
मंदिरों, मस्जिदों, गुरूद्वारों व चर्चों के माध्यम से आज भी मेरे लोग धार्मिक सद्भाव के साथ मानवता का प्रसार कर रहे हैं ...
मेरी धरती ने देश को कई अच्छे नेता भी दिए हैं पर मुझे किसी पार्टी विशेष से मत जकड़ो पर मेरे कुल गौरव विकास पुरुष ने पिछले कुछ सालों में मेरे विकसित होने की सपने को पंख लगा दिया है ...
मैं आज भी राष्ट्रहित में प्रयत्नशील हूं पर यह मेरा खुद का प्रयास नहीं है मैं तो बस एक भारत भूमि का राष्ट्रप्रेमी टुकड़ा हूं ... ...
मैं तो केवल एक प्रतिबिंब हूं , हां मैं केवल तुम्हारा दर्पण हूं तुम यदि अपने कर्तव्य और मानवता से अपने मुख्य मंडल को चमकाते रहोगे तो मैं सदा खिलखिलता रहूंगा ...
बस कुछ सपने अधूरे हैं की मेरे शहर में भी एक विश्वविद्यालय खुल जाए और मेरा अंधऊ हवाई पट्टी शुरू होकर हवाई अड्डा बने और उस पर से भी वायुदूत गुजरे, मेरे छोटे बाजारों और गांव की सड़कें जगह जगह खराब हो गई हैं तुम उस पर चलते हो तो मेरे बदन में भी दर्द होता है पर पता नहीं कब यह सपना पूरा होगा कभी-कभी सपना देखता हूं कि मेरे मिट्टी में भी कुछ कल कारखाने लगे हैं और मेरे लोग यहीं पर अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं। आध्यात्मिक ऐतिहासिक राजनीतिक और सामाजिक समृद्धि के बाद भी मैं पिछली कतार में क्यों हूं ... ... ...
बाकी फिर कभी
✍️ नीरज सिंह 'अजेय'
नीरज सिंह 'अजेय' 'हिन्दी साहित्यकार'
यदि लिखने में कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा करिएगा यह बस एक प्रयास है आप लोगों को अपने गाजीपुर जिले के गौरव गाथा से रूबरू कराने का |
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