मेरे गुरुदेव की पुण्यतिथि पर
परमहंस श्री गंगा राम दास जी महाराज जी की आज २१वीं पुण्यतिथि हैl (वैशाख कृष्ण पंचमी दिनांक 11l04l23)l श्री महाराज जी श्री गंगा आश्रम बयेपुर देवकली, गाजीपुर के अधिष्ठाता और मानव धर्म प्रसार के प्रवर्तक युग पुरुष संत हैंl उनका जन्म उत्तर प्रदेश में ग़ाज़ीपुर जिला के ग्राम गुरैनी ( थाना शादियाबाद ) में 1 अगस्त 1920 ( श्रावण कृष्ण प्रतिपदा विक्रम संवत 1977 ) को एक संभ्रात कृषक परिवार में हुआ था। उनकी माता जी का नाम श्रीमती गुजरी देवी तथा पिता जी का नाम श्री ठकुरी यादव था।
बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा और शक्ति के धनी श्री महाराज जी बचपन से ही विरक्त थेl मात्र कक्षा 4 तक पढ़ने के बाद 12 वर्ष की अवस्था में उन्होंने सांसारिक बन्धनों से स्वयं को मुक्त करते हुए तपस्वियों की राह पकड़ीl संत श्री रामानन्द की गौरवशाली शिष्य परम्परा के संत परमहंस बाबा राममंगल दास जी ने उन्हें शिष्य के रूप में स्वीकार करते हुए दीक्षित कियाl श्री महाराज जी २५ वर्षों तक भारतीय आध्यात्मिक परम्परा के प्राचीन ऋषियों की भांति कानपुर के जंगलों में यमुनानदी के किनारे आत्म-साक्षात्कार के लिए तपस्यारत रहेl
जिन लोगों ने भारतीय समाज और अध्यात्म को सामंतवादी, जातिवादी, ब्राह्मणवादी इत्यादि सिद्ध कर नीचा दिखाने का प्रयास किया है, उनके लिए यह सोचना उनकी पाचनशक्ति की सामर्थ्य के बाहर है कि, "बाबा गंगाराम दास एक यादव कुल में उत्पन्न हुए थे, उनके गुरु एक ब्राह्मण कुल में उत्पन्न थे, लेकिन उनके गुरु ने केवल पात्रता देखी." और यही तो भारतीय आध्यात्मिक परम्परा चीख-चीख कर कह रही है - जात पात पूछे नहिं कोई/ हरि को भजे सो हरि का होई.
मेरे गुरुदेव ने न जाति देखी, और न धर्म. किसी का मनुष्य होना ही उनके लिए सब कुछ था. इसलिए आज भी आश्रम में सभी के लिए एक ही व्यवस्था है. उनके पास माननीय मुलायम सिंह यादव पहुंचे थे, उनसे भी गुरुदेव का यही प्रश्न था कि, घर घर में लगी आग कौन बुझाएगा? रक्षामंत्री ने उत्तर दिया, सपा बुझायेगी. लेकिन श्री महाराज जी संतुष्ट नहीं हुए. मुरारी बापू से गुरुदेव ने कहा, आप अंतर्राष्ट्रीय संत हैं, लोगों को मनुष्य बनाइए. बापू जी ने कहा, यह आप जैसे उछ कोटि के परमहंस की सामर्थ्य से ही हो सकता है.
आत्म साक्षात्कार और ईश्वर-प्राप्ति के बाद उन्होंने ईश्वर के आदेश से मानवता का प्रसार करने के लिए गाजीपुर के बयेपुर देवकली को अपना कर्म-क्षेत्र बनायाl उनके द्वारा स्थापित तप:स्थली श्री गंगा आश्रम आज गाजीपुर के दिव्यतम स्थान के रूप में प्रसिद्ध होती जा रही हैl वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत पूर्व रक्षा मंत्री स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव, प्रख्यात कथावाचक मुरारी बापू इत्यादि इस आश्रम ने आकर श्री महाराज जी का आशीर्वाद प्राप्त कर चुके हैंl यहाँ श्री राम-जानकी मंदिर, गुरु श्री राममंगल दास जी का मंदिर, यज्ञशाला और पूज्य महाराज जी गंगा राम दास बाबा का समाधि स्थल है, जो निःसंदेह दर्शनीय है। श्री महाराज जी से सम्बन्धित वस्तुओं दिव्य संग्रहालय भी है। यहाँ आश्रम की भावधारा से सम्बंधित पुस्तकें भी मिलती हैं जो अब आई आई टी कानपुर द्वारा भारतीय ग्रंथों के साथ शोध के लिए ऑनलाइन उपलब्ध हैं: https://wwwlrammangaldasjiliitklaclin/l श्री महाराज जी का नीति ग्रन्थ श्री रामचरितमानस हैl
श्री महाराज जी ने पुरातन ऋषियों की भांति धर्म और अध्यात्म को सामाजिक सरोकार से जोड़ाl श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार मनुष्य का कर्म ही परमात्मा की अर्चना हैl श्रीमहाराज जी ने अपने जीवन काल में ही मानव धर्म प्रसार के माध्यम से मनुष्य को मनुष्य बनने पर बल दिया जिससे जातिवाद, साम्प्रदायिक संकीर्णताओं को समाज से दूर किया जा सकेl उनके अनुसार मनुष्यता की तीन कसौटियां हैं – सत्य-न्याय-धर्मl स्थानीय पंचायत के माध्यम से न्याय व्यवस्था को लागू करने के लिए उन्होंने गाँव गाँव में शाखाएं स्थापित कींl आज भी गाजीपुर, फरीदाबाद, कोलकाता, वाराणसी, गोरखपुर, कानपुर लखनऊ, बांदा, मुम्बई, कच्छ इत्यादि शहरों में उनके शिष्य २०० से अधिक शाखाएं संचालित कर रहे हैंl इन शाखाओं की साप्ताहिक बैठक होती है, जिसमें एकत्र भक्त संगठित रहकर अन्याय का सामना करते हैंl गाजीपुर में अनेक शाखाओं के माध्यम से सालों तक चल रहे बैर को आपसी समझ और गाँव वालों की सहभागिता से समाप्त करने का प्रयास किया गया हैl श्री महाराज जी ने अपने जीवनकाल में एक गाँव को गोद लेकर उसे मुकदमाविहीन बनाकर सभी को ऐसा करने का सन्देश दियाl
आश्रम के साधु श्वेत भारतीय परिधान धारण करते हैंl उनके जीवन में सेवा और भजन मुख्य हैंl आज भी आश्रम जाने पर वे प्रत्येक व्यक्ति से समयानुकूल जलपान और भोजन का आग्रह करते हैंl आश्रम में प्रत्येक दिन सैकड़ों असहाय व्यक्ति भोजन पाते हैंl मानव धर्म प्रसार के उद्देश्य की पूर्ति का भार वर्तमान समाज के बीच छोड़कर श्री महाराज जी वैशाख कृष्ण पंचमी के दिन ०१l०५l२००२ को चौबीसवें मानवता अभ्युदय महायज्ञ की पूर्णाहुति के दिन भक्तों के बीच उन्मुनी मुद्रा में बैठकर देह छोड़ दिएl मानवता अभ्युदय यज्ञ का यह ४५ वां वर्ष हैl आज के दिन आश्रम में एक बड़ा भंडारा होता है, और लगभग ४५००० से ५०००० भक्त एक साथ एक पंक्ति में बैठकर आश्रम की महाप्रसाद ग्रहण करते हुए श्री महाराज जी के मार्ग पर चलने के संकल्प लेते हैंl
श्री महाराज जी ने धर्म पर चढ़ रही धूल को पोछते हुए वास्तविक अध्यात्म को प्रकट कियाl उन्होंने पारलौकिक वस्तु को भगवान् श्री राम और भगवान् श्री कृष्ण की भांति इहलौकिक बनाते हुए सत्य-न्याय-धर्म को आगे कियाl उनके सात महावाक्य हैं जो किसी भी धर्मावलम्बी के लिए सत्य हैं, और यही सभी धर्मों के शास्त्रों का निचोड़ है: १. कुछ भी बनने से पहले मानव बनेंl २. परमात्मा अहंकार ही खाता हैl ३. जो दूसरों को सुख देते हैं, परमात्मा उन्हें ही सुख देता हैl ४. परोपकारी धर्मात्मा बिना साधन-तप के भी ईश्वर को प्राप्त कर लेता हैl ५. सत्य न्याय धर्म की स्थापना में आपका सहयोग अपेक्षित हैl ६. परमात्मा अंधा-बहरा नहीं हैl ७. झूठ बोलने वाला कभी आगे नहीं बढ़ सकता हैl
गुरुदेव ने बचपन में मेरा हाथ पकड़ा, मेरी कविता सुनी, और कहा, तुम अच्छा लिखते हो बोलते हो, डी एम के पास जाओ, एस पी के पास जाओ, मानवता के लिए कार्य करो. मुझ जैसे अकिंचन जीव की सामर्थ्य नहीं थी कि उनकी विराट विश्विक चेतना को समझ सकूं. उस समय मुझे लगता था कि, मैं हाथ छुड़ाकर भाग जाऊं. उन्होंने हाथ छोड़ तो दिया और मुझे घूमने दिया, राउरकेला, बैंगलोर, मुम्बई, सिंगापोर, आर्ट ऑफ़ लिविंग, रामकृष्ण मिशन, चिन्मय मिशन, इस्कान इत्यादि. लेकिन वृथा न होय देव ऋषि वाणी.
मैं लौट आया और अपने गुरुदेव के मिशन से जुड़ गया. जब मैं परेशान होता हूँ तो उनकी समाधि पर जाता हूँ और मुझे पता है कि वह एक माँ की तरह मुझे सुन रहे हैं. मैं भयभीत होता हूँ तो आँख बंद कर उनका स्मरण कर लेता हूँ और मुझे पता है कि वह एक पिता की तरह मुझे अपनी सुरक्षा-कवच में लपेट लेते हैं. जब मैं सांसारिकता और तात्कालिकता में बह जाता हूँ, तब भी मुझे पता है कि वह माँ बिल्ली की तरह मुझे अपने मुंह में लिए घूम रहे हैं.
ऐसे कामधेनु को पाकर छेरी कौन दुहावे! मेरे गुरुदेव के विषय में अनेक चमत्कार प्रचलित हैं लेकिन उन्होंने कभी इनके प्रचार का आदेश नहीं दिया. उनके लिए केवल मानव धर्म का प्रसार ही एकमात्र कार्य है. आदि शंकर और उपनिषदों ने सभी को ब्रह्म बताकर ऐक्य स्थापित करने की घोषणा की लेकिन वह भाषा अब अन्य मतावलंबियों को मान्य नहीं है. मार्क्स ने सभी श्रमिकों मजदूरों को एक होने के लिए कहा लेकिन इसमें एक बड़ा वर्ग छूट जाता है जिससे संघर्ष की स्थिति लगातार बनी हुई है.
मेरे गुरुदेव ने सभी मनुष्यों के एक हो जाने का आह्वान किया. यही आज के युग की आवश्यकता है. यही सभी के लिए मान्य है. एक देवो देवकीपुत्र. एको गुरु मम गुरुदेव बाबा गंगारामदास, एको आश्रम: श्री गंगा आश्रम:. मेरे गुरुदेव धर्म के साक्षात विग्रह हैं. धर्म के दो मार्ग हैं: निवृत्ति जिसकी पद्धति हमारे गुरुदेव ने सुरति शब्द योग के रूप में डी. यह सर्व सुलभ और सहज मार्ग है. प्रवृत्ति मार्ग के रूप में उन्होंने मानव धर्म प्रसार का कार्य दिया जिससे शिव भाव से जीव सेवा हो सके.
गुरुदेव की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन!
लेखक - श्री माधव कृष्ण
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