बुधवार, 22 जून 2022

चराग़ आफ़ताब ग़ुम बड़ी हसीन रात थी शबाब की नक़ाब गुम बड़ी हसीन रात थी- ज़नाब सुदर्शन फ़ाकिर

चराग़ आफ़ताब ग़ुम बड़ी हसीन रात थी,
शबाब की नक़ाब गुम बड़ी हसीन रात थी।

मुझे पिला रहे थे वो कि ख़ुद ही शमा बुझ गई,
गिलास गुम,शराब गुम, बड़ी हसीन रात थी।

लिखा था जिस किताब में कि इश्क़ तो हराम है
हुई वही किताब गुम बड़ी हसीन रात थी।

लबों से लब जो मिल गए,लबों से लब ही सिल गए
सवाल गुम, जवाब गुम, बड़ी हसींन रात थी।

चराग़- दीपक आफ़ताब = दिया, सूरज

रचना - ज़नाब सुदर्शन फ़ाकिर




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