चराग़ आफ़ताब ग़ुम बड़ी हसीन रात थी,
शबाब की नक़ाब गुम बड़ी हसीन रात थी।
गिलास गुम,शराब गुम, बड़ी हसीन रात थी।
लिखा था जिस किताब में कि इश्क़ तो हराम है
हुई वही किताब गुम बड़ी हसीन रात थी।
लबों से लब जो मिल गए,लबों से लब ही सिल गए
सवाल गुम, जवाब गुम, बड़ी हसींन रात थी।
चराग़- दीपक आफ़ताब = दिया, सूरज
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें