सोमवार, 19 अक्टूबर 2020

लावारिश लाशों का नि:स्वार्थ भाव से अन्तिम संस्कार करने वाले कृष्णा नन्द उपाध्याय ग़ाज़ीपुर - लव तिवारी


  • दाह संस्कार  का मतलब देह रूपी शरीर का संस्कार है। मृत्यु के पश्चात वेदमंत्रों के उच्चारण द्वारा किए जाने वाले इस संस्कार को दाह-संस्कार कहते है। , श्मशान कर्म तथा अन्त्येष्टि-क्रिया आदि भी कहते हैं। इसमें मृत्यु के बाद शव को विधी पूर्वक मुखाग्नि के द्वारा उस व्यक्ति के कुल का व्यक्ति के द्वारा अग्नि को समर्पित किया जाता है। यह प्रत्येक हिंदू के लिए आवश्यक है। केवल संन्यासी-महात्माओं के लिए एक विशेष प्रकार का प्रावधान है जो समाधि होने के कारण शरीर छूट जाने पर भूमिसमाधि या जलसमाधि आदि देने का विधान है। कहीं-कहीं संन्यासी का भी दाह-संस्कार किया जाता है और उसमें कोई दोष नहीं माना जाता है।

  • इसी धरती पर कई ऐसी लावारिस लाशें होती है जिनका न कोई आगे है न कोई पीछे रोने वाला होता है। जिसका कोई नही होता उसके लिए भगवान ने एक ऐसे व्यक्ति का चुनाव करता है। ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व आदरणीय श्री कृष्णा नन्द उपाध्याय जी जिन्होंने ग़ाज़ीपुर था ग़ाज़ीपुर के आस पास क्षेत्र के 600 लावारिश लाशो का विधि पूर्वक ढाह संस्कार किया है।

  • भगवान से यही विनती करते है ऐसे व्यक्तित्व को इसी तरह समर्थवान बनाये एवं शक्ति दे जिससे यह इस तरह के सामाजिक कार्यो को विधि पूर्वक अंजाम देते रहे।।
  • धन्य है बड़े भैया आप आप की हमेशा जय हो चरण बन्दन आप को।।
  • लेखक- लव तिवारी




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