शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

सरकारों ने वैज्ञानिक शोध कार्यो में लगातार की अन्देखी- डॉक्टर सम्मी सिंह

28 फरवरी को हम विज्ञान दिवस के रूप में मनाते है क्योकि हमारे देश के प्रख्यात वैज्ञानिक सर चन्द्रशेखर वेंकट रमन ने उसी दिन अपने उस सिद्धान्त को प्रतिपादित किया जिसमें उन्होंने माध्यम के सापेक्ष प्रकाश किरणों के बदलते तरंग दैधर्य की व्याख्या की और जो पूरी दुनिया में रमन प्रभाव के नाम से परिभषित हुआ ।  इसी खोज पर सन 1930 में उनको भौतिकी का नोबल भी दिया गया । 

सन 1987 से हम लोग उनके इस शोध पर  प्रकाशित शोध पत्र वाले दिन यानि 28 फरवरी को विज्ञान दिवस के तौर पर मनाते हुए यह संकल्प लेते है कि स्कूली  शिक्षा से लेकर जीवन के हर क्ष्रेत्र में वैज्ञानिकता और तार्किकता का विकास करेंगे लेकिन आज जब एक अंतरष्ट्रीय संग़ठन "क्लेरेटिवे एनालिटिक्स" ने दुनिया के सबसे काबिल 4000  शोधकर्ताओं की सूची जारी की तो अमेरिका के 2639, ब्रिटेन के 546 और चीन के 482 शोधकर्ताओं को स्थान मिला जबकि भारत के सिर्फ 10 शोधकर्ता ही इस सूची में जगह बना पाए । उसमे भी एक ही भारतीय महिला है जो इस सूची में जगह बना पायी। ऐसी गम्भीर स्थिति पर किसकी जवाबदेही बनती है । उस सरकार की जो हमको विश्वगुरु बनाने का सपना दिखाती है या समाज की जो आये दिन हमको हिन्दू और मुसलमान बनाकर हमारे हाथों में ख़ंजर सौप देता है इंसानियत की कत्ल करने को । 

अतुल्य भारत का सपना दिखाने वाली हमारे देश की  सरकारों ने वैज्ञानिक शोध कार्यो में लगातार कमी किया है। इस समय वह  अपने जी डी पी का 0.67%से भी कम खर्च कर रही है और यह कमी लगातार 2008से और भी बढ़ रही है और वही हमारा पड़ोसी देश चीन अपनी जी डी पी का 2.5%, ब्राजील 1.7% ,रूस 1.24% और अमेरिका तथा यूरोपीय विकसित देश अपनी जी डी पी का लगभग3 %से ऊपर शोध कार्यो पर  खर्च करते है।  राष्ट्रीय उच्च शिक्षा संस्थान पर पिछली साल 2300 करोड़ बजट आवंटित किया गया थाऔर इस बार लगभग  80%बजट की कटौती कर सिर्फ 400 करोड़ रुपया आवंटित किया गया है । हम अभी इसी पर खुश है कि कौन सा विश्विद्यालय कितना राष्ट्रवादी बचा है और कौन देशद्रोही हो गया है । सरकार तो जो कर रही है लेकिन शिक्षक और विद्यार्थी समाज भी सरकार के इस रवैये पर चुप होकर बस भारत माता की जय बोलने में मशगूल है ।
अब सवाल यह उठता है कि इतनी बड़ी युवा आबादी को अगर आप स्तरीय और वैज्ञानिक पद्धति से शिक्षित नही करेंगे तो देश मे धर्म, जाति और क्षेत्र आदि के नाम पर बढ़ते कत्ले आम को आप कितना रोक पाएंगे और यह खूनी अराजकता अगर समय रहते नही रोका गया तो यह हिंसा, हिंदुस्तान की पीढ़ियों को बर्बाद कर देगी।

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