तू इबादत है और मजहब भी
जिंदगी तेरे बगैर अब कुछ और नहीं
बड़े सलीक़े से तुम्हे पाया हूँ
तुझसे मोहब्बत है और जहाँ से नफरत भी
बड़ी दिलरुबा और बेख़ौफ़ है जिंदगी
तू दुआ है और करम भी
तेरे बारे में न सोचु तो मर जाऊ मैं
कि जिंदगी कैसे जियूं ये मौरौत भी
स्वरचित-लव तिवारी
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