ख्वामखाह ही एक ख्याल रह गया
जो सुलझा नहीं वो सवाल रह गया
इस दुनिया की रंगत देखकर
दिल में मेरे एक मलाल रह गया
कौन कहता है मोहब्बत नहीं यहाँ पर
कुछ से किये कुछ का इंतेजार रह गया
मेरी दुनिया भी अजीब दुनिया है
मैं अपने में खुद ही सवाल रह गया
जंग किसी मकसद के लिए लड़े तो जायज है
फिर से कोई हिन्दू और मुसलमान रह गया
रचना- लव_तिवारी - 13-09-2016
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