मानव धर्म प्रसार व्याख्यानमाला फरीदाबाद हरियाणा
(२८ सितम्बर २०२५ को दिया गया व्याख्यान)
एक बहुत सीधा सा प्रश्न जो लोगों का होता है कि मानव धर्म प्रसार क्यों? तो इसका उत्तर भी बहुत अलग नहीं है। हजारों साल से जो उत्तर दिया जा रहा है वही उत्तर आज भी सही है और हजारों साल का उत्तर यही है कि संसार में दुख है और उस दुख को दूर करने के लिए आदमी तरह-तरह के उपाय कर रहा है।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा दुखालयम शाश्वतम, संसार दुख का घर है। भगवान बुद्ध आते हैं ढाई हजार साल पहले उनसे कहा गया कि आपका आपकी साधना का सार क्या है? तो उन्होंने चार आर्य सत्य बताया और पहला आर्य सत्य ही उन्होंने कहा कि इस संसार में दुख है। तो इस दुख को दूर किया जाना चाहिए।
यह दुख दूर कैसे होगा? कुछ लोग कहते हैं कि यह संसार आनंद के लिए है। तो अच्छी बात है। दुख का उल्टा आनंद ही है। लेकिन फिर वो आनंद मिले कैसे? तो कुछ लोगों ने कहा कि आनंद पाने के लिए रसगुल्ला खाओ। कुछ लोगों ने कहा कि डोरेमोन देखो। कुछ लोगों ने कहा फिल्में देखो। सबके दुख दूर करने और आनंद पाने के तरीके अलग-अलग है।
इंजीनियरिंग कॉलेज में मेरे दोस्त थे। जब सेमेस्टर पास कर जाते थे तो कहते थे ड्रिंक करो। और जब किसी सब्जेक्ट में बैक लग जाता था तो कहते थे ड्रिंक करो। तो सेलिब्रेट करने के लिए भी ड्रिंक करना है और गम बुलाने के लिए भी ड्रिंक करना है। सबके अपने अपने रास्ते हैं। लेकिन इन सारे रास्तों की समस्या यही है कि ये सारे रास्तों की अपनी सीमाएं हैं।
जैसे हम चल तो रहे हैं इस आनंद पाने के इस रास्ते पर दुख पाने के इस रास्ते पर लेकिन चलते-चलते अचानक एक टी पॉइंट आ जाता है। और उस टी पॉइंट के आगे हम जा नहीं सकते। ना लेफ्ट की ओर रास्ता है ना राइट की ओर रास्ता है और फिर वहां खड़ा होकर इंसान यह सोचना शुरू करता है कि वास्तव में जिस रास्ते पर मैं चला था वो रास्ता सही है कि नहीं है।
तो भगवान श्री कृष्ण ने इस रास्ते के लिए एक उपाय बताया उन्होंने कहा माम उपेत्य पुनर्जन्म दुखालय अशाश्वतम यानी इस दुख के घर से इस संसार से बाहर निकलने का एक रास्ता यह है माम उपेत्य मुझे पा जाओ। मैं आप लोगों के सामने आज जो बात रखने जा रहा हूं वो इधर एक महीने के अंदर मेरे अंदर आया है।
और वो ये आया हुआ है कि मैं आज तक सोचता था कि मानव धर्म प्रसार सत्य का मार्ग है, न्याय का मार्ग है, धर्म का मार्ग है, परोपकार का मार्ग है। और हम लोगों को यह सब करना चाहिए। लेकिन सच बताऊं तो अब मुझे यह समझ में आ गया है कि मानव धर्म प्रसार का मार्ग केवल और केवल श्री महाराज जी से किसी को जोड़ देने का मार्ग ये मेरी अपनी व्यक्तिगत अनुभूति है।
इस संसार में जब शास्त्र लिखे गए, मंत्र लिखे गए, धर्म बनाए गए। वो सब हमने किया। मुसलमानों ने कहा कि देवदूत गैब्रियल ने आकर मोहम्मद साहब को कुरान लिखवा दिया। आयत लिखवा दी। क्या उसके पहले धर्म नहीं था? हमारे ऋषियों ने वेद की रिचाओं को देखा, मंत्रों को देखा। क्या उसके पहले धर्म नहीं था?
था तो किस रूप में था? प्रेम के रूप में था। वो प्रेम कैसा था? जैसा प्रेम एक मां अपने बच्चे से करती है। हमारे गुरुदेव बार-बार कहते थे इस बात को कि इस संसार में अगर हम रह पा रहे हैं अपनी तमाम कमजोरियों के साथ जन्मो जन्मों के संस्कार और पाप के साथ तो इसका सिर्फ और सिर्फ यही कारण है कि हम अपने परमात्मा अपने गुरु की दया की छाया में रह रहे हैं।
इसके अतिरिक्त हमारे पास जीने का और कोई कारण नहीं है। इसके अतिरिक्त हमारे पास सुख से रहने का और कोई कारण नहीं। उन्होंने जो एक छतरी लगा दी है हमारे ऊपर उस छतरी के कारण हम जीवित हैं और सुख से जीवित हैं। और इसीलिए हम कहते हैं ना गुरुवर चरण कमल की छाया करती दूर तापत्रय माया। जब तक पूर्ण ना होती दाया मिलते नहीं गरुड़ के कामी।
तो यह गुरुवर के चरण कमल की छाया, मैं आपसे यह अनुरोध करूंगा कि जब भी आप आरती गाओ कम से कम इस जगह पर आकर आंखें बंद करके रुक जाया करो और सोचा करो कि हमारे गुरुदेव परमहंस बाबा गंगाराम दास जी जिनको आप श्री महाराज जी कहते हो उनकी उनके चरण कमल कैसे छाया बन के हमारे ऊपर है वृहदाकार में और श्री महाराज जी का यह कहना कि हम इसीलिए सुख से हैं क्योंकि ईश्वर हमको सुख से रखे हुए हमारी कोई सामर्थ्य नहीं है।
श्रीमद् भगवत गीता में एक स्थान पर आता है कि अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण को देखा उनके विश्व रूप को देखा तो क्या अर्जुन की सामर्थ्य थी? निश्चित तौर पर रही होगी। उनका संस्कार रहा होगा। लेकिन हमारा जितना संस्कार है, हमारा जितना पुण्य है, परोपकार है, प्रेम है, क्या वह पर्याप्त है ईश्वर को देखने के लिए?
तो भगवान श्री कृष्ण उसका उत्तर देते हुए अर्जुन से कहते हैं कि मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं
रूपं परं दर्शितमात्मयोगात्।
तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यं
कि तुम जो मुझे देख पा रहे हो मेरे विश्वरूप को देख पा रहे हो यह सिर्फ इसलिए देख पा रहे हो क्योंकि मैं तुमसे खुश हूं। जैसे यहां दो बच्चे बैठे हुए हैं और ये दो बच्चे पक्का शैतानी करते होंगे। लेकिन इस शैतानी के बाद भी इनकी मम्मी क्या करती है? इनसे खुश रहती है। इनको देखकर खुश हो जाती है। इनके लिए फिर से खाना बनाती है। इनके लिए कपड़ा धोती है। करती है ना मम्मा से? क्यों करती है? ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि तुम बहुत अच्छे हो। बहुत अच्छा काम कर रहे हो तुम। ऐसा इसलिए है क्योंकि मम्मी का नेचर ही है तुमको प्यार करना।
समझ रहे हो ना? हमने कितनी गलतियां की है। लेकिन ईश्वर की यह प्रकृति है। गुरु की यह प्रकृति है कि उसने हमारे ऊपर कृपा कर दी। उस कृपा का क्या कारण है? हमें नहीं पता। इसलिए शास्त्रों में एक शब्द आया अहेतु की कृपा। इसका कोई हेतु नहीं है। इसका कोई कारण नहीं है। बस हमारे गुरुदेव ने हमारे पर कृपा कर दी। हमारे ईश्वर ने हमारे पर कृपा कर दी।
इसलिए जब हम मानव धर्म प्रसार की अब बात करेंगे और मैं आपसे इसलिए कह रहा हूं कि मुझे गुरु की उस अहेतुकी कृपा का अनुभव हो रहा है। उन्होंने बस कृपा कर दी। और मानव धर्म प्रसार का एक बहुत ही सीधा सा मतलब है। कोई भी मुझसे अब पूछ रहा है भैया ये करना है आश्रम जाओ। भैया कोई समस्या है गुरुदेव को याद करो मैं आपसे अभी थोड़ी देर पहले जो बातें कर रहा था कि वेद की ऋचाएं वेद के मंत्र शास्त्र ये जब लिखे गए इससे पहले भी क्या था इससे पहले प्रेम था इससे पहले भाव था।
इससे पहले भक्ति थी। संसार में ऐसे कितने लोग है जिनको शास्त्र पढ़ना नहीं आता जो अनपढ़ है क्या उनके ऊपर ईश्वर की कृपा नहीं है और ऐसा भी हो सकता है कि उन अनपढ़ो में से कोई कोई हमसे और आपसे भी बहुत ऊंचे ज्ञानी हो। कबीर साहब कहते हैं ना कबीर साहब कहते हैं मसी कागज छुइयो नहीं कलम गह्यो नहीं हाथ। उन्होंने स्याही नहीं छुआ, कागज नहीं छुआ, कलम नहीं छुआ लेकिन कबीर साहब से बड़ा कोई भक्त हुआ क्या?
भक्त शिरोमणि है इतने बड़े भक्त शिरोमणि कि कबीरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर पाछे पाछे हरी फिरे कहत कबीर कबीर। भगवान खुद उनके पीछे पीछे घूम रहे है कबीर कबीर सुनो तो सुनो तो। श्रीमद् भागवत पुराण कहता है कि मैं अपने निर्मल भक्तों के पीछे इसलिए भागता हूं ताकि उनके पैर से उड़ने वाली धूल मुझे पवित्र कर दे।
ये ईश्वर कह रहे हैं तो ये जो भाव है ये ये जो प्रेम है ये भक्ति है ये ना मंत्र को मंत्र का मुंह देखती है ये ना तो शास्त्र का मुंह देखती है और ना ही ये किसी कर्मकांड का मुंह देखती है ये केवल और केवल प्रेम का देखती है इसलिए बहुत सारे आपको संसार में ज्ञानी भक्त मिलेंगे बहुत ज्ञानी होंगे बहुत ज्ञान की बातें करेंगे बहुत सदाचारी लोग मिलेंगे कर्मकांडी लोग मिलेंगे यज्ञ बहुत अच्छे अच्छे करवाने वाले लोग मिलेंगे लेकिन ईश्वर तो उनको ही पकड़ता है जिनके पास भाव प्रेम।
बहुत ज्ञानी व्यक्ति अपने आचरण से गिर जाता है। किसी ने कहा कि मैं क्रोध नहीं करूंगा। उसने जीवन भर इस व्रत को निभाया। एकाएक एक दिन उसके साथ कुछ ऐसा हुआ कि उसका उसको क्रोध आ गया और उसके जीवन भर का व्रत खत्म हो गया। पहले के जमाने में ऐसे ऐसे ब्रह्मचारी ऋषि होते थे जो लोग बताते हैं कि लंगोट उतारते ही नहीं थे ताकि उनके मन में काम वासना ना आए विकार ना आए।
हमारे गाजीपुर के ही थे गाजीपुरी के महर्षि विश्वामित्र उनकी और मेनका की कथा सब लोग जानते हैं। उनकी भी तपस्या भंग हो गई। और महर्षि विश्वामित्र के विषय में मैं पढ़ रहा था कि महर्षि विश्वामित्र ने पांच बार हजार वर्षों की तपस्याएं की। पांच बार एक बार क्रोध आया उसमें उन्होंने महर्षि विश्वा ब्रह्मा वशिष्ठ के बच्चों को मार दिया। एक बार क्रोध आया उनको श्राप दे दिया। एक बार उनको विकार चढ़ा तो मेनका के साथ हो गए। आखिरी बार में जब उनकी तपस्या सफल हुई। जब वो ब्रह्मर्षि बने उस समय उन्होंने कहा कि अब मैं केवल और केवल अपना ध्यान ईश्वर में ही लगाऊंगा और कहीं नहीं लगाऊंगा। कोई कुछ भी करे कहे मैं अब बोलूंगा ही नहीं। ध्यान ही नहीं दूंगा। तब जाकर उनकी तपस्या सफल हुई।
इसका मतलब है कि अगर हम केवल एक आचरण को पकड़ना चाहे। हम परोपकार को पकड़ना चाहे। हमारे गुरुदेव ने कहा है परोपकार करो। हम केवल परोपकार में लग जाए। वो टिकाऊ नहीं होगा। क्योंकि कहीं ना कहीं जाकर हम रास्ते में भटक जाएंगे। हम सोचे कि हम केवल सुख देने के सूत्र को पकड़े रहे। दूसरे को सुख देंगे, सुख देंगे। कहीं ना कहीं हमारे मन में स्वार्थ घुसना शुरू हो जाएगा। कहीं ना कहीं हम दूसरे से फायदा उठाने की सोचने लगेंगे। तो सूत्रों को नहीं पकड़ना है, पकड़ना है श्री महाराज जी को। हमें खजाने को नहीं पकड़ना है, जो खजांची चाहिए उसी को पकड़ लेंगे। वो हमें सारा खजाना दे देगा।
तो मुझे आज आप लोगों के बीच में जो मुख्य बात कहनी थी वह यही कहनी थी कि हम लोगों को श्री महाराज जी को पकड़ना है और प्रयास यही करना है कि जो भी हमसे मिले उसको हम गुरु तत्व से जोड़ दें। अब मैं आपके सामने डेढ़ महीना पहले आश्रम में एक घटना हुई थी। उस घटना को बता रहा हूं। डेढ़ महीना पहले मिर्जापुर में एक लड़की थी। मिर्जापुर शहर की लड़की। वो लड़की ना बैठ पाती थी ना खड़ी हो पाती थी। सोई रहती थी। बड़ी हुई लेकिन बेड पर ही उसका सारा काम होता था।
एक दिन उसको सपना आया कि गाजीपुर में परमहंस बाबा गंगाराम दास का आश्रम है। उस आश्रम में चली जाओ तुम ठीक हो जाओगी। सुबह उठती है अपने माता-पिता से कहती है कि गाजीपुर में बाबा गंगाराम दास का आश्रम है। मुझे वहां ले चलो। उसके मां बाप कहते हैं अरे सपने में क्या-क्या आता रहता है। उसकी मां ने कहा कि एक बार पता तो कर लो। हो सकता है कोई आश्रम हो। और महापुरुषों के नाम का सपना आना भी बड़ी बात है। उन्होंने पता किया पता चला हां गाजीपुर में एक गुरु का आश्रम ऐसा है श्री गंगा आश्रम। वो लोग उनको लेकर गाजीपुर पहुंचे शाम को।
जो हमारे यहां कथा मंडप है उस कथा मंडप में उस लड़की को लिटा दिया गया। साधुओं ने पूछा क्यों आए हो? उन्होंने कहा कि हमें सपना आया था हम लोग दर्शन करने आए। जो लड़की जीवन भर नहीं बैठी भी नहीं थी अपने से रात में खाना खिलाया गया उनको उसी स्थान पर वो सोए सुबह उठे तो मां-बाप तो देखे लड़की बैठी हुई है। और फिर उसके बाद आश्रम के साधुओं ने कहा कि जब सालों बाद आपके जीवन में ऐसा चमत्कार हो गया। तो अब एक काम करिए कि आप लोग यहां चार-पांच दिन रुक जाइए।
और ऐसा अक्सर होता है शिखा की तबीयत बहुत खराब थी। आश्रम में भोला बाबा ने कहा हमसे कई बार कि तुम आश्रम में शिखा को लेकर 10 दिन रुको और हम लोग 10 दिन करके कई बार आश्रम में रुके यज्ञ में रुके उसके बाद रुके पहले रुके और सुधार होता गया। उस लड़की ने पांच दिन बाद श्री महाराज जी के समाधि स्थल की परिक्रमा की और पैदल चलके वहां से गई मिर्जापुर।
आप लोगों के बीच में ये बात बताने का मतलब है आप लोग विश्वासी हो गुरु महाराज जी को मानते हो आप उनकी शक्ति को जानते हो इसलिए मैं यह बात कह दिया नहीं तो मैं ऐसे कहता भी नहीं और ये इकलौती घटना नहीं है। शहर में मैंने अपने घर पे जब शाखा लगानी शुरू की मानव धर्म की तो मेरे मन में यही आया था कि मैं गाजीपुर में फरीदाबाद में बनारस में घूमता रहता हूं मानव धर्म के विषय में बोलने के लिए लोगों को जगाने के लिए और मैं अपने शहर में ही नहीं लगा रहा हूं शाखा। तो मैंने कहा अब हमारे शहर में शाखा लगे।
अच्छा शाखा लगाने में डर क्या लगता है? अंदर हमारा अहंकार है ना लगता है पता नहीं लोग आएंगे की नहीं। तो हमने शाखा लगा दी शुरू कर दी और ये भी कब शुरू हुआ जब शिखा की तबीयत ख़राब हुई। शिखा ने कहा कि मैं बाबा से मनौती मांग रही हूं कि जब मेरी तबीयत ठीक हो जाएगी तो मैं मानव धर्म का काम करूंगी तो मैंने कहा कि तबीयत ठीक होने का इंतजार क्यों करना? क्यों ये बिजनेस करना बाबा से! पहले ही हम शुरू कर दे मानव धर्म का काम। शाखा लगाई। अच्छा मैंने ये देखा कि हमारा काम है केवल एक कदम आगे बढ़ना फिर तो सारा काम महाराज जी करते हैं। अब ऐसी स्थिति हो गई है नगर शाखा में महाराज जी की दया से कि वो कमरा भर जाता है बैठने की जगह नहीं है। लोग अब कॉलोनी के कहने लगे कि अब आप पीछे स्कूल के कैंपस में ले जाइए ताकि और लोग आ सके। लोग आ रहे हैं।
उसमें एमएएच इंटर कॉलेज के एक संतोष भैया आते हैं। और संतोष भैया की कहानी मैं बड़े चाव से सबको उनकी अनुमति लेकर सुनाता हूं। संतोष भैया आज से सात आठ साल पहले मुझे मिले और वहीं गाजीपुर के लाल दरवाजा में उनकी एक दुकान थी किराए के मकान में किराने की दुकान थी जो 40 सालों से चल रही थी। उनके पिताजी चलाते थे। फिर वो चलाए। संतोष भैया ने एक दिन मुझसे कहा कि मैं बड़ा बड़ा परेशान हूं क्योंकि मकान मालिक ने मेरे ऊपर मुकदमा कर दिया है। मैंने उसके ऊपर मुकदमा कर दिया। मैंने कहा कारण क्या है? वो निकालना चाह रहा है। मैं निकलना नहीं चाहता हूं। मैंने कहा क्यों?
वो कह रहे हैं कि क्योंकि मेरे ग्राहक टूट जाएंगे। 40 साल से जो ग्राहक यहां पर है मैंने कहा कि भाई किराए का ही है। आपका तो है नहीं। उन्होंने कहा हां बात तो सही है मैंने कहा कि हमारे जो गुरुदेव है वो कहते हैं सत्य के मार्ग पर चलो सब ठीक हो जाएगा और झूठ के मार्ग पर चलने चलोगे तो कभी आगे नहीं बढ़ पाओगे तो उन्होंने कहा कि क्या करूं। मैं मैंने कहा कि ऐसे ही परेशान हो आप मुकदमा चल रहा है वो भी मुकदमा कर रहा है रोज गालियां भी दे रहा है झगड़े हो रहे हैं क्या फायदा ऐसी दुकानदारी का।
उन्होंने एक दिन निर्णय लिया महाराज जी का नाम लेके और छोड़ दी किराए की दुकान एमएएच इंटर कॉलेज के पास उनका उनका अपना घर है। उसी घर में उन्होंने अपने किराने की दुकान शुरू की और एक साल के अंदर ऐसी स्थिति आ गई है कि उनका पूरा घर उसमें लगा रहता है। फिर भी उनको समय नहीं मिल रहा है सोने का।
अभी जब हमारी शाखा में आना शुरू हुए तो उन्होंने कहा कि मेरी किडनी में समस्या चल रही है दो-तीन साल से। आयुर्वेद के डॉक्टर्स को दिखा चुके हैं। एलोपैथ के डॉक्टर्स को दिखा चुके हैं। सुधार नहीं हो रहा है। मैंने उनसे कहा कि भैया मेरा तो सीधा सा मार्ग है। आपको कोई समस्या हो जाइए। समाधि स्थल पर महाराज जी से कही। संतोष भैया को धोती कुर्ता पहना के समाधि स्थल पर ले गया। परिक्रमा करवाया। उन्होंने महाराज जी से बात की। फिर भोला बाबा से मिलवा दिया। भोला बाबा ने 40 मिनट उनसे बात करने के बाद उनको नवग्रह शांति महामंत्र दिया।
नवग्रह शांति महामंत्र पढ़ते पढ़ते एक दिन सिर्फ एक हफ्ते के अंदर हुआ है और क्योंकि वो हर हफ्ते शाखा में आते हैं भजन गाते हैं। इसलिए मुझे पता है कि मेरे सामने की बात है दो-तीन महीना पहले उन्होंने नवग्रह शांति पाठ पढ़ते पढ़ते एक दिन सपने में नीम करौली बाबा को देखा उसी दिन और वो नीम करौली बाबा बार-बार उनके सपने में आ रहे थे। उसी दिन उन्होंने अपना छोड़ा घर उत्तराखंड में नीमकरोली बाबा के मंदिर में गए और बता रहे थे।
और यह उन्होंने शाखा में सबके सामने बताया हुआ है कि जब वो मंदिर में घुस रहे थे वो घुस नहीं पा रहे थे कड़ाके की ठंड लग रही थी फीवर आ रहा था उनको देह कांप रही थी वो अंदर घुसे और रोते रोते नीम करौली बाबा के पास एक घंटे तक खड़े रहे उनकी मूर्ति के सामने और जब से वहां से आए हैं उनकी समस्या ठीक हो रही है उनकी चिंता खत्म हो गई। हुआ कैसे?
उस लड़की को जो स्वप्न आया था महाराज जी का। महाराज जी के पास आने पर, इनको महाराज जी को पता है कि आपकी समस्या का समाधान कहां होना है कैसे होना है तो वही सारी जगह एक एक रूप में वही बैठे हुए है लेकिन उनको पता है कि आपको कैसे ठीक रखना है तो उन्होंने आपको सही जगह वो पहुंचा दिया और वो नियमित रूप से आ रहे है उन्होंने सिर्फ यही करना शुरू किया है कुछ नहीं करना है। श्री महाराज जी के चरणों में अपने गुरु के चरणों श्रद्धा हो जाए और कछु नहीं चाहिए निशदिन तुम्हारी सेव।
अगर हम अपने गुरु की सेवा कर रहे हैं और हमको इसके अलावा कुछ नहीं चाहिए यकीन मानिए जीवन में दुख खत्म करने का और सुख पाने का इससे बड़ा कोई मार्ग नहीं। लोग मुझसे कहते हैं अपने व्यक्तिगत अनुभव मत बताओ लोग कहते हैं अपना व्यक्तिगत मंत्र मत बताओ मैं इस बात को नहीं मानता हूं। संसार दुख से जल रहा है और आप अपने अनुभव को लेकर बैठे हुए हो ताकि हम जाकर सिद्ध हो जाए।
आचार्य रामानुज दक्षिण भारत के बहुत बड़े संत! उनके गुरु ने उनको दीक्षा दी और दीक्षा में मंत्र बताया कि बेटा जो मंत्र मैं तुम्हें बता रहा हूं इससे मनुष्य सीधा मोक्ष पा जाता है। उन्होंने कहा मंत्र क्या है? ओम नमो नारायणाय। रामानुजाचार्य जिन्हें शेषनाग का अवतार माना जाता है। भगवान लक्ष्मण का अवतार माना जाता है। क्यों? उनका नाम ही है राम अनुज। राम का छोटा भाई। वह संत रामानुजाचार्य विशिष्टाद्वैत सिद्धांत के महान व्याख्याता उसी समय मंदिर की प्राचीर पर चढ़ के चिल्लाते हैं कि सुनो सुनो यहां गांव के लोगों मंदिर के लोगों आओ तुमसे कुछ बात करनी है।
और गांव के और मंदिर के लोग जब इकट्ठे होते हैं तो कहते हैं सुनो मैं तुमको मोक्ष का मार्ग बता रहा हूं। मेरे साथ चिल्लाओ ओम नमो नारायणाय और इसी को जपते रहो। नीचे उतरे उनके गुरु ने कान पकड़ा दो लगाए और कहा कि मूर्ख ये गुप्त मंत्र था। तुमने इसको जग जाहिर कर दिया। उन्होंने कहा कि महाराज, हर मनुष्य का दायित्व है कि दूसरे को सुख दे। दूसरे को सत्य का मार्ग बताएं, मोक्ष का मार्ग बताएं। तो ऐसे में जब ये संसार जल रहा है तो मैं ये मंत्र अपने तक गुप्त कैसे रखूं? ये तो सबको पता होना चाहिए। सब जपना चाहिए इसको।
वह संत रामानुजाचार्य और उनकी इस बात को जब मैं सोचता हूं तो मुझे लगता है कि सबको बताने की जरूरत है कि मानव धर्म प्रसार का जो सबसे गुप्त मार्ग है वो है श्री महाराज जो सबसे गुप्त मंत्र है जो सिद्ध मंत्र है वो है श्री महाराज जी। शिखा प्रोफेसर है पढ़ी लिखी है। गाजीपुर आने के बाद जब मैं इस मानव धर्म की शाखाओं में जाता था तो मुझे धोती कुर्ता दे देती थी आराम से जाओ। नहीं जाता था तो पूछती थी क्यों नहीं गए हो जाया करो।
जब मैं संडे को आश्रम जाता था मैं उससे कहता था तुम भी चलो तो कहती थी नही। क्या है आश्रम भाई तुम लोगों का मानव धर्म प्रसार की जय महाराज जी की जय और कुछ तो ज्ञान की बात करते नहीं हो तुम लोग शास्त्र की बात करते नहीं हो तुम्हारे यहां के साधु अनपढ़ है आश्रम के। ले दे के एक बापू जी बोलते हैं उनकी बात भी कितनी सुनू मैं। मैं भी जिद नहीं करता था। एक दिन वो समय आया कि वही शिखा जो आश्रम नहीं जाती थी। वही शिखा जिसे आश्रम के साधू अनपढ़ लगते थे। वही शिखा जिसे श्री महाराज जी में उतना विश्वास नहीं था जितना होना चाहिए था।
हालांकि वह यह बात मुझसे कहती थी कि जब तुम मानव धर्म प्रसार की शाखा से आते हो तो तुम्हारा चेहरा चमकता रहता है। जब वह बीमार पड़ी और इतने भयावह तरीके से बीमार पड़ी कि अगर मैं उसके साथ नहीं हूं तो वो रह नहीं सकती। डरती रहती थी हमेशा। और ये दो साल पहले की बात है। डरती रहती थी। मैंने उसे कहा कि चलो हम लोग आश्रम चले। मरता क्या ना करता। आश्रम गई बाबा ने उसको बजरंग बाण दिया आचार्य जी ने उसको हनुमान बाूहक दिया। ये पढ़ते रहो पढ़ते रहो। वो निकलना चाहती थी बाहर। वो पढ़ती रही बार-बार उस मार्ग पर चलती रही जो भोला बाबा ने बताया और अभी जब हम लोग आश्रम गए थे तो भोला बाबा से कह रही थी कि बाबा मैं बाहर निकल आई और सच बता रही हूं कि इन डेढ़ दो सालों में जब भी मुझे डर लगता था तो मुझे दिखता था कि हनुमान जी मेरे साथ चल रहे हैं।
जब भी मैं परेशान रहती थी तो मुझे लगता था कि बड़े महाराज जी और महाराज जी मुझे घेरे हुए हैं। ये उसका व्यक्तिगत अनुभव है। और आज वो शिखा जब कॉलोनी में चलती है और किसी कॉलोनी के भैया भाभी से मिलती है तो कहती है आप शाखा में क्यों नहीं आ रहे? आप शाखा में आया करिए। मानव धर्म प्रसार की शाखा में आप नहीं आते। अब हम किसी के यहां बैठते हैं तो हमारी चर्चा का 50% से अधिक अंश होता है श्री महाराज जी मानव धर्म प्रसार का । जुड़ना किससे है बातें किसकी करनी है ये हम लोग अगर समझ जाए हमारा जीवन बस वहीं से बदलना शुरू हो जाएगा।
हमारे जीवन से दुख वहीं से खत्म होना शुरू हो जाएगा। ये क्रियाएं हैं ना हम सत्य बोलेंगे हम अहिंसा का पालन करेंगे हम ये करेंगे। अरे कुछ मत करो तुम और तुम्हारी सामर्थ्य क्या है कि तुम कुछ कर सकते हो। इसकान में जब मैं प्रवचन सुन रहा था तो एक साधु ने बोला कि हम चैतन्य महाप्रभु के साथ नित्यानंद महाप्रभु की पूजा करते हैं। हम भगवान श्री कृष्ण के साथ बलराम जी की पूजा करते हैं। क्यों करते हैं? क्योंकि बलराम जी हमको शक्ति दे कि हम जप कर पाए। जप करना हमारे हाथ में नहीं है।
16 माला जप कौन कर पाता है रोज? हम ही लोगों को जो ध्यान मिला हुआ है जप मिला हुआ है आप लोग रोज करते हो क्या? इस पर भी मैं आऊंगा। लेकिन अभी शुरुआत यहां से करनी है कि अगर हमसे वो जो जप होना चाहिए, जो ध्यान होना चाहिए, वो नहीं हो रहा है, तो इसका मतलब है कि हमने महाराज जी को अभी नहीं पकड़ा। क्योंकि शक्ति तो वहां से आनी है। शक्ति वहां से आनी है। तो जब मन में वो भाव पहले तो नहीं रहेगा अगर हम अपने गुरु से नहीं जुड़े हुए अपने गुरु की शक्ति में हमको विश्वास नहीं है तो फिर बाकी सब चीजें बेकार है।
हम करके भी कुछ नहीं कर पाएंगे। जानकर भी कुछ नहीं जान पाएंगे। इसलिए एक एक छोटा सा श्लोक आपके सामने मैं दाग रहा हूं। शिखा मुझसे बार-बार कहती है इसको तो पता नहीं कहां से इतना श्लोक याद हो गया है। कुछ कहूंगी तो एक दाग देगा। तो मैं एक दागने जा रहा हूं मिसाईल। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं
नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया।
शक्य एवंविधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा।।
न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानै
र्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः।
एवंरूपः शक्य अहं नृलोके
द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर।।
भगवान कहते हैं कि देखो तुम मुझे पाना चाहते हो मुझसे प्यार करना चाहते हो तो कहते हैं वेद से नहीं न वेद यज्ञ से नहीं अध्ययन से नहीं दान से नहीं, तप से नहीं, घोर क्रियाओं से नहीं। अच्छा सारा संसार तो इसी को आज तक धर्म समझता था ना? यही धर्म है, वेद पढ़ लो। भगवान कहे कुछ नहीं। इनसे तो मैं मिल ही नहीं सकता हूं। इनसे तो तुम मुझे देख ही नहीं सकते हो। और यही हुआ।
वेद पढ़ा लोगों ने, वेद पढ़ के दुनिया को बेवकूफ़ बनाना शुरू किया। यज्ञ करना शुरू किया, यज्ञ के नाम पे पैसा बटोर कर अपना आधा पैसा इधर और बाकी पैसा लगा दिया, यज्ञ में सड़ी गली सामग्री डाल के। दान किया तो दो केले दान दे रहे हैं। बाकी फोटो खिंचवा के Facebook पर डाल रहे हैं। जबकि दान की विधि क्या है? गुप्त पता भी ना चले। दाहिने हाथ से दे रहे हो बाई को पता ना चले कि दान दे रहे हैं।
घोर क्रियाएं कर रहे हैं। हाथ ऊपर करके एक टांग पर तपस्या कर रहे हैं। हजारों साल तक। भगवान श्री कृष्ण खुद कह रहे है कि आसुरी तपस्या है। अपने को कष्ट देके कौन सा भाई तप होता है? तो यह भगवान कहते हैं इससे कुछ नहीं होने वाला है। तो कहते हैं कैसे होगा? तो कहते हैं
भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन।
ज्ञातुं दृष्टुं च तत्त्वेन प्रवेष्टुं च परंतप।।11.54।।
अनन्य भक्ति से मैं मिलता हूं। अनन्य भक्ति क्या होती है? जैसे जब एक लड़का और लड़की प्यार में होते हैं। तो वो एक दूसरे के सिवा और कुछ नहीं सोचते हैं। ये श्री मेरा उदाहरण नहीं है। आप लोग ये मत सोचना कि ये अपना शुरू किया। यह श्री रामकृष्ण परमहंस का उदाहरण है। श्री रामकृष्ण परमहंस कहते हैं कि जब एक पुरुष और स्त्री प्रेम में होते हैं तो पुरुष नौकरी पे है लेकिन सोचता किसके विषय में? सारा काम कर रहा है। सोच किसे रहा है? स्त्री के विषय में। स्त्री कहीं पर है। लेकिन सोच किसे रही है? विषय में पुरुष के विषय में। घर का सारा काम कर रही है। सोच रही है पुरुष के विषय में।
फिर वो दूसरा उदाहरण देते हैं दाई का। कि दाई आपके घर में आ रही है। आपका बच्चा संभाल रही है। आपको लग रहा है कि यह दाई तो सबसे ज्यादा प्यार मेरे बच्चे से कर रही है। लेकिन वो जो मेड है उसका पूरा ध्यान कहां पर है? अपने बच्चे पर। मेरा बच्चा अभी सोया होगा कि नहीं? और जैसे ही उसको आपके यहां से छुट्टी मिलेगी। प्यार होता तो आपके पास रुकती ना। नहीं रुकती है। दौड़ के भागती अपने बच्चे के पास अपने घर।
श्री रामकृष्ण परमहंस कहते हैं कि ये जो अनन्य भक्ति है ये यही है। संसार में है काम तो करना पड़ेगा। एलआईसी कर रहे हो, आप पढ़ा रहे हो, आप नौकरी कर रहे हो, सब करो। लेकिन ध्यान कहां रहना चाहिए? भगवान, अपने गुरु पर। और वो इसका उदाहरण देते हैं कि जैसे कटहल आप काटते हो तो कैसे काटते हो? हाथ में तेल लगा के काटते हो ताकि उसका दूध आपके हाथ में ना चूके। तो कहते हैं इसी तरह से संसार का काम करो। लेकिन हाथ में अपने गुरु की भक्ति लगाकर, भक्ति का तेल लगाकर मन हमेशा उनमें लगा रहे।
तो आज जो आपके सामने मेरी पहली बात थी तरह-तरह के उदाहरणों से, दृष्टांतों से, सूत्रों से सिर्फ यह कि किसी और चीज पर भरोसा नहीं करो अपने गुरु पे। पहली बात वो नहीं रहेंगे। आप कुछ नहीं कर पाओगे। कुछ भी नहीं कर पाओगे। आपने दुनिया का जो बड़ा से बड़ा पुण्य सोचा होगा नहीं हो सकता आपसे। एक दिन करोगे, अगले दिन नहीं होंगे। करोगे। है ना? तो पहले तो वहां पर हो जाएगा भरोसा। अच्छा जब प्यार हो जाता है तो बाकी चीजें अपने आप होती हैं। आपको अपने बच्चे से प्यार है तो उसके लिए टीशर्ट खरीदते समय आप सोचोगे नहीं। लेकिन बाहर अगर कोई कह दे भैया हमको एक ₹10 दे दो। तो टीशर्ट का हो सकता है कि एक हज़ारवा हिस्सा भी ना हो दाम का। लेकिन आप कहोगे क्यों चाहिए? ऐसे बढ़िया जाके कुछ काम करो। क्यों मांग रहे हो? है ना।
तो प्रेम जो मूल बात है वो अपने गुरु से तब जाकर जब यह प्रेम उपज जाएगा मन में यह भाव उपज जाएगा और अपने गुरु को हम बार-बार सोचते रहेंगे तब जाकर हमारी बाकी चीजें शुरू होंगी जो हमारे गुरु ने कहा है फिर हम उनकी बात मानना शुरू करेंगे तो अब हम आते हैं अपने गुरु की बात पर तो हमारे गुरु का दो मार्ग है एक मार्ग है आश्रम का मार्ग और एक मार्ग है समाज का मार्ग समाज का जो मार्ग है उसके जो सूत्र है वह आप जान ही रहे और उस पर भरसक चलने की कोशिश कर रहे हो जो उनकी कृपा से ही संभव है।
जो एक मार्ग है आश्रम का मार्ग वो है साधना का मार्ग। बहुत बार हम हमारे मन में ये आता है कि हम लोग उनके उनकी शाखा लगा रहे हैं तो हमारा काम हो गया। बात सही है। काम तो उनका है ही और वो कहते भी थे कि मानव धर्म प्रसार मेरी आत्मा है। लेकिन आपको यह भी पता होना चाहिए कि हमारे गुरुदेव कभी-कभी लोगों के सामने बैठकर ध्यान में चले जाते थे। कभी-कभी बड़े महाराज जी के स्मारक पर बैठकर श्री रामचरितमानस पढ़ने लगते थे। तो लोगों ने कहा कि आपको क्या जरूरत? आप तो भगवान है ना। आपको क्या जरूरत?
मुस्कुरा के कहते थे सब जो देख रहे हैं उनको यह समझ में आना चाहिए कि ध्यान भी जरूरी है जप भी जरूरी है साधना भी जरूरी है। भगवान गौतम बुद्ध जब ध्यान करते थे तो उनके शिष्य ने पूछा उनसे आनंद ने आप क्यों ध्यान करते हो तो उन्होंने कहा कि मैं नहीं करूंगा तो वो सब सोचेंगे कि ध्यान की जरुरत ही नहीं है। तो हमारे गुरुदेव ने जप और ध्यान को हमारे जो डेली लाइफ रूटीन है डेली रूटीन उसमें शामिल करने का एक उन्होंने काम किया।
ठीक है मन साफ रहे सब ठीक रहे लेकिन यह भी जरूरी है। तो यहां पर जितने भी लोग बैठे हुए हैं मैं जानता हूं कि आप लोग मुझसे बहुत ही ऊंचे और एग्जल्टेड पोजीशन में है। लेकिन फिर भी क्योंकि आप लोगों ने मुझे यहां पर जो स्थान दिया है तो उस स्थान का की लाज रखते हुए अपने गुरुदेव के मार्ग की तरफ आप लोगों को ले जाना चाहूंगा और यही कहूंगा कि गुरुदेव में जब विश्वास होगा तो उनके द्वारा दिए गए नाम जप में और ध्यान में भी विश्वास होगा। कुछ ना हो तो कम से कम जो जप है रोज रोज वो तो होना ही चाहिए। सुबह 2 बजे से लेकर रात के 11:00 बजे तक का जो हमारे आश्रम ने हमको समय दिया हुआ है।
सुबह 2:00 बजे से लेकर रात के 11:00 बजे तक और ये जो हमारे हमारे आश्रम का जो नाम जप ध्यान है उसमें अधिक से अधिक 40 मिनट से लेकर 50 मिनट तक लगता है। अगर उतना भी समय हमारे पास नहीं निकल पा रहा है 40 से 50 मिनट तक का तो इसका मतलब है की कहीं हमारी गुरु के प्रति अभी श्रद्धा में कमी है उससे हमारा ही फायदा होना है श्री रामकृष्ण परमहंस की पत्नी शारदा मां कहती थी कि जप और ध्यान से अगर कुछ ना हो तो शरीर तो पवित्र हो जाता है। मन पवित्र हो जाता है और शरीर और मन का पवित्र होना बहुत बड़ी बात है। तो जो लोग यह जप और ध्यान नियमित कर रहे हैं, निरंतर कर रहे है और कभी किसी दिन छूट गया और अगले दिन आपको याद आता है तो इसका मतलब है कि और गुरुदेव को समझने की कोशिश करिए क्योंकि अभी उनकी कृपा हुई नहीं है क्योंकि जिस दिन छूटे ना उस दिन भर मन कुलबुलाना चाहिए कि अरे आज मेरा छूट गया।
अरे आज आज क्यों नहीं हो पाया मेरे से? तो ये दिन भर मन कुलबुलाता है ना तो ये भी एक तरह का ध्यान हो जाता है उनका। यह भी एक तरह का ध्यान है कि नहीं हुआ। फिर भी पहले जमाने में लोग जो चारों धाम की यात्रा होती थी उसमें एक धाम छोड़ देते थे ताकि मरते समय उनका मन कुलबुलाता रहे अरे जगन्नाथ जी छूट गया तो जगन्नाथ जी का नाम मरते समय उनके मन में आ जाए ये सोचने के लिए लोग एक धाम छोड़ देते थे मन में वो बने रहे।
तो मन में भगवान बने रहे मन में हमारे गुरु बने रहे और आप देखोगे जैसे आप टेस्ट करके देखना किसी किसी दिन आप बहुत थके हुए हो। बहुत परेशान हो। आपको लग रहा है कि आपकी तबीयत अंदर से बहुत खराब है। तो दो दो तरीका आपके सामने है। एक तरीका है कि आप मानव धर्म की शाखा में चले जाइए। बैठ जाइए। आप देखेंगे कि एक दो घंटे बाद आपके मन में तरावट आ जाती है। खुश हो जाते हो। लगता है जैसे सब तो ठीक है क्या दिक्कत है।
हमारे यहां नगर शाखा में बहुत से जो नए लोग हैं जो नहीं जानते हैं श्री महाराज जी को आश्रम को। वो आते है और वो कहते हैं कि शाखा में आने के बाद लगता है जैसे कुछ हो गया है। वो क्या हुआ है ये वही जानते है और वो इसलिए आते है और दूसरा तरीका है की अगर शाखा नहीं है तो श्री महाराज जी का नाम लेके फोटो मंदिर सफाई शुद्धि अशुद्धि किसी चीज का ध्यान देने की जरूरत नहीं है। ये सब दुनिया में जितनी चीजें शुद्धि अशुद्धि बनाई गई है अगर आप ध्यान रख सकते हैं तो रखिए नहीं तो यह सब आपको भगवान से दूर करने के लिए बनाई गई है।
मां की गोद में जब बच्चा कूदता है तो मां देखती है क्या कि वो केचप लपेटा हुआ है कि कीचड़ लपेटा हुआ है। कूद गया तो कूद गया। मां उसको ऐसे ही पकड़ लेगी। बाद में बड़े भले थोड़ी देर बाद कहे कि मेरा गंदा कर दिया। तो इन ईश्वर का नाम लेने के लिए गुरु का नाम लेने के लिए किसी चीज की जरूरत नहीं है। बस एक जगह माला रखिए अपने बैग में बैठ जाइए कहीं भी और जपना शुरू कर दीजिए। आप देखेंगे कि दो चार माला के बाद थोड़ी नींद आएगी। थोड़ी अकड़न होगी। थोड़ी डकार आएगी। अगर पेट में गैस भरी हुई है तो डकार भी आती है। डकार आएगी और धीरे-धीरे यहां पर आपको लगेगा ना जैसे कुछ तो री एडजस्टमेंट हो रहा है रीअलाइनमेंट हो रहा है दिमाग में नसे इधर उधर चल रही है और जैसे ही 16 माला आती है हो गया कुछ तो था जो खत्म हो गया।
करके देखिये। हनुमान चालीसा में एक जगह आता है राम रसायन तुम्हारे पासा। पढ़ते हो हनुमान चालीसा? पढ़ा करो। महाराज जी को हनुमान जी बहुत प्रिय थे और किसी को भी दीक्षा देनी होती थी तो सबसे पहले बजरंग बाण का पाठ करवाते थे। पहले बजरंग बाण पढ़ो जम के। तो राम रसायन तुम्हारे पास आवे। सबसे बड़ा रसायन क्या है राम जी का नाम है भगवान का नाम है।
तो जब हमको ये सूत्र पता है तो हम बार-बार दवाई खाने क्यों दौड़ते हैं क्योंकि थके हुए अच्छा रोग हो क्यों रहा है आदमी स्ट्रेस में भैया आपको क्या बताना? आप तो इसी फील्ड में हो। यहां जितने लोग बैठे हुए हैं इनको किसी को बताने की जरूरत नहीं है। आप लोग मुझसे ज्यादा जानते हो मेडिकल का। सब स्ट्रेस में है। सबके पास एक एंबिशन है। सबके पास एक एक डिजायर है। और उस उस चक्कर में हो क्या रहा है कि जो हमें हमारे शरीर को हमारे मन को हमारे मस्तिष्क को आराम मिलना चाहिए था वो आराम मिल नहीं रहा है। है ना? तो जब आराम नहीं मिलेगा तो थकान अंदर की अंदर का स्ट्रेस तनाव हमें करेगा क्या? रोग बन के अपने को मैनिफेस्ट करेगा। तो हम दवाइयां खाना शुरू करते हैं। दवाइयां करती क्या है आज की? कि वो जैसे आयुर्वेद है। आयुर्वेद कहता है कि हम होलिस्टिक पैथी है। क्यों? क्योंकि हम आपके रोग को दबाते नहीं है। हम और अंगों को पोषण देते हैं ताकि आपके रोग को सब मिलके लड़े और खत्म कर दें। एलोपैथ क्या करता है कि वह जहां पर रोग है वहीं पर अटैक करता है और अंगों से ऊर्जा लेकर उसको खत्म करने की कोशिश करता है।
ऐसा लोग आपस में बात करते हैं। मुझे लगता है कि सारी पैथी के बीच में सिर्फ एक पैथी बची हुई है हमारे श्री महाराज जी की पैथी और वो पैथी क्या कहती है? चुपचाप मानव धर्म का काम करो। महाराज जी का नाम लो। जहां तुमको लगे थकान हो रही है। एक जगह बैठ जाओ। जहां लगे कि रोग हो रहा है। बैठ जाओ। उनका नाम लो। ध्यान करो और सो जाओ। आपकी जब आप बैठते हो ध्यान में ना बहुत बार तो हमको ये महसूस नहीं होता है कि हम सांस कहां से लेते है? कभी कभी देखा है सांस कहां से आती जाती है? कहां से आती? यहा से आती जाती हैं नहीं देखा है? देखा है ना? हां तो बस वही पूछ रहा हूं। बहुत बार मैं ऐसे लोगों से पूछता हूं। भाई सांस को कभी महसूस किया है तुमने? नहीं जी कहां से आती है? यहां से आती है बात तब हमारे साथ ऐसी बहुत सारी चीजें हो रही है जिनको हम जानते ही नहीं है की ये हमारे साथ हो रहा है। हमें नींद आ रही है। हमे थकान हो रही है। हमें पता ही नहीं है। जैसे बहुत बार हम देखते हैं लोग आपस में बात कर रहे हैं। बात करते जम्हाई लेंगे फिर बात करेंगे। क्यों जम्हाई ले रहे हो?
मतलब अंदर थकान है बहुत बार लोग सत्संग में बैठते हैं और जमाई लेना शुरू करते हैं जम्हाई आती है तो मुझसे कोई कहता है कि अरे सो रहा है कि सोने दो ये उसके ऊपर गुरु महाराज जी की कृपा हो रही है कि बेचारा सोया नहीं था उसको सत्संग में पता चल रहा है कि मेरी नींद पूरी नहीं हुई मुझे नींद आ रही है। कई बार मैं देखता हूं अच्छे-अच्छे लोग जिनको नींद नहीं आती है। समस्या है वो लोग सत्संग में आगे सो जाते हैं। कोई लोग तो इतना उनको अच्छा लगता है कि वो पूरा सो जाते| क्यों? उनका अंदर से मन पवित्र हो रहा है, तरावट आ रही है उनको, नींद आ रही है। सो, मैं तो कहता हूं कि सत्संग में बिस्तर और तकिया भी होना चाहिए ताकि जिसको थकान लगे, नींद आए, वह सो जाए आके और उसको कोई डिस्टर्ब ना करे।
और एक और चीज है, कि सत्संग चलता रहता है और उनको नींद आती रहती है। इसका मतलब है किसी सत्संग ऐसे तो कोई सोया है और आप बोलो, तो क्या कहेगा? ए क्यों बोल रहे हो? टीवी क्यों चला रहे हो? नींद आ रही है। और ऐसे ही आदमी बोल रहा है माइक लगाकर और वह लोग सोए पड़े हैं सामने। क्यों? कौन सी शक्ति है? बहुत सोचने की जरूरत है हम लोगों को इस तरफ। हम लोगों को जब ध्यान में बैठते हैं, नाम जप करते है। उसी समय अंदर हजार बवाल निकलते है ऊपर। हजार बवाल। ये भी करना है वो भी करना है।
अच्छा भगवान श्री कृष्ण ने एक सबसे अच्छा मार्ग बताया है शरणागति का मार्ग। अर्जुन को उन्होंने सारा उपदेश जब श्रीमद भगवत गीता में दे दिया तो उन्होंने कहा
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।" यह श्रीमद्भगवद्गीता के अठारहवें अध्याय का 66वाँ श्लोक है, जिसका अर्थ है: "सभी धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, तुम शोक मत करो।" यह भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का ज्ञान देते समय कहते हैं, जिसका भाव है कि सभी भौतिक कर्तव्यों या तथाकथित धार्मिक मार्गों को छोड़कर, केवल मुझ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की शरण में आ जाओ, और मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूंगा, इसलिए चिंता मत करो।
हम लोग शरणागति कब ट्राई करते हैं? हमारे पास टाइम भी है क्या शरणागति ट्राई करने का? लेकिन शरणागति ट्राई करने के लिए अगर आपको मौका मिल जाए ये सबसे बढ़िया मौका है। मानव धर्म प्रसार में। जब आप इस शाखा में बैठे हुए हो। हजार काम इस समय आ रहा होगा दिमाग में याद। हजार चीजें आ रही होंगी दिमाग में। लेकिन ये जो दो घंटा अच्छा जो होगा देखा जाएगा। अब महाराज जी देखेंगे अभी तो हम यहां बैठे हुए हैं। ये शरणागति ट्राई करने का सबसे बढ़िया प्लेटफार्म है। रोज जब आप जप में बैठ रहे हो तो हजार समस्याएं जो निकल रही हैं।
मैं पहले करता क्या था कि डायरी लेकर बैठ जाता था। दिमाग में आज लिख लिया डायरी में फिर शुरू किया। मैंने कहा कि नहीं ये भी शरणागति का उल्लंघन है। क्योंकि जब वो बातें उठ रही है। अगर वो बातें जरूरी है तो महाराज जी उनका ख्याल बाद में रखेंगे। पहले उनको मुझे उठने दो, वह किनारे चलती रहेंगी, मैं अपना काम करता रहूं। तो यह जप, ध्यान, यह शाखा, यह सब उसी जो उच्चतम ज्ञान है शरणागति का हमको उस तरफ ले जाने का एक जरिया है। है ना? तो हम यहां पर शरणागति को ट्राई कर सकते हैं। टेस्ट कर सकते हैं। और जो होगा वो महाराज जी देखेंगे। जो हो रहा है महाराज जी देख रहे हैं और जो होगा उसको हम स्वीकार करें। एक्सेप्ट करें।
अगर हम इतनी सी बात समझ जाए क्योंकि अब सवा आठ होने जा रहा है। मेरी गलती है कि मैं आपके पास देर से पहुंचा तो मैं अब आपको और ज्यादा टॉर्चर नहीं करूंगा। मैं अपनी बात अब समाप्त करता हूं और समाप्त करने से पहले ये दो बातें आप लोगों के जेहन में जरूर मैं डालना चाहूंगा। आज की बात का जो मेरा मुख्य बिंदु था। आप संसार का कोई भी अच्छा से अच्छा काम लंबे समय तक नहीं कर सकते हैं जब तक आपके मन में जो पहला चरण है गुरु के प्रति प्रेम गुरु का भाव गुरु को पकड़ना गुरु के प्रति शरणागति वो नहीं है ये सबसे पहला चरण और ये कब तक करना है?
महर्षि पतंजलि अपने योग सूत्र में कहते हैं
"स तु दीर्घकालनैरन्तर्यसत्कारासेवितो दृढभूमिः" योग सूत्र 1.14 का एक प्रसिद्ध श्लोक है जिसका अर्थ है कि जो अभ्यास बहुत समय तक, बिना रुके और पूर्ण श्रद्धा या भक्ति से किया जाता है, वह अभ्यास दृढ़ और स्थापित हो जाता है। यह सूत्र बताता है कि किसी भी अभ्यास को प्रभावी बनाने के लिए तीन प्रमुख घटक आवश्यक हैं: दीर्घकाल (लंबे समय तक), नैरन्तर्य (बिना किसी रुकावट के निरंतर), और सत्कार (शद्धा या भक्ति के साथ)।
जब तक ये दृढ़ ना हो जाए तब तक अभ्यास। तो ये दृढ़ कब होगा तो कहते हैं दीर्घ काल लंबे समय तक ये करना पड़ेगा ये शाखा में आना ये जप करना लंबे समय तक निरंतर ये निरंतर करना पड़ेगा। ऐसा नहीं कि एक दिन में जोर लगावे सूते बार मासा। रोज रोज करना होगा। एक ही माला करो लेकिन रोज करो एक ही तुलसी का दल नारायण को चढ़ाओ लेकिन रोज चढ़ाओ शाखा में आप आ रहे हो महीने में एक ही दिन आओ लेकिन हर महीने एक दिन आओ तो दीर्घ काल तक नैरंतर्य के साथ सत्कार सेविता यानी श्रद्धा के साथ करो। ये नहीं कि अब आज शाखा लगी है बड़ा दूर है बहुत मुश्किल है आज भी लग गई आज तो दशहरा था आज तो नवरात्र था आज तो घर पे रिश्तेदार आए हैं आज तो ये होने वाला है नहीं।
लगनी है तो लगनी, जाना है तो जाना है। सत्कार श्रद्धा वो श्रद्धा होनी चाहिए। हमारे नगर शाखा दिनभर स्कूल का काम रहेगा। एक दिन मेरी किताब का विमोचन था। शाम के 5:00 बजे खाली हुए। लोगों ने सोचा कि आज तो बिल्कुल नहीं होगा। तुरंत मैसेज गया कि नहीं 6:00 बजे से शाखा लगेगी। लगी शाखा और 9:00 बजे तक एकदम उस दिन जो गहरी नींद आती है। जो गहरी नींद आई। करना है तो करना है श्रद्धा के साथ करना है तब जाकर यह दृढ़ होगा मन में और दूसरा मानव धर्म प्रसार का काम तो हम करते ही हैं लेकिन जिस एक अभ्यास को हम भूल जाते हैं हमारा जप हमारा ध्यान उसको भी रोज रोज करते रहना है ताकि हम आध्यात्मिक रूप से उन्नत होते रहे हमारे अंदर कुछ होगा तभी हम कुछ दे पाएंगे हमारा जो भाव होगा वही भाव हम बांट पाएंगे। उधार लिया हुआ भाव कभी नहीं बांटा जा सकता। श्री महाराज जी की जय। मानव धर्म प्रसार की जय।
भाषण यहां सुना जा सकता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें