'बांड़ त बांड़ तीन हाथ क पगहो जाई'
गनपत सहाय क लइका मनसुख लाल छोटहने प से बहुत पढ़ाकू रहल। जब सभ लइका स्कूले से लउट के खरिहाने भागैं कबड्डी, बरगत्ता ,गुल्ली-डंडा खेले तभ मनसुख मुंशी जी का घरे चलि जात रहल अलजबरा पढ़े। गांव भर में हल्ला रहल कि गनपत पेसकारै रहि गइलें मनसुखा त मुनसिफ बनि के रही।
आजु-काल्हु गांव भर में चार लोगन क चरचा कहूं न कहूं रोजिन्ना होखेला । ओहमें सबसे उप्पर हईं कहनी काकी। आजु ऊ कहवां कउन कहनी मरले बानी एही बखान में खलिहर मउगिन क पुरहर दीन नीमने ओरा जाला।ओइसे गांव घर क झगड़ा कहनी काकी के रहले उनका कहनी-कहावत मा अझुरा के ओरा जाला। अभ केहू के नीक लागै चाहे बाउर हल-भल निमनै होला, से उनकर मान सबही करेला।
दूसर हउवैं खरचू सिंह। गांव जवार में उनका रोब क बाजा बाजे ला। उनका रहले गांव में केहू बहरा से आके केहू प रोब जमाले ई त होखिए ना सकत । गांव के मान-सम्मान खातिन केहू से टकरा जइहैं। मजाल का उनके रहले गांव का ओर केहू आंखि उठा के ताक सके , एकदम सीना तान के बीच मा ठाढ़ हो जइहैं। बबुआन हउवैं, बड़ खेतिहर हवैं, पढ़ला-लिखला के बाद नोकरी में जाए क नाम लिहलें त बाबा अड़ंगा लगा देहलन 'हमार एक्कैगो पोता, उहो नोकरी करी ? इज्जत ,जायदाद, नोकर -चाकर का नइखे?' से ऊ गांवें में रहि गइलैं। बलाक , बीडिओ, तहसील, पुलुस, चउकी-थाना हर गांव क एगो दोसरका ठीहा-ठेकान होलन। उहवों खरचू सिंह क थोर-ढेर चली जाला। एही से परधानी जबले गांवें में आइल, बाबा-दादा के जमाना से उनहीं के घरे खूंटा गाड़ि के रहि गइल। मरदन क किछु दीन उनका बखान मा बीत जाला। जे जब्बर होला सबका पेंच में आपन टांग ढीले से कहां रोक पावे। से अइसन मनई के कोट-कचहरी का फेर में पड़ल कउनो मुसकिल ना। से खरचुओ के कपारे मुकदमन क मउर लदलै रहेला। बाकिर ऊ गनपत सहाय के रहला निफिकिर रहेलंऽ, आखिर कवना दीन खातिन बानैं ऊ? गांव क शान उनका रहले बनल रहेला।
तीसर हउवैं गनपत सहाय। जबले अदलती मा पेसकार का भईलैं गांव, कोट-कचहरी के आपन चट्टी-चउराहा बूझि लिहलस।गनपतो कब्बो गांव के नाम प पाछे ना भइलैं। जरि-मरि के जइसे बुझाइल गांव क आगि वकीलन के तापे ना दिहलन।
एह तरे घरे खातिन काकी, लड़े खातिन खरचू आ बहरा जरे खातिन गनपत। ई तीनो गांव क मान, शान आ जान कहालें त कउनो हइमस खाए वाली बात ना। गांव मस्त काहे ना रही ?
एही बीच दीन बीतले का संघहीं मनसुखो क नावं मूहें-मूहें उधियाए लागल। खेलन्तुआ, झगड़न्तुआ लइका बेचारा स मनसुख लाल नेखा बने बदे झपिलावल जाए लगलैं। मनसुख बारह में जीला टाप कइलस त वकालत में बिसविदालय।ओह दीन गांव भर क मूहमागल मुराद पुरा गइल जेहि दिन ऊ जजी क इन्तिहानो में अउवल आइल। गांव भर मिठाई बटलस, जइसे सभकर लइका जज हो गइल होखै। मनसुख के गेना क माला से बोझि, कान्हे पर लाद, मय गांव से ले के चट्टी चउराहा तक घुमलैं मनई। कनिया स खिड़की-झरोखा से झांकि-झांकि चिहात रहलीं त रहगीर जहाँ रहलन ओहीं ठाढ़ होके।
अतवार के दिन खरिहाने में गांव आ जर-जवार क मरद-मेहरारू, लइका-सयान मनसुख क बखान करे खातिन जुमलैं। बलॉक परमुख राम अवतार सिंह, बीडीओ रोशन अली आ पांच- छव गो परधान,कहनी काकी, गनपत सहाय अउर खरचू सिंह, विधायक सरीखन महतो का सदारत में तकथन से बनल ऊंच आसन प बिरजलैं त बाकी लोग नीचे आगा कुरसी-दरी प बइठलैं। मनसुख लाल ,गनपत सहाय अउर माई चंपा के सभ कोई माला पहिना के तीनों क खूब बखान कइलस।
अखीर में सरीखन महतो बोले खातिन उठलन। बोलत-बोलत बहक गइलैं। कहत का बानैं 'गांव-जवार क लइका जज हो गइल बा, अभ केहू के डेराए-ओराए क जरूरत ना बा,मडरो करि के आ जाई त जमानत चुटकी में मिलि जाई।'ऊहां जुटल सभकर मुह भक से रहि गइल। महतो के भी लागि गइल 'किछु उल्टा बोला गइल बा', जबले संभलतैं काकी फनफनाइल उठि त जाति बा 'हटु अवर्रा,तोहनिन के ना सुधरबा सभ।'
विधायक के हाथे से मइकिया छोरि के मय आलम का ओरि मूह करि के धिरवत का बाड़ी 'कुल्ही जाने गंठिया ला लोग इनहन के चक्कर में पड़ला त "बांड़ त बांड़ तीन हाथ क पगहो जाई।' तूंहू ए गनपत! अपना लवंडा के समुझा दीहा।'
सभ सन्न रहि गइल ,महतो हउहा के काकी क गोड़ थइलन, 'गलती हो गइल बूआ ,एतना आलम देखि के जीभि बिछिला गइल।'' काकी उनही के गांव क बिटिया रहलिन, विधायक क बूआ लागत रहलीं ,पता रहल बूआ केतना खरखर हीये।
काकी सभकरा प छा गइलिन।
( पूंछ कटे बैल को बांड़ कहा जाता है। यदि वह रस्सी सहित भी भागे तो जल्द पकड़ा या संभाला नहीं जा सकता)
(आपन लीखल आगा आवति पोथी 'कहनी काकी' से )
डॉ एम डी सिंह
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