"क़दम से क़दम मिलाकर चलने वाले अब नहीं दिखते!,
सातों जनम में जन्म लेकर मिलने वाले अब नहीं दिखते!,
मौसम के रंग के साथ बदल गये वादों पे वादे करने वाले!,
इस दोस्ती के दामन का नज़्म गाने वाले अब नहीं दिखते!,
जबसे किस्मत ने किया है उनके सितारों को बहुत बुलंद!,
गर्दिशों में रिश्तों के मायने लिखने वाले अब नहीं दिखते!,
जिनकी झोपड़ियां अब तब्दील हो चुकीं हैं शीश महलों में,
शीशों के घरों पर पत्थर फेंकने वाले वो अब नहीं दिखते!,
शहर की आबो-हवा ने बदल दिया है उनकी रंगत इस क़दर,
गांव-देहात की तक़दीर बदलने वाले वो अब नहीं दिखते!,"
नीरज कुमार मिश्र
बलिया
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