गुरुवार, 19 सितंबर 2024

जैसी भी हो मगर भा गई जिंदगी- रचना बीना राय ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश

भा गई जिंदगी

धीरे धीरे समझ आ गई जिंदगी
जैसी भी हो मगर भा गई जिंदगी

है मजा इसमें गिरने सम्हलने में
हौसले के साथ तन्हा चलने में

भीड़ से खुद ही कतरा गई जिंदगी
जैसी भी हो मगर भा गई जिंदगी

चोट देकर के इसने तराशा बहुत
मिल गया रब मिली जब निराशा बहुत

क्यों कहें कि सितम ढा गई जिंदगी
जैसी भी हो मगर भा गई जिंदगी

स्वरचित नज़्म

बीना राय
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश



गुरुवार, 12 सितंबर 2024

कवि लेखक एवं प्रख्यात समाजसेवी परम आदरणीय बड़े भैया श्री नीरज सिंह अजेय जी का साहित्यिक एवं सामाजिक संक्षिप्त परिचय

कल दिनांक 11 सितंबर 2024 को जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान मोहनिया कैमूर के द्वारा Self- Esteem Based Life Skill Programme ( Who I Am) के अंतर्गत शिक्षकों का जिला स्तरीय एक दिवसीय गैर आवासीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया, इस आयोजन में गाजीपुर जिले के वरिष्ठ समाजसेवी परम आदरणीय बड़े भैया श्री नीरज सिंह 'अजेय' जी का स्नेह औऱ आशीर्वाद प्राप्त हुआ। पूर्वांचल के प्रख्यात समाजसेवी भैया एवं इनके संस्था द्वारा किये गए प्रसंसनीय कार्य निम्नवत है।

1- 2020 से मातृ भूमि की रसोई का संचालन किया जा रहा है जो गरीब निर्बल जन को मुफ्त भोजन देती है।
2 शादी सहयोग बैंक के द्वारा गरीब असहाय लड़कियों के शादी में आर्थिक मदद।

3- रक्तदान शिविर- पांचवीं बार 14 जुलाई 2024 को रक्तदान शिविर के द्वारा जरुरतमंद लोगो की मदद।

4- शिक्षक की अहम दायित्व का निर्वहन करते हुए समय समय पर वृक्षारोपण करना।

पेशे से शिक्षक स्वभाव से लेखक,कवि एवं समाजसेवी नीरज भैया ग्राम पोस्ट अलीपुर मदरा तहसील जखनियां जिला ग़ाज़ीपुर के निवासी है। आप जैसे महान व्यक्तित्व का आशीर्वाद मेरे लिए परम् शौभाग्य की बात है। ईश्वर आप जैसे महान समाजसेवी को और भी शक्तिशाली एवं समर्थवान बनाएं जिससे आप इस तरह बेहतर कार्य को निरंतर अंजाम दे।
ॐ जय श्री #सीताराम, हर हर #महादेव #राधेकृष्ण
#समाजसेवी #वृक्षारोपण #रक्तदान #शिविर #कवि #लेखक #जखनिया #गाजीपुर #उत्तरप्रदेश






शनिवार, 7 सितंबर 2024

छुपके छुपाइके नजरिया से हमके लेले अइह गजरा बजरिया से- रचना श्री विद्यासागर स्नेही जी

छुपके छुपाइके नजरिया से
हमके लेले अइह गजरा बजरिया से

गजरा ले आके पिया केश में लगइह
प्यार विश्वास के उमिरिया बढ़इह
बाजी प्रीत के गीत सेजरिया से
हमके लेले अइह गजरा बजरिया से

गजरा त ह पिया प्यार के निशानी
करिह ना कबहूँ तूं येसे बेइमानी
ना त गिर जइब हमरी नजरिया से
हमके लेले अइह गजरा बजरिया से

हमरा के हरदम दिलवा में रखिह
सागर सनेही से बाकी कुछ सीखिह
रहिह बन्हल तूं प्रेम की रसरिया से
हमके लेले अइह गजरा बजरिया से

रचना श्री विद्यासागर स्नेही जी





काहें लायो नथुनिया उधार बालमा ताना मारेला हमके सोनार बालमा- रचना विद्यासागर स्नेही

काहें लायो नथुनिया उधार बालमा
ताना मारेला हमके सोनार बालमा

नथुनी पहिनि हम गइलीं बजरिया
जइसे पड़ल मुअना के नजरिया
अंगुरी देखावे बार बार बालमा
काहें लायो नथुनिया उधार बालमा
ताना मारेला हमके सोनार बालमा

एक बात कहीं हम तोहसे सजनवा
अबला के आबरू, ह असली गहनवा
मान, मर्यादा ह सिंगार बालमा
काहें लायो नथुनिया उधार बालमा
ताना मारेला हमके सोनार बालमा

सागर सनेही संइया मान मोर बतिया
देई द उधार चाहे बेंचि द जजतिया
भलही घर में लागी केवाड़ बलमा
काहें लायो नथुनिया उधार बालमा
ताना मारेला हमके सोनार बालमा

रचना - विद्यासागर स्नेही


सोमवार, 2 सितंबर 2024

लेकिन दुःख है अब भारत में हम सब नए अछूत हैं- रचना अज्ञात

नए अछूत

हमको देखो हम सवर्ण हैं
भारत माँ के पूत हैं,
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं;

सारे नियम और कानूनों ने,
हमको ही मारा है;
भारत का निर्माता देखो,
अपने घर में हारा है;
नहीं हमारे लिए नौकरी,
नहीं सीट विद्यालय में;
ना अपनी कोई सुनवाई,
संसद में, न्यायालय में;
हम भविष्य थे भारत माँ के,
आज बने हम भूत हैं;
बेहद दुःख है अब भारत में;
हम सब 'नए अछूत' हैं;

'दलित' महज़ आरोप लगा दे,
हमें जेल में जाना है;
हम-निर्दोष, नहीं हैं दोषी,
यह सबूत भी लाना है;
हम जिनको सत्ता में लाये,
छुरा उन्हीं ने भोंका है,
काले कानूनों की भट्ठी,
में हम सब को यूं झोंका है;
किसको चुनें, किन्हें हम मत दें?
सारे ही यमदूत हैं;
बेहद दुःख है अब भारत में;
हम सब 'नए अछूत' हैं;

प्राण त्यागते हैं सीमा पर,
लड़ कर मरते हम ही हैं;
अपनी मेधा से भारत की,
सेवा करते हम ही हैं;
हर सवर्ण इस भारत माँ का,
एक अनमोल नगीना है;
अपने तो बच्चे बच्चे का,
छप्पन इंची सीना है;
भस्म हमारी महाकाल से,
लिपटी हुई भभूत है;
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं..

देकर खून पसीना अपना,
इस गुलशन को सींचा है;
डूबा देश रसातल में जब,
हमने बाहर खींचा है;
हमने ही भारत भूमि में,
धर्म-ध्वजा लहराई है;
सोच हमारी नभ को चूमे
बातों में गहराई है;
हम हैं त्यागी, हम बैरागी,
हम ही तो अवधूत हैं;
बेहद दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं🙏🏻

समस्त सवर्ण समाज के सभ्य बंधुओ को समर्पित, कृपया इस कविता को बिना परिवर्तित किये अपने सभी लोगों को पोस्ट जरूर करे !🙏


कौन रोता है किसकी दुनिया उदास है- रचना लव तिवारी ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

कौन रोता है किसकी दुनिया उदास है।
इसका ख़ुदा क्यों नही इसके पास है।

बड़ी मरुवत,बड़े बत्तर हालात हैं इसके।
इसका बचपन क्यों नही इसके पास है।

किससे मन्नत मांगू जो इसके हक में हो।
मैं आदमी ही हूँ, कुछ नही मेरा पास है।

जिंदगी अगर दे तो जीने सलीका दे मालिक।
मैं इसके लिए क्या करूँ जो मेरे हाथ है।

एक अगर ऐसा हो तो कुछ सोचा भी जाये।
तेरी दुनिया, तेरे दर पर तो लाखों उदास है।

रचना- लव तिवारी गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश