बुधवार, 4 अक्तूबर 2023

पितृपक्ष है पक्ष एक ऐसा महता इसकी भारी- साधना शाही वाराणसी

पितृपक्ष (कविता)

पितृपक्ष है पक्ष एक ऐसा,
महता इसकी भारी।
16 दिन समर्पित पितरों को,
चाहे नर हों या नारी।

भाद्र पूर्णिमा से आरंभ यह होता ,
क्वार अमावस जाता।
इस पक्ष में पूज लो पूर्वज,
आत्म शांति हो जाता।

पूर्णिमा जो बैकुंठ सिधारे,
भादो पूर्णिमा आग़ाज़ करें।
जिस तिथि परिजन स्वर्ग सिधारें,
उस तिथि उनका श्राद्ध करें।

विस्मित हो गया तिथि यदि तो,
आश्विन अमावस्या तर्पण कर लें।
तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन,
पूर्वज को अपने अर्पण कर लें।

सभी का तर्पण इस दिन होता ,
सर्वपितृ अमावस्या
कहलाता ।
देवों सम पूर्वज हैं हमारे,
उनको इस दिन पूजा जाता।

अकाल मृत्यु यदि हुई किसी की,
चतुर्दशी तिथि श्राद्ध करो तुम।
मोक्ष प्राप्ति की जिसको इच्छा,
श्रद्धा -भक्ति से काज करो तुम।

अति पावन अवसर यह होता,
पित्तृ धरा पर विचरण को आते।
तर्पण से वो तृप्त जो होते,
परिजन को आशीष दे जाते।

पितृ प्रसन्न यदि रहते तो,
घर में सुख-समृद्धि है रहती।
रुष्ट यदि ये हमसे हो गए,
आई खुशियाँ भी हैं छिनतीं।

पितृ श्राद्ध करिए अष्टमी को,
माता का नवमी को करिए।
छप्पन भोजन काग खिलाकर,
दुख- बाधा अपनी ले हरिए।

पूर्वज प्रसन्न श्राद्ध से होते,
देवी- देवता होते पूर्वज से।
श्राद्ध पक्ष ऐसा इक पक्ष है,
यम जीवों को मुक्ति देते।

यम से मुक्त हो धरा पर आकर,
परिजन से वो तर्पण लेते।
खुशी-खुशी फिर स्वर्ग को जाते ,
आशीषों से झोली भर देते।।

साधना शाही, वाराणसी


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