"जिसे पूजने लगोगे तुम ख़ुदा की तरह
बदलेगा रफ्ता-रफ्ता बेवफा की तरह।
तुम ही हो मेरी मंजिल वो कहेगा हर घड़ी
मिल गये तो छोड़ देगा रास्ता की तरह ।
दैरो-हरम की सीढ़ी रोने लगी है मुझपर
उसे मांगकर थके जब इक दुआ की तरह।
कल राह में मिला था चुपचाप से यूं गुज़रा
अरमानों की शजर से एक धुआं की तरह।
वो समंदर तुम्हें भी खारा बना के बहता
अच्छे भले हो मीठे एक दरिया की तरह।
बिखरी है टूटकर जो ये जिंदगी संवार लो
कुछ भी नहीं है *बीना* हौसला की तरह ।
स्वरचित
बीना राय
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश"
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