हर्ष और संताप
तभी तो हमपर कभी
बिन मांगे होती है।
खुशियों की बरसात
और कभी रो-रो के थक जाएं
पर भगवान भी हमारी
सुनता नहीं अलाप
जब लगे ये जीवन हमको
एक खुशियों भरी शौगात
बखानते हैं हम सब अपने
अच्छे कर्मों का प्रताप
फिर जब होती है हमारी,
दुखों से आंखेचार
बेहतर होता ये समझ जाते
शायद है ये हमारे किसी
बुरे कर्मों से मिला कोई अभिशाप
जैसा भी है ये जीवन
अपना ही तो है
गर दुख मिला है तो फिर
सुख भी मिलेगा
अगर बढ़ा लेंगे हम
अपने शुभ कर्मों का प्रताप
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