रविवार, 10 सितंबर 2023

नीरो को क्या पड़ी है रचना- श्री कुमार शैलेन्द्र जी गाज़ीपुर


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ग़म गुम यहीं कहीं है।
एहसासे ग़म खुशी है।।
ईमान जौहरी सा,
दस्तक सी ज़िन्दगी है।

हर बार लौट जाती,
आने की तिश्नगी है।
दिखने में तो हसीं पर,
छूने में ख़ुदकुशी है।

पानी के हर लहर-सी,
गुल खुशबू संदली है।
रस्मों-सी गूँगी ग़ज़लें,
रंगों की तश्तरी है।

जल जाये 'रोम' धू-धू,
'नीरो'को क्या पड़ी है।
नकली ज़ुबान जालिम,
चाण्डाल चौकड़ी है ।

बाज़ार से हरम तक ,
पर्दा दरी नहीं है ।
इंसानियत-अहद ही,
जन्नत की बाँसुरी है ।

मंजर पे माज़रत है,
मंजूर मसखरी है ।
है ढूँढ़ता ख़ुदाई ,
जो लापता ख़ुदी है।
मन में मिजाज़ गर तो,
रब-इश्क़ जीते जी है ।
दिल से सलाम उसको,
पोशाक जिसने सी है ।

उतरे नशा न फिर भी ,
हमदम ने छक के पी है ।
बातों की बात  बाकी ,
बातें    बड़ी-बड़ी हैं ।। 
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#कुमारशैलेन्द्र


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