अनुबंधों की तटबंधों से,
टूटे सम्बन्धों की डोर ।
साँस साँस देहरी लाँघकर,
बल खाती ,मुँह की खाती ।
माटी के दीयों में औचक,
स्नेह-रश्मियाँ बुझ जातीं ।।
चन्द्रकामना लिए अतुल बल,
भौंचक बूढ़ा हुआ चकोर।
गाँव गली में कई घुमन्तू,
कंधे टाँगे बाइस्कोप।
टूटी हुई चप्पलें मढ़तीं ,
मेधाओं पर कटु आरोप।
दर्द रुलाते रेगिस्तानी,
जीते जी दिल रणथम्भौर। ।
बिजली पानी ढूँढ़ फरिश्ते ,
तोरण वन्दनवार हुए ।
सुक्खू, बुद्धू ,मगरू रिश्ते,
हाँफ हाँफ लाचार हुए ।
कब यौवन वसन्त लौटेगा,
दिखता कोई ओर न छोर ।।
दूर सरकती जाय नदी पर,
प्यास अभी भी बाकी है ।
शीशमहल की स्वर्ण रश्मियाँ,
स्वप्निल मंत्र जगाती हैं ।
कुटिल करिश्मे दहलाते दिल ,
बेबस तन मन प्रण कमजोर। ।
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