रूबरू वक्त से,
मिल के आओ, प्रिये !
गीत कुछ धूप के
गुनगुनाओ, प्रिये ।।
नवसृजन तूलिका ,
नभ उठाओ, प्रिये ।।
गुरबतें जुल्मतें
ढूँढ़तीं वल्लरी,
जि़न्दगी चाहती
स्नेह की निर्झरी,
प्रीति-वीणा के
स्वर झनझनाओ, प्रिये।।
यंत्रवत् तंत्रिका की
अजब साँकलें,
झुरमुटों में सशंकित
नई हलचलें ,
बुलबुलें इन्द्रधनु तक
उडा़ओ, प्रिये।।
टूटे मन में अटल
सत्य विश्वास भर,
खग विहग -पंख में
शक्ति-एहसास भर,
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