आज नागपंचमी है: शुभकामनाएं
आज सुबह एक सपेरा जब
हमारे घर आया तो
नाग साँप को देखकर मैंने उसे
सहर्ष ही उठाया फिर
अज्ञेय जी की कविता दुहराते हुए पूछा, "साँप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ (उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डँसना--
विष कहाँ पाया?"
इस सवाल पर साँप मुस्कराया और बोला, अब कहां मुझमें ज़हर
अब तो मुझ पर ही टूट पड़ा है कहर।
मुझसे छीन कर ले गया है
आपके जैसा ही कोई आदमी
मेरा पूरा-का-पूरा ज़हर।
- गिरीश पंकज
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें