गुरुवार, 3 अगस्त 2023

यदि जाते शहर हैं तो जायें मगर, गाँव की खुशबू भी लिये जाइये।कामेश्वर द्विवेदी।

---------------मुक्तक-------------

यदि जाते शहर हैं तो जायें मगर,
गाँव की खुशबू भी लिये जाइये।

नफरतों के जहाँ उग रहे पौध हों
फूल जैसा महकते वहाँ जाइये।

यदि मिलता गरल अनचाहा कहीँ,
शम्भु जैसा निरंतर पिये जाइये।

मात्र अपने लिए न जियें बन्धुवर!
दूसरों के लिए भी जिये जाइये।

क्षण भंगुर जीवन है आपका,
जगती के लिए कुछ दिये जाइये।

कामेश्वर द्विवेदी।



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