प्रारूप
नाम : हेमन्त निर्भीक
जन्मतिथि : 23 अगस्त 1988
माता का नाम : श्रीमति सविता देवी
पिता का नाम : श्री बंश नारायण उपाध्याय
जन्म स्थान : पचौरी गाजीपुर
शैक्षिक योग्यता : परास्नातक
संप्रति (पेशा) : नौकरी ( गैर सरकारी)
विधाएं : ओज
साहित्यिक गतिविधियां : मंचीय काव्य पाठ
प्रकाशित कृतियां :
पुरस्कार सम्मान :
संपर्क सूत्र : 6389042206
विशेष परिचय : कवि हेमन्त निर्भीक : एक परिचय...
हेमन्त निर्भीक वीर रस के प्रतिष्ठित कवि है l उनका जन्म ग्राम पचौरी , जिला गाजीपुर उत्तर प्रदेश में हुआ l पिछले 20 वर्षों से हिन्दी कवि सम्मेलन के मंचों से काव्य पाठ कर रहें हैं l
हेमन्त निर्भीक को उनके वीर रस की कविताओं के लिए अनेक प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त है I
कृतियां...
ना जाने कितने वीरों ने प्राणों की कुर्बानी दे दी,
बन्दीगृह की कालकोठरी में सम्पूर्ण जवानी दे दी l
इसी धरा पर मंगल ने अंग्रेजों को ललकारा था,
बागी बनकर गोरों के सीनों में गोली मारा था l
इसी भूमि पर शेखर ने भी लड़ने का ऐलान किया ,
पहले मारा गोरों को फिर स्वर्गलोक प्रस्थान किया l
जब भारत की बेटी हाथों में तलवार उठाती थी,
रणचंडी बन समर भूमि दुश्मन का लहू बहाती थी l
जिसके रण में आने से पूरा अरि दल थर्राता था,
या तो मौत उसे मिलती या चरणों में गिर जाता था ।
ढाल कटारी बरछी से अपना श्रृंगार रचाती थी,
रण से पहले माँ काली को अपना शीश झुकाती थी l
ऐसी हिन्द की बेटी जिसकी स्वर्णिम अमर कहानी है,
भारत माँ की हर एक बेटी झाँसी वाली रानी है ll
रोती है भारत माता भी बेटों की कुर्बानी पर,
राजगुरु सुखदेव भगत सिंह वीर अमर बलिदानी पर l
जिसने हंस कर एक साथ फाँसी फंदे को चूम लिया,
रंग बसंती पहन के चोला मन ही मन में झूम लिया ll हुए विदा इस दुनियाँ से हमें आजादी दिलवाकर,
अमर हो गए पृष्ठों में मृत्यु को गले लगाकर llll
महाराणा प्रताप....
कतरा कतरा रक्त जहां वीरों ने नित्य बहाया है ,
बलिदानो की वेदी पर निज हाथों शीश चढ़ाया है ।
घास की रोटी खाई पर मुगलो को, ना मंजूर किया ,
राज पाठ बैभव से फिर राणा ने खुद को दूर किया ।
उसने चितौड़ की रक्षा हेतु दृढ़ संकल्प उठाया था ,
राणा का रण कौशल देख के बैरी भी थर्राया था ।
तब एक हाथ में ढाल लिए दूजे प्रतापी भाला था,
चेतक की टापो से खुद यमराज हुआ मतवाला था ।
वो जिधर चला अरिदल सेना में त्राहिमाम और शोर हुआ ,
राणा की जीत सुनिश्चित थी और जयकारा चहुओर हुआ ।
फिर अकबर भी नादान हुआ विचलित थोड़ा परेशान हुआ ,
राणा के चर्चे घर घर में सुनकर थोड़ा हैरान हुआ ।
तब बिगुल बजा हल्दी घाटी शिव शम्भू का आह्वान हुआ ,
और तिलक लगा कर माथे पर उस राणा का सम्मान हुआ ।
फिर टूट पड़े मुगलों पर मानो रणचंडी ललकार उठी ,
मुगलों के रक्त की प्यासी होकर तलवारें टनकार उठी ।
कोई इधर पड़ा कोई उधर पड़ा ,
कोई मुर्छित होकर जिधर पड़ा ।
कोई दुबक गया अपने घर में ,
कोई बिना लड़े ही हार गया ।
हो मातृ भूमि के लिए समर्पित कोई स्वर्ग सिधार गया ।
कोई देख तेज उसके माथे के सूरज को पहचान गया ,
कोई शीश झुकाकर रण भूमि में भीख जान की मांग गया ।
कोई भांप गया था महाराणा के निश्चय अटल इरादो को ,
या मारू या मर जाऊं उस राष्ट्र भक्त के वादों को ।।
बिजली कड़की बादल गरजा पूरा भू मंडल डोल गया ,
और हर हर महादेव शिव शम्भू बच्चा बच्चा बोल गया ।
फिर चाल चली अकबर ने इक चेतक पर घातक वार किया ,
उस रवि पुत्र पर कायरता बस बारम्बार प्रहार किया ।
जब जीत न पाया राणा को वो बेजुबान से लड़ बैठा ,
युद्ध छिड़ी थी इंसानों में खुद चेतक से कर बैठा ।
छुप छुप कर आघात किया ऊपर नीचे दाएं बाएं,
जुटा नहीं पाया हिम्मत कि चेतक के वो सम्मुख आएं ।
हो बेखबर घोड़ा दौड़ा अरिदल सेना की टोली में ,
तलवारे भी झूम रहीं थीं लाल लहू की होली में ।
पर उन कटार के वारों से चेतक था लहूलुहान हुआ ,
स्वामी को संकट में पाकर वो भी थोड़ा परेशान हुआ ।
पर रुका नहीं था घायल होकर गहरी दरिया पार किया,
जिसपे सवार हो राणा ने था मुगलों का संहार किया ।
फिर थम गई सासे चेतक की इतिहास अभी तक जिंदा है ,
मुगलों के दामन पर अब तक उस बेईमानी का फंदा है ।
है फक्र हमारी धरती जिसके कड़ कड़ में बलिदानी है ,
सब जीव जन्तु और नर नारी की ऐसी अमर कहानी है ।l
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