जीवन के क्रम में मृत्यु निश्चित है । अपने जीवन यात्रा में इंसान अनेक रिश्तों से गुजरता हुआ अंतिम पड़ाव पर पहुँचता है । ऐसे में मृत्यु की खबर तरंग की भाँति सभी रिश्तों को झकझोर देती है और उस व्यक्ति को जानने वाले सभी लोग मृत व्यक्ति के अंतिम यात्रा में शामिल होने पहुँच जाते हैं जो बिल्कुल करीबी होते हैं वो अनेक तरह की यादों को यादकरकरके दहाड़े मारमार कर रोते हैं कुछलोग रोते हुए लोगों को देखदेखकर रोते हैं । इसी क्रम में मृत व्यक्ति को चारलोग अपने कंधों पर उठा लेते हैं घर की संबंधी महिलाएं मृतशरीर को खुद से दूर जाते देख करूण क्रंदन करती हैं जिनको कुछ लोग संभालते ढाढस बंधाते हैं और बाकी लोग शव यात्रा में रामनाम सत्य है बोलते हुए घाट की तरफ चल देते हैं । रामनाम सत्य है की आवाज़ सुनकर राह से गुजरते बहुत से लोग नतमस्तक हो जाते हैं । फिर मृत शरीर घाट पर पहुंच जाता है । जहाँ लकड़ियों की खरीददारी, चिता निर्माण शुरु होता है । डोम अग्नि देने के लिए मुँह मागी रकम मांगता है । वहाँ भी मोलभाव शुरू हो जाता है । चिता अग्नि को समर्पित हो जाती है राख को पवित्र जल में समर्पित करने हेतु पुनः मोलभाव होता है । वहाँ उपस्थित सभी लोग जीवन की क्षणभंगुरता की चर्चा कर कहते हैं कि जीवन में कुछ रखा नहीं है । झूठमूठ का सभी लोग हायहाय किये रहते हैं । राजा रंक सभी को एक दिन यहीं आना है ।
इसप्रकार अंतिम यात्रा में शामिल सभी लोग घाटस्नान करके वापस अपने अपने गंतव्य की ओर चल देते हैं ।
लौटते समय कोई भी रामनाम सत्य है नहीं बोलता । क्या रामनाम सत्य है बोलना मृत शरीर के अंतिम यात्रा का संकेत मात्र है ?
लेखक- प्रवीण तिवारी पेड़ बाबा
ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश
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