मंगलवार, 23 अगस्त 2022

हुस्न पहाड़ों का क्या कहना की बारों महिने यहाँ मौसम जाड़े का- रवींद्र जैन

हुस्न पहाड़ों का क्या कहना की बारों महिने 

यहाँ मौसम जाड़े का

क्या कहना की बारों महिने यहाँ मौसम जाड़े का

रुत ये सुहानी हैं मेरी जाँ रुत ये सुहानी हैं
के सर्दी से डर कैसा संग गर्म जवानी हैं
के सर्दी से डर कैसा संग गर्म जवानी हैं..

खिले खिले फूलों से भरी भरी वादी
रात ही रात में किसने सजादी
लगता हैं जैसे यहाँ अपनी हो शादी
लगता हैं जैसे यहाँ अपनी हो शादी
क्या गुल बूटे हैं 
पहाड़ों में यह कहते हैं
परदेसी तो झूठे हैं..

तुम परदेसी किधर से आये
आते ही मेरे मन में समाये
करूँ क्या हाथों से मन निकला जाये
करूँ क्या हाथों से मन निकला जाये

छोटे छोटे झरने हैं
के झरनों का पानी छूके कुछ वादे करने हैं
झरने तो बहते हैं कसम ले पहाड़ों की
जो कायम रहते हैं

हो हाथ हैं हाथो में 
के रस्ता कट ही गया प्यार की बातों में
दुनिया ये गाती हैं
सुनो जी दुनिया ये गाती हैं
के प्यार से रस्ता तो क्या 
जिन्दगी कट जाती हैं
के प्यार से रस्ता तो क्या 
जिन्दगी कट जाती हैं..




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