आये है सो जायेगे राजा रंक फ़क़ीर।
एक सिंहासन चढ़ चले एक बने जंजीर।।
जब कोई इंसान की मृत्यु अथवा इस दुनिया से विदा होकर जाता है तो उसके कपड़े,उसका बिस्तर,उसके द्वारा इस्तेमाल किया हुआ सभी सामान उसी के साथ तुरन्त घर से निकाल दिया जाता है,या फिर उस वस्तु को अग्नि देने वाला डोम के हाथों में सौप दिया जाता है। क्यूं .?
पर कभी कोई उसके द्वारा कमाया गया धन-दौलत. प्रोपर्टी,उसका घर,उसका पैसा,उसके जवाहरात आदि,इन सबको क्यों नही छोड़ता है यहां तक मृतक के शरीर मे उस समय पहने सोने के आभूषण भी उनके सगे सम्बन्धियो द्वारा निकाल लिए जाते है ?
बल्कि उन चीजों को तो ढूंढते है,मरे हुए व्यक्ति के हाथ,पैर,गले से खोज-खोजकर,खींच-खींचकर निकालकर चुपके से जेब मे डाल लेते है,वसीयत की तो मरने वाले से कहीं ज्यादा चिंता करते है ।।
इससे पता चलता है कि आखिर रिश्ता किन चीजों से था ।।
ये सब किसके लिए करता रहा साथ में ले जाने के लिए..!!
दो दिन का जग में मेला चला चली का खेला
कोई चला गया कोई जाए कोई गठरी बाध सिधारे
कोई चला तैयार अकेला चला चली का खेला
मात पिता सब बन्धु भाई अंत सभी का होए
फिर क्यों भरता पाप का ठेला
चला चली का खेला
इस भजन को आप जरूर सुने।।
इसलिए पुण्य परोपकार और नाम की कमाई करो ।।
इसे कोई ले नही सकता,और न ही चुरा सकता है ।।
ये कमाई तो ऐसी है,जो जाने वाले के साथ ही जाती है ।।
किसी के मरने पर लोगों की प्रतिक्रिया क्या होगी ये
उसके जीवित रहते हुए किए गए कर्म पर निर्भर है ।।
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