शिष्य गुरु को उपहार देते हैं, परन्तु आज हिन्दी दिवस पर शिष्य को मैं यह कविता बतौर उपहार सस्नेह भेंट करता हूँ।
मेरा प्रिय शिष्य नितीश सिंह जो मेरे पड़ोसी गाँव पटकनिया का निवासी है, वह अपने गाँव का एक विस्तृत इतिहास परिश्रम से लिखा, जिसे पढ़ कर मैं बहुत प्रभावित हुआ, उसके उसी स्वग्राम परिचय को मैं काव्यरुप में प्रस्तुत कर उसको भेंट कर रहा हूँ, इसमें सारी जानकारी नितीश के लेख "मेरा गाँव पटकनिया" से लिया गया है।
गाँव मेरा प्यारा- पटकनिया,प्यार का नाम पटकनी है।
मैं नितीश परिचय देता हूँ, ये मेरी भू-जननी है ।।
भौगोलिक सौंदर्य अगर बतलाऊँ तो , वो ऐसे है ।
ढाई सौ वर्ष पूर्व में आकर लोग बसे यहाँ तब से है।।
कोई सुनियोजित संरचना नहिं, पूछेंगे यह कैसे है?
ज्यो-ज्यो आये लोग औऱ बस गये जैसे, का तैसे है।।
पूरब में कल्यान पूर,पश्चिम युवराज पुर ग्राम है।
उत्तर दूर मातु गंगे हैं, दक्षिण, अड़रिया गौरा, ग्राम है।।
ग्राम के नामकरण के पीछे, एक रहस्य बतलाता हूँ ।
गाँव पहलवानों का रहा, ये बुजुर्गों से सुनी सुनाता हूँ।
किस किस के मैं नाम गिनाऊँ, पहलवान यहाँ पट्ठे थे।
बुजुर्ग या फिर नौजवान जो भी थे , हट्ठे-कट्ठे थे।।
मलिकार ओस्ताद खलीफा इनको यहाँ कहा जाता।
बाहर का लड़वइया यहाँ पटकनी खा कर ही जाता।।
यही पटकनी देते - देते नाम पड़ गया , पटकनिया।
रेवतीपुर है ब्लाक यहाँ का,और तहसील जमानियां।।
स्वतंत्रता सेनानियों की ,यह धरती कहलाती है।
वंशनरायन मिश्र ,अमर सिंह जी की याद दिलाती है।।
इनका करूँ बखान ,तो बातें लम्बी होतीं जायेंगी ।
गाँव जलाया गोरों ने, ये भी बातें जुड़ जायेंगी।।
आज भी गाँव में सेवारत फौजी भाई मिल जायेंगे।
गाँव मे नजर घुमाएंगे ,भूतपूर्व सैनिक दिख जायेंगे।।
पदकंदुक का खेल यहाँ पर रुचि से खेला जाता रहा।
गायन में मिश्रा जी लोगों का परचम लहराता रहा।।
कृषिप्रधान यह गाँव,बड़े खेतिहर में यही कहावत थी।
नरवन में नीरू,पटकनी में खीरु,लेकिन नहीं अदावत थी।।
और सिताब दियर में गरीब रा को याद किया जाता।
बाकी सब छोटे गृहस्थ थे , बड़ों में तीन का नाम आता।।
अंग्रेजी शासन में भी ,शिक्षा हित सतत प्रयास हुआ।
जे एन राय, जे एन सिंह द्वारा, शिक्षा का विकास हुआ।।
आज के दौर में भी प्रयासरत लोग यहाँ मिल जायेंगे।
ग्रामोन्नति हित मदद सगीना राम का नहीं भुलायेंगे।।
बहुत है बतलाने के लिए , मैं थोड़ा ही बतलाता हूँ।
गाँव की मैं मीठी बोली भोजपूरी में बतियाता हूँ।।
गाजीपुर जनपद अंतर्गत गाँव और क्या बतलाऊँ।
आओ प्यारे पथिक,आपको,अपना गाँव मैं दिखलाऊँ
रचना - हरबिंदर सिंह "शिब्बू"
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