शनिवार, 4 जुलाई 2020

ये है सिर्फ सिनेमा या फिर सोची समझी साजिश है-


बॉलीवुड के बादल छाये,
बदलावों की बारिश है,

ये है सिर्फ सिनेमा या फिर
सोची समझी साजिश है,

याद करो आशा पारिख के
सर पे पल्लू रहता था,

हीरो मर्यादा में रहकर 
प्यार मोहब्बत करता था,

प्रणय दृश्य दो फूलों के
 टकराने में हो जाता था,

नीरज, साहिर के गीतों पर 
पावन प्रेम लजाता था,

लेकिन अब तो बेशर्मी के 
घूँट सभी को पीने हैं,

जांघो तक सुन्दरता सिमटी, 
खुले हुए अब सीने हैं,

नयी पीढियां कामुकता के 
घृणित भाव की प्यासी हैं,

कन्यायें तक छोटे छोटे 
परिधानों की दासी हैं,

क्या तुमको ये सब विकास का 
ही परिचायक लगता है,

हनी सिंह भी क्या समाज का 
शीर्ष सुधारक लगता है?

क्या तुमको पश्चिम के ये 
षडयंत्र समझ में आते हैं?

क्या शराब की कंपनियों के
 लक्ष्य नही दिखलाते हैं?

लल्ला लल्ला लोरी वाली 
लोरी भी बदनाम हुयी,

और कटोरी दूध भरी अब
 दारू वाला जाम हुयी,

बोतल एक वोदका पीना 
काम हुआ है डेली का,

वाइन विद आइस नारा है 
पीढ़ी नयी नवेली का,

राष्ट्र प्रेम की फिल्मे देखों 
औंधे मूह गिर जाती हैं,

पीकू पीके कचड़ा करके
 रुपये करोडों पाती हैं,

खुदा-इबादत-अल्लाह-रब ही
 गीतों में अब छाये हैं,

सेक्सी राधा डांस फ्लोर तक
 देखो ये लाये हैं, 

निज परम्परा धर्म और
 संस्कारों पर आघात है ये,

जिसे सिनेमा कहते हो इक 
जहरीली बरसात है ये,

कर्मा, बॉर्डर, क्रांति, सरीखा 
दौर पुनः लौटाओ जी,

या फिर चुल्लू भर पानी में 
डूब कहीं मर जाओ जी...



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