गुरुवार, 11 जून 2020

एक थे लालूजी/एक हैं लालूजी (लालू यादव जन्म दिवस विशेष)- लव तिवारी

एक थे लालूजी एक हैं लालूजी

वे और दिन थे, जब लालूजी बिहार के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। तब लालूजी का रुतबा किसी शहंशाह से कम नहीं होता था। जिसकी ओर आँख उठा कर देख लें वह भष्म हो जाय उत्तर प्रदेश में जब सुश्री मायावती मुख्यमंत्री थीं तो वे अपने सुरक्षाकर्मियों से जूती उठवाती थीं। बहुत कम लोग जानते होंगे कि यह महान परम्परा श्री लालूजी ने शुरू की थी। वे आईएस लोगों से खैनी मलवाते थे।उनके रुतबे की कुछ बड़ी कहानियां हैं। गोपालगंज के हथुआ में पहले 'भाकपा माले' वालों का बड़ा उत्पात हुआ करता था। किसी का जमीन छीन लेना, किसी की हत्या कर देना, किसी का अपहरण कर लेना सामान्य घटना थी। यह वही समय था जब कम्युनिष्टों के अत्याचार से ऊब कर मध्य बिहार में ब्रम्हेश्वर मुखिया ने हथियार उठाया था। तो हथुआ वाले भी कितना अत्याचार सहते... सो यहाँ भी किसी ने उत्तर दिया।

जो लालू कम्युनिष्टों के उत्पात पर वर्षों से चुप बैठे थे वे एक झटके में जग गए। खुद हेलीकॉप्टर से बंगरा में उतरे और अपने हजारों समर्थकों के साथ जो तांडव किया कि वह इतिहास बन गया। प्रशासन खड़ा थर थर काँप रहा था और लालूजी अपने हाथ से ब्राह्मणों-भूमिहारों की झोपड़ी उजाड़ रहे थे। आधे घण्टे में बीसों घर उजाड़ दिए गए... कोई कुछ बोल नहीं सका, कोई कुछ कर नहीं सका... यह लालू युग था।

सिवान में चंद्रा बाबू और कामरेड चंद्रशेखर की कहानी कौन नहीं जानता। क्या दुर्लभ मृत्यु दी गयी थी उनको... भाजपा की एक विधायक थीं आशा पाठक! शायद सदन में कभी कुछ ज्यादा बोल दीं। फिर एक दिन उनके एकलौते बेटे को देख लिया गया। दिन दहाड़ेविधायक सदन में रोती रह गईं अभी कुछ दिन पहले यूपी में कांग्रेस ने योगी सरकार को कुछ बसों की नम्बर लिस्ट दी थी, जिनमें असँख्य स्कूटर के नम्बर थे। आज से पच्चीस वर्ष पूर्व बिहार में चारा घोटाले में यही हुआ था। तब स्कूटर से साँढ़ ढोए गए थे।एक थीं चम्पा विश्वास! नहीं लिख सकूंगा, घिन्न आती है। वैसे गूगल सर्च किया जा सकता है।

हालांकि तमाम नकारात्मकताओं के बाद भी एक बात सत्य थी कि तब लालूजी में एक बहुत बड़ा वर्ग अपना मसीहा देखता था। लालूजी सचमुच जननायक थे। बिहार में उनके जैसा जनाधार वाला दूसरा कोई नेता न हुआ। जिस तरह एक गरीब परिवार से निकल कर उन्होंने अपना एकछत्र राज्य स्थापित किया, वह आदर्श था युग बदला! समय सबके साथ न्याय करता है। लालूजी जेल में हैं। अब न वह समय है, न सत्ता है, न वे तेवर हैं। लालूजी डायबिटीज, ब्लडप्रेशर और अवसाद से जूझते हुए चुपचाप अपने साम्राज्य का पतन देखने के लिए मजबूर हैं। जनाधार सरक गया है। पार्टी का भविष्य अंधकार में है। तेजस्वी अपने कोर वोटर को भी साध नहीं पा रहे, और तेजप्रताप तो खैर लालूजी का जीवन भविष्य के लिए उदाहरण है कि ईश्वर न्याय अवश्य करता है। वह कुछ भी भूलता नहीं।आज लालूजी का जन्मदिन है। हमारी शुभकामनाएं उनके साथ हैं। ईश्वर उन्हें लम्बी आयु दे ताकि वे सब देख सकें... आशा पाठक और चंद्राबाबू के आंसुओं की शक्ति उन्हें देखनी ही पड़ेगी।


रविवार, 7 जून 2020

धनंजय मिश्रा के अंतिम संस्‍कार से जुड़ी कुछ अंदर की बातें, जिनका कहीं जिक्र नहींं किया जा रहा है - अज्ञात

धनंजय मिश्रा के अंतिम संस्‍कार से जुड़ी कुछ अंदर की बातें, जिनका कहीं जिक्र नहींं किया जा रहा है

नेता और अभिनेता में कई चीजें एक जैसी होती हैं। दोनों जनता को बेवकूफ बनाना जानते हैं। दोनों अवसर को भुनाने की कला में माहिर होते हैं और काम किये बिना क्रेडिट कैसे लिया जाता है, ये दोनों बखूबी जानते हैं।

यू ट्यूब देख लीजिए, ऐसे ऐसे लोगों को क्रेडिट दिया जा रहा है, जिन्होंने फोन करके यह जानना भी मुनासिब नहीं समझा कि धनंजय मिश्रा के साथ एकाएक इतना बड़ा हादसा कैसे हो गया। इतना ही नहीं, हर हर महादेव छाप ऐसे भी स्टार इसी महानगर में कुंडली मारे बैठे हुए हैं, जिन्होंने धनंजय मिश्रा के लिए कुछ करना तो दूर, सोशल मीडिया में चंद शब्द‍ लिखकर उनके परिवार के प्रति अपनी संवेदना तक नहीं व्यक्त‍ की।

दरअसल, यू ट्यूब पर कुछ किराये के यू ट्यूबर हैं और कुछ फेक न्यू,ज चलाकर व्यूज पाने की हवस रखने वाले। उनका काम ही बिना सिर पैर की खबरें चलाना है। उन्हें जरा भी शर्म नहीं आती ये सब करने में। वो ये भी नहीं सोचते कि किसी की मौत पर झूठी खबरें चलवा कर या सोशल मीडिया में प्रकाशित कर-कराकर क्रेडिट लेना कितना कुत्सित कर्म है।

सच कहा जाये तो मुसीबत की इस घड़ी में सत्येंद्र सिंह व उनके बेटे के अलावा खेसारी लाल यादव और करण पांडेय ने ही अपना सराहनीय योगदान दिया। इसके लिए उन लोगों की तारीफ की जानी चाहिए, पर बाकी लोग किस बात का क्रेडिट लेने में लगे हुए हैं, ये सवाल तो उठता ही है। पर क्या आप सभी को पता है कि खेसारी लाल को छोड़ दिया जाये तो इस इंडस्ट्री के किसी सिंगल आदमी ने धनंजय मिश्रा के अंतकाल के बाद फूटी कौड़ी का भी सहयोग नहीं दिया है। इतना ही नहीं, श्मशान के अंदर भी लोग नहीं गये, जबकि कई लोग वहां मौजूद थे। ज्यादातर लोग यही कहेंगे कि सोशल डिस्टेंंसिंग मेनटेन कर रहे थे। चलो मान लिया,, लेकिन इस सच को भी स्वी‍कार करना होगा कि अगर इस देश के लोगों ने इतनी ही गंभीरता से सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन की होती तो आज देश में कोरोना का संक्रमण इस स्तंर पर नहीं पहुंचा होता। और इतना तो कम से कम सबको पता था कि धनंजय मिश्रा की मौत कोरोना के कारण नहीं हुई थी।

बहरहाल, सोशल डिस्‍टेंसिंग के इस दौर को देखते हुए मेरे दिमाग में एक सवाल बार बार उठ रहा था कि इस भयावह काल में आखिर धनंजय मिश्रा के माता-पिता, पत्नी और बच्चों को घर पर कौन संभाल रहा था। सही मायने में यह वो सवाल था, जिसके जवाब ने मेरी आंखों को नम कर दिया।

धनंजय मिश्रा के एक करीबी शख्स ने बताया कि दिन के 9 बजे थे। धनंजय मिश्रा की पत्नी और माता-पिता को बताया गया कि धनंजय मिश्रा की तवियत बहुत अधिक खराब है और उन्हें कोकिलाबेन अस्पताल ले जाया गया है। खबर मिलते ही पूरा परिवार घबरा गया। धनंजय मिश्रा की बड़ी बेटी अर्चना ने फौरन अपनी बगल वाली बिल्डिंग में किसी को फोन किया। फोन जिसने उठाया, बताया जा रहा है कि वो कोई और नहीं, बल्कि भोजपुरी सिंगर और धनंजय मिश्रा के अजीज मित्र प्रभात सिंह की बहन सुधा थीं, जिनके घर पर धनंजय मिश्रा के परिवार का सबसे ज्यादा उठना-बैठना होता था।

अर्चना ने उनसे पूछा कि क्या उनकी गाड़ी घर पर है...जवाब में सुधा ने बताया कि नहीं, गाड़ी लेकर उनके पति ऑफिस निकल चुके हैं। कारण पूछने पर अर्चना ने बताया कि उनके पिता की हालत बहुत खराब है और उन्हें कोकिलाबेन अस्पताल ले जाया गया है। अगर गाड़ी मिल जाती तो मम्मीे, भाई और दादा अस्पताल चले जाते। प्रभात की बहन सुधा ने फौरन अपने पति को फोन लगाया और कहा कि वो चाहे जहां भी हों, फौरन घर वापस आ जायें, क्‍योंकि धनंजय भइया की तवियत बहुत खराब है। झटपट कोकिलाबेन अस्पाताल पहुंचना है। इतना कहने के साथ ही सुधा भागते हुए धनंजय मिश्रा के घर गयीं। लेकिन तब तक शायद उबर गाड़ी मिल गयी और धनंजय मिश्रा की पत्नी, उनका बेटा और धनंजय मिश्रा के पिता जी रोते-बिलखते उस गाड़ी से अस्पताल केे लिए रवाना हो गये।

सुधा जब भागते हुए धनंजय मिश्रा के घर पहुंचीं तो बच्चे फूट-फूटकर रो रहे थे। बड़ी बेटी अर्चना को भनक मिल चुकी थी कि उसके पिता नहीं रहे। उसने इशारों में सुधा को बताया कि उसके पापा उसे छोड़़कर चले गये और सुधा से लिपट कर रोने लगी। बहरहाल सुधा को जब ये मालूम हुआ कि अर्चना की मां, उसके भाई और दादा उबर से चले गये तो सुधा ने अपने पति को फिर से फोन किया और कहा कि वो सभी लोग अस्पताल जा चुके हैं, अत: वो भी घर न आकर सीधे अस्पताल पहुंचें, क्योंकि घर पर धनंजय मिश्रा की वृद्ध मां और बच्चियों को संभालनेवाला कोई नहीं है।

जरा सोचिए, ऐसे माहौल में सुधा ने अपने छोटे-छोटे बच्‍चों को छोड़कर उन दो बेटियों और एक वृद्ध मां को किस तरह संभाला होगा। मौके पर मौजूद एक शख्स बताता है कि वो बड़ा ही दर्दनाक मंजर था, क्योंकि सोशल मीडिया के इस युग में खबरें ज्यादा देर तक छुपी नहीं रह पातीं। बच्चियों को पता चल चुका था कि उनके सिर से पिता का साया उठ चुका है। वो फूट-फूट कर रोये जा रही थीं। सुधा का भी बुरा हाल था। फिर भी उन्होंने किसी तरह सबको संभाला।

अभी कुछ ही वक्त गुजरा था कि यह खबर भी आ गयी कि धनंजय मिश्रा का मृत शरीर मीरा रोड स्‍थित उनके घर के पास पहुंच चुका है। सुना है कि जिसने यह खबर देेेेने के लिए फोन किया था , उससे सुधा सिंह ने ही बात की। फोन पर उसने सुधा को बताया कि धनंजय मिश्रा का पार्थिव शरीर सोसायटी में नहीं लाकर सीधे श्मशान ले जाया जायेगा, इसलिए जिसे भी उनका अंतिम दर्शन करना हो वो वहां सड़क पर ही आ जाये।

सूत्र बताता है कि धनंजय मिश्रा को अपने सगे भाइयों से भी अधिक मान-सम्मान देनेवाली सुधा ने तुरंत सवाल किया कि ये फैसला किसके कहने पर लिया गया। जवाब मिला कि खेसारी लाल के कहने पर। सुधा ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता। अभी उनके परिवार के लोग जमा ही नहीं हुए, तब तक कोई और इतना बड़ा निर्णय कैसे ले सकता है। सुधा ने कहा कि वो सांसायटी से बात करेंगी और लाश सोसायटी में ही तब तक रहेगी, जब तक कि उनके सभी सगे संबंधी जमा नहीं हो जाते।

सोसायटी का ही एक आदमी फोन पर बताता है कि सुधा ने सोसायटी के लोगों से बहुत मिन्‍नत की, लेकिन सोसायटी ने साफ कह दिया कि वो 8 घंटे तक सोसायटी में डेड बॉडी रखने की इजाजत नहीं दे सकते। बेचारी सुधा निराश हो गयी, लेकिन उसने हार नहीं मानी। अपने पति को कहा कि वो मृत शरीर को किसी अस्पताल के मुर्दा घर में रखवाने की व्यवस्था करें। सुधा के पति ने ही अपने सगे संबंधियों के जरिए एक अस्पताल में धनंजय मिश्रा के मृत शरीर को सुरक्षित रखवाने की व्यवस्था की। 

दरअसल, धनंजय मिश्रा के छोटे भाई के दिल्ली  से और प्रभात सिंह के बनारस से यहां पहुंचने का इंतजार किया जा रहा था। उन लोगों के आने के बाद ही धनंजय मिश्रा के पार्थिव शरीर को अस्पताल से निकालकर सोसायटी में लाया गया। शरीर भारी होने के कारण उसे उठा पाना या अंतिम संस्काार के लिए नहलाना धुलाना कोई आसान काम नहीं था। लेकिन इंडस्ट्री के किसी भी शख्स ने इस काम में हाथ नहीं बंटाया।
प्रतयक्षदर्शी बताते हैं कि जिस समय शरीर को नहलाया जा रहा था, उस समय ये साफ दिखायी दे रहा था कि उनके मुंह से खुन निकल आया धा, आंखों से भी खून निकला दिखायी दे रहा था और वो सब सूख चुका था। इतना ही नहीं, खून का शौच भी हो गया था, जो पूरे शरीर में लिपटा था। अंतिम संस्कार के लिये ले जाने से पहले वो सब साफ करना आवश्यक होता है। सुना है कि प्रभात सिंह के जीजा और खुद प्रभात सिंह आदि ने ही मिलकर इस काम को अंजाम दिया। फिर उनके शरीर को गंगाजल से नहलाकर कफन दफन किया गया और फिर अंतिम यात्रा पर ले जाया गया। पता चला है कि श्मशान में भी धनंजय मिश्रा के घरवालों के साथ इन्हीं लोगों ने मिलकर सारी रस्मो़ं  की अदायगी करवाई। 

धनंजय मिश्रा का पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। लेकिन भोजपुरी इंडस्ट्री  के किसी भी शख्स ने इसमें किसी तरह की सहभागिता नहीं दिखायी। कहने को मौके पर कई लोग मौजूद थे, लेकिन सभी मूक दर्शक बने रहे। यहां तक कि किसी ने एक लकड़ी तक उस चिता में नहींं डाली।  

सच कहें तो इन बातों को पता करने और लिखना का कोई औचित्यस नहीं था, लेकिन कुछ लोग जब बिना कुछ करे-धरे झूठमूठ का डंका पीटने लगें तो सच्चाई को दुनिया के सामने लाना आवश्यंक हो जाता है। बावजूद इसके उन लोगों के प्रति आभार,  जिन्होंने ऐसी विषम परिस्थिति में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।






बुधवार, 3 जून 2020

पूर्वांचल के सबसे बड़े समाजसेवी है आदरणीय प्रवीण तिवारी पेड़ बाबा - लव तिवारी

गंगा की गोदी में पले बढ़े गौ माता के दूध का पान किया।
जिसको दे दिया वचन समझो तन मन धन सब कुछ दान दिया।।

कोरोना एक वैश्विक आपदा इस महामारी में लाखो करोड़ो लोगो को अपने चपेट में ले रखा है। बेरोजगारी, भूख , मजदूरों का शहर से घर की तरफ का पलायन , पैदल चलते रास्ते में बिना कुछ खाये पिये मजदूरों की कई दिन की पैदल यात्रा, कुछ तो सँघर्ष कर सही सलामत घर पहुँच गये और कुछ रास्ते मे भूख और धन के अभाव में दम तोड़ देते है। इनकी स्थिति परिस्थिति से रूबरू होकर सरकारी संस्थाओं, समाजसेवी और अन्य संस्थाओं द्वारा ने इस कठिन दौर में भी सराहनीय कार्यो को अंजाम दिया।

इस महामारी का प्रभाव मनुष्य के साथ अन्य जीव जंतु पर भी पड़ा है। इसी संदर्भ जहा अन्य सामाजिक संस्थाओं की नजर ग़रीब असहाय मजदूर भूख से तड़पते बच्चें की तरफ गया वही इस समाज का एक समुदाय गौ माता मंदिर (गौशाला) की तरफ नही गया। गौ माता मंदिर के इस विशेष परिस्थिति को देखकर मैंने अपने आदरणीय चाचा जी संजय सिंह निवासी ग्राम पोस्ट युवराजपुर ग़ाज़ीपुर पश्चिम तोला से एक दिन आचानक बात की और इस गौ माता मंदिर के लिए दान की बात कही। आदरणीय चाचा जी द्वारा 2500 रुपये की और मेरे भाई कुश तिवारी जी के द्वारा 1100 रुपये की सहयोग राशि गुरु जी को दी गई । भगवान इन दोनों सदस्यो को इसी तरह शक्तिशाली और सामर्थवान बनाये जिससे ये इस तरह के कार्य एवं बिना बोलने वाले जन्तु के जीवन की रक्षा कर सके। इस पोस्ट के साथ में आप सभी को उस संस्था सबका सहयोग लिंक शेयर कर रहा हूँ जिस तरह हम सभी उस पेज पर पोस्ट को देखकर सेवा भाव की इच्छा को अपने मन एवम ह्रदय में प्रकट करते है और शक्ति एवम सामर्थ के अनुसार उसे पूरा करने की कोशिश करते है
जय गौ माता मंदिर
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मंगलवार, 2 जून 2020

दर्द क्या है इसका एहसास उसको ही पता है। जिंदगी का सफर जिसका मुश्किलों में रहा है- लव तिवारी

दर्द क्या है इसका एहसास उसको ही पता है।
जिंदगी का सफर जिसका मुश्किलों में रहा है।।

नाविक में बैठे उस आदमी को गहराई क्या अंदाजा।
एक लाचार ही समझे जो तैर कर दरिया को पार किया है।।

बातें कल जो करता था वो आज भी वही करेगा।
मजदूर मौन होकर आज भी सैकड़ों दर्द को सहा है।।

दिन जिसका नही रात तो उसकी काली ही होगी।
ग़रीब ही मजदूरी कर रात मे सड़को पर सोता है।

राजनीति आज भी हैं कल भी थी और हमेशा रहेगी।
इस फ़जीहत में बाप बेटो ने अपने को ही डँसा है।।

रचना - लव तिवारी
दिनांक - 02- जून-2020