कहानी लगभग दो दशक पहले की , जब हम बहुत छोटे बच्चे थे , गांव में वही लड़कपन का मौहोल हर बच्चो के साथ हम भी बहुत शरारती हुआ करते थे। फिर क्या एक दिन बड़े बाबा स्वर्गीय पंडित राम सिंहासन तिवारी द्वारा हम सभी को उनके परम् मित्र सहयोगी और बचपन के दोस्त श्री विश्वनाथ सिह जी के यहाँ पढ़ने के लिये हम सभी भाइयो को भेजा।
वही से शुरुआत हुई जिंदगी के अच्छे दौर की शिक्षा के साथ जो बाबा ने संस्कार सिखाया उसकी तो आज तारीफ सभी लोग करते है। कुछ बाते जो आज हम आप के सामने प्रस्तुत करेंगे उसे आप भी समझिये।
१) समय के पाबन्द- बाबा में गांधी जी के वो गुण विधमान थे जिसे आज की भाषा मे टाइम मैनेजमेंट कहते है। जिस समय हम सभी के पढ़ने का समय होता था उस वक्त अगर हम अपने गंतव्य स्थान पर नही पहुचते थे तो या बाबा की दाट मिलती थी या उस दिन पढ़ाई से छुट्टी हो जाती थी। बाबा ने कभी किसी को मारा नही लेकिन उनके नियम इतने सख्त थे कि उससे हम सब डर जाते और आगे कोई भी गलती न होनी की पूर्ण गुंजाइश रहती थी।
2)- संस्कृति और सामाजिकता का पूर्ण ज्ञान- एक बार की बात है मैं बहुत बड़ा होकर जब शहर पढ़ने चला गया था, एक बार बाबा से मुलाक़ात सड़क के किनारे ही गयी । और हम दो भाइयों के साथ बाबा ने बात करना प्रारम्भ कर दिया । बस हर बात में जी और आप कहके ही हमे सम्बोधन देते थे और हम अपने बचपना और लड़कपन में कभी आप और जी शब्द का उपयोग के शिक्षण संस्थानों के गुरुजन के सामने ही किया था। बाबा से बात खत्म हुई और हमने उसी दिन से ये सोच लिया कि बड़ा हो या छोटा सबसे बाबा वाले लहजे से ही बात करेंगे।
3) पोशाक और रंग रूप - जब हम सब बाबा के पास पढ़ने जाते थे तो पढ़ने से पहले बाबा की कुछ मिनट की एनालिसिस हम सभी के ड्रेस कोड और हमारे रहन सहन को लेकर थी अगर बाल बहुत बड़े होते थे तो बाल छोटे हो जाने चाहिए । या कल अगर पढ़ने आना तो बाल कटवा कर और हाथ के नाखून काट कर आना तभी आगे की शिक्षा पर अमल होगा। कभी कभी गाड़े रंग की शर्ट को पहन के चले जाते थे उस पर भी विशेष पाबंदी थी बाबा के तरफ से आज हम बड़े हुए तो हमे फॉर्मल और पार्टी वियर में सम्बन्ध पता चला जो बाबा के द्वारा हम सबको बचपन मे ही बता और सीखा दिया गया था।
4) रेडियो और देश विदेश की खबरों से लगाव- सारे खबरों से परिचित रहते थे बाबा सुबह दोपहर सायंकाल और रात्रि के समाचार पर बाबा की हमेशा नजर रहती है। ऐसा काम वही नही करते गांव के एक दो और बुजुर्ग भी करते थे लेकिन बाबा समाचार को सुनने के साथ मुख्य मुख्य समाचारो को कागज पर लिखते थे औऱ उसे कम से कम 2 से तीन बार पढ़ते और उस कागज के टुकड़े को अगर जरूरी था तो सम्भाल के रखते थे नही तो उसे फाड़ के फेक देते थे।ये काम अगर आज का युवा वर्ग करे तो उसे उसके ज्ञान के परकाष्ठा में कोई भी पीछे नही कर पाता।
5) सुबह और सायंकाल में बाबा को टहलने का भी एक शौक था। और ये शौक बाबा ने अपने अंतिम समय तक भी नही छोड़ा।
6) गांव में आज भी लोगो के पास काम की कमी होती है। जगह जगह लोग झुंड बनाकर अनर्गल बातो के साथ फर्जी के खेल जैसे जुआ तास खेलते है । वही बाबा को कभी मैंने इन कार्यो के साथ नही पाया बल्कि कभी उन्हें दूसरे के दरवाजे या द्वार पर वैठे हुए नही देखा। एक विशेष खाशियत ये भी थी बाबा की।
फिर हम वही कहेंगे।।
ये सच है की उस घर में हमेशा भगवान् का वास रहता है,
जहाँ बूढ़े दादा की एक खांसी पे पोता जाग जाता है !!
लेखक- लव तिवारी
युवराजपुर ग़ाज़ीपुर
संपर्कसूत्र- +91-9458668566
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें