मजहब का धंधा हो रहा है,
पढ़ा-लिखा भी आज अंधा हो रहा है।
देश की हुकूमत को लोग जिम्मेवार समझते है।
हर कौम को देखो गद्दार समझा रहा है।
आदत कल थी जो आज है और रहेगी ही हमारी।
मुफ्त की सेवा से आज दिल्ली मालामाल हो रहा है।।
दुसरो को दोष दे कर कब तक चैन से सो सकोगे ।
अपनी खामियों को जमाना नजर अंदाज कर रहा है।।
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