शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

तस्लीमा नसरीन को सत्य घटनाओं पर आधारित 'लज्जा' उपन्यास की कहानी- अनिल चौधरी

शर्म से डूब मरना चाहिए, अगर लिखने में भी लज्जा आ रही इन घृणित पंक्तियों को पढकर भी कोई CAA का विरोध करता है तो...

तस्लीमा नसरीन को सत्य घटनाओं पर आधारित जिस 'लज्जा' उपन्यास के कारण अपने वतन से निर्वासित होना पड़ा, उसका यह अंश जरूर पढ़ें, और फिर CAA पर अपनी राय तय करें...

बेटियों के बलात्कारियों से जब माँ ने कहा "अब्दुल अली, एक-एक करके करो,,, नहीं तो वो मर जाएंगी "।

यह सच्ची घटना घटित हुई थी 8 अक्टूबर 2001 को बांग्लादेश में।

अनिल चंद्र और उनका परिवार 2 बेटियों 14 वर्षीय पूर्णिमा व 6 वर्षीय छोटी बेटी के साथ बांग्लादेश के सिराजगंज में रहता था। उनके पास जीने, खाने और रहने के लिए पर्याप्त जमीन थी।

बस एक गलती उनसे हो गयी, और ये गलती थी कि एक हिंदू होकर 14 साल व 6 साल की बेटी के साथ बांग्लादेश में रहना। एक क़ाफिर के पास इतनी जमीन कैसे रह सकती है..? यही सवाल था बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिद ज़िया के पार्टी से सम्बंधित कुछ उन्मादी लोगों का।

8 अक्टूबर के दिन..

अब्दुल अली, अल्ताफ हुसैन, हुसैन अली, अब्दुर रउफ, यासीन अली, लिटन शेख और 5 अन्य लोगों ने अनिल चंद्र के घर पर धावा बोल दिया, अनिल चंद्र को मारकर डंडो से बाँध दिया, और उनको काफ़िर कहकर गालियां देने लगे।
 
इसके बाद ये शैतान माँ के सामने ही उस 14 साल की निर्दोष बच्ची पर टूट पड़े और उस वक्त जो शब्द उस बेबस व लाचार मां के मुँह से निकले वो पूरी इंसानियत को झंकझोर देने वाले हैं।

अपनी बेटी के साथ होते इस अत्याचार को देखकर उसने कहा "अब्दुल अली,, एक एक करके करो, नहीं तो मर जाएगी, वो सिर्फ 14 साल की है।"

वो यहीं नहीं रुके,,उन माँ बाप के सामने उनकी छोटी 6 वर्षीय बेटी का भी सभी ने मिलकर ब#लात्कार किया ....उनलोगों को वहीं मरने के लिए छोडकर जाते जाते आस पड़ौस के लोगों को धमकी देकर गए की कोई इनकी मदद नहीं करेगा।

ये पूरी घटना बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भी अपनी किताब “लज्जा” में लिखी, जिसके बाद से उनको अपना ही देश छोड़ना पड़ा। ये पूरी घटना इतनी हैवानियत से भरी है परन्तु आज तक भारत में किसी बुद्धिजीवी ने इसके खिलाफ बोलने की हैसियत तक नहीं दिखाई है, ना ही किसी मीडिया हाउस ने इसपर कोई कार्यक्रम करने की हिम्मत जुटाई है।

ये होता है किसी इस्लामिक देश में हिन्दू या कोई अन्य अल्पसंख्यक होने का, चाहे वो बांग्लादेश हो या पाकिस्तान।

पता नहीं कितनी पूर्णिमाओं की ऐसी आहुति दी गयी होगी बांग्लादेश में हिंदुओं की जनसँख्या को 22 प्रतिशत से 8 प्रतिशत और पाकिस्तान में 15 प्रतिशत से 1 प्रतिशत पहुँचाने में।

और हिंदुस्तान में जावेद अख्तर, आमिर खान, नसीरुद्दीन शाह व हामिद अंसारी जैसे हरामखोर लोग कहते है कि हमें डर लगता है,,, जहाँ उनकी आबादी आज़ादी के बाद से लगातार बढ़ रही है।

अगर आप भी सेक्युलर हिंदु (स्वघोषित बुद्धिजीवी) हैं और आपको भी लगता है कि भारत में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं,, तो कभी बांग्लादेश या पाकिस्तान की किसी पूर्णिमा को इन्टरनेट पर ढूंढ कर देखिये !!!

मूर्खतापूर्ण ढंग से केवल संविधान की दुहाई देते हुए रूदाली रूदन करने की बजाय इन लोगों के बारे में बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की राय भी पढियेगा। 

मर्जी आपकी !

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