गांव और कुआँ का सम्बन्ध बहुत पुराना है। कुँवा या कूप जमीन को खोदकर बनाई गई एक संरचना है जिसे जमीन के अन्दर स्थित जल को प्राप्त करने के लिये बनाया जाता है। इसे खोदकर, ड्रिल करके (या बोर करके) बनाया जाता है। बड़े आकार के कुओं से बाल्टी या अन्य किसी बर्तन द्वारा डौर और हाथ की सहायता से पानी निकाला जाता है। भारी मात्रा में जल की पूर्ति के लिए इनमें जलपम्प भी लगाये जाते है जिससे बड़ी मात्रा में खेतों की सींच कर फसल की पैदावार की जा सके।
हमारे गांव युवराजपुर में कुआ का एक अलग महत्व था। जैसे कि हम और आप जानते है किसी व्यक्ति का बर्चस्व उसके जमीन जायदाद के साथ उसमे कुआ की प्रमुख भूमिका होती थी। अधिकतर जमीदार के दौर उसके घर या द्वार के आसपास कुआँ का होना पाया जाता है। इसी प्रकार हमारे गांव में भी जमीदारो द्वारा भिन्न भिन्न जगहों पर कुओ की व्यवस्था की गई थी। अत्याधुनिक संसाधनों और घर मे बढ़ती जरूरतों हैंडपम्प समरसेबुल के होने के बाद इन कुओ को कोई नही पूछता और इन कुँआओ की बहुत दयनीय दसा हो गयी है। स्वर्गीय मदन मोहन सिंह पूर्व ग्राम प्रधान द्वारा उनके कार्यकाल में गांव के अधिकत्तर कुओं की मरम्मत की गई थी जिससे कुआँ वास्तविक रूप पहले से बेहतर और अच्छी हो गयी थी। लेकिन अत्याधुनिक संसाधनों के दौर में कूआँ भी विलुप्ति के दौर पर है। गांव में कई कुओं को भर दिया गया और जिससे उनका वास्तविक रूप भी खत्म हो गया है। कुछ कुएं आज भी है लेकिन उनका उपयोग न होने की वजह इनका पानी दूषित और गन्दा हो गया है। मेरे घर के पास भी एक खूबसूरत कूआँ स्वर्गीय श्री अक्षयलाल बाबा के द्वारा गांव के उपयोग के लिए खोदा गया था । जिसका उपयोग हमने भी अपने बचपन काल मे बहुत किया है।
#युवराजपुर #ग़ाज़ीपुर #उत्तर_प्रदेश 232332
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