पिछले कुछ दिनों से गर्मी के आतंक ने भारत देश को हिला कर रख दिया है, एक दिन तो यह आंकड़ा था विश्व के 15 सबसे गर्म शहरो में भारत के 10 शहर शामिल थे जिसमें राजस्थान के चूरू जिले का तापमान सबसे अधिक 50℃ से भी ऊपर था, दोस्तों पानी का स्थायी समाधान नदी नालों को जोड़ना नहीं हो सकता, इसका स्थाई समाधान हमें हमारी जड़ों में और हमारी परंपरा में तलाशना होगा। हमारे पुरखों ने जंगलों से उतना ही लिया, जितना आवश्यक था। हमारे पुरखे सूखी लकड़ियों का प्रयोग करते थे। हरी टहनियों को तोड़ना पाप मानते थे।
हाल में ही भारत के प्रधानमंत्री से एक विशेष समुदाय के व्यक्ति के द्वारा मुलाकात हुई उसने भारत मे संस्कृत अध्ययन पर विशेष जोर देने को कहा संस्कृत भाषा मे पेड़ संरक्षण पर विशेष बल दिया है पिछली तीन सदियों से प्रकृति के साथ भरपूर छेड़छाड़ की गई। यह प्रक्रिया औपनिवेशिक भारत के पहले वन अधिनियम कानून से शुरू हुई। आज़ादी के बाद 1970 के बाद हमने सबसे अधिक प्रकृति और उसके उपादानों के साथ छेड़खान की है। इसका परिणाम हमें अत्यधिक तापमान, जल की कमी और सूखे के रूप में हमारे सामने आया है।
दोस्तों जल का स्थायी समाधान पर्यावरण में बढ़ते तापमान का स्थायी उपाय अधिकाधिक वृक्षारोपण है। वृक्षारोपण की बात हर साल होती है, इसलिए हमें यह बात सामान्य लगती है, लेकिन इस बार इसे एक उत्सव के रूप में मनाया जाए तो और अधिक बेहतर होगा।
आने वाले मानसून के मध्य में हम 30 दिनों तक अपने अपने क्षेत्रों में वृक्षारोपण का कार्य करें। इसकी शुरुआत अपने-अपने घरों से कीजिये, इसके बाद सार्वजनिक स्थलों- विद्यालय, लोक धार्मिक स्थलों, ग्राम पंचायत भवन, डिस्पेंसरी, सड़क के किनारे, अथाई पर वृक्षारोपण का कार्य करेंगे। इससे एक ओर जल और जंगल सुरक्षित होगा वहीं दूसरी तरफ हमारे पुरखों के लिए यह एक आदर्श श्रद्धांजलि होगी। हमारी विचारधारा आदिवासियत की दिशा में यह एक सशक्त कदम भी होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें