हुआ कैसा यह अखबार शाया है
पन्ना - पन्ना गम हर्फ - हर्फ दर्द छाया है
पन्ना - पन्ना गम हर्फ - हर्फ दर्द छाया है
चीख के दम तोड़ती इंसानियत यहां
कैसे दौर में भला यह वक्त आया है
कैसे दौर में भला यह वक्त आया है
दोस्त एक भी तो नहीं दिख रहा यहां
खींच ऐसे मुकाम पर जश्न लाया है
खींच ऐसे मुकाम पर जश्न लाया है
रोके नहीं हैं रुकते यहां अश्क किसी के
किसी शायर ने यूं इक नज्म गाया है
किसी शायर ने यूं इक नज्म गाया है
खौफ के साए में सभी लिपटे दिख रहे
मौत करीब इतना सबने पाया है
मौत करीब इतना सबने पाया है
डॉ एम डी सिंह
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