शनिवार, 22 अप्रैल 2017

दोस्त एक भी तो नही दिख रहा यहाँ- डॉ एम डी सिंह

हुआ   कैसा   यह   अखबार   शाया   है
पन्ना - पन्ना गम हर्फ - हर्फ  दर्द छाया है

चीख  के  दम  तोड़ती  इंसानियत  यहां
कैसे  दौर  में  भला  यह  वक्त  आया है

दोस्त  एक भी तो नहीं  दिख  रहा  यहां
खींच  ऐसे  मुकाम  पर  जश्न  लाया  है

रोके नहीं हैं रुकते यहां अश्क किसी के
किसी  शायर  ने  यूं इक  नज्म गाया है

खौफ के साए में सभी लिपटे दिख रहे
मौत   करीब   इतना   सबने   पाया  है

डॉ एम डी सिंह


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