जहां इंसानियत दिखती नहीं यार कहीं पर
कहते हो तुम था जमी पे कभी जन्नत यहीं पर
कहते हो तुम था जमी पे कभी जन्नत यहीं पर
गुलों की जहां बस्तियां दिखतीं थी हर जगह
टुकड़े पत्थरों के बिखरे हैं हर सिम्त वहीं पर
टुकड़े पत्थरों के बिखरे हैं हर सिम्त वहीं पर
जाने को जहां थी भरी दिल में हर किसी के हाँ
आज क्यूँ टिकी है बात एकदम से नहीं पर
आज क्यूँ टिकी है बात एकदम से नहीं पर
जहां फूलों की घाटियां शिकारों पे शहर था
सुना वही वादियां जी बन्दूकों पे रहीं पर
सुना वही वादियां जी बन्दूकों पे रहीं पर
शाल पश्मीने की ओढ़ के ले हाथों में कांगड़ी
वे मेरे इरादों की मीनारें रेत सी ढहीं पर
वे मेरे इरादों की मीनारें रेत सी ढहीं पर
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