रात की शरद हवाओ में ऐसे अनगिनत घरो पहलूओं पर गुफ़्तगू , वही बड़े बुजुर्ग जहा आग की लपटो के साथ एक और अपने को शर्दी और शरद हवाओ से आराम की फ़िराक में होते वही कुछ बाते जो अकसर दिल को ठेस पहुचती हुयी कुछ बाते, गांव के घरोँ में कुछ बृद्ध महिला एवं पुरुष का जो हाल होता था वो अक्सर ठण्ड में धुप को तरसती और गर्मी में छाँव को ढ़ुढ़ते हुए एक शख्स की कहानी , वही तकलीफ भरे वक्त के इस दौर में बुजुर्गो के पास ख़ुशी का एक दौर होता है और वो है छोटे बच्चों का स्नेह और छोटे बच्चों का लगाव, इस बातों को मैं दावे से कह सकता हु जो प्रेम उस समय बुजुर्गो को उनके बच्चे नहीं दे पाते वो सुख उनके पोते और पोतियों द्वारा मिल जाता है और जिंदगी में जीने की उम्मीद के साथ एक सुखद अहसास भी
बेजुबाँ मैं नहीं एक दिन तुम भी होंगे-
ऐसा नहीं कि,
कहने को कुछ नही बाकी
मैं बस देख रही हूं..
क्या ख़ामोशी भी समझते हैं
सुनने और देखने वाले ....?
कहने को कुछ नही बाकी
मैं बस देख रही हूं..
क्या ख़ामोशी भी समझते हैं
सुनने और देखने वाले ....?
प्रस्तुति- #लव_तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें