शनिवार, 28 मार्च 2015

चंद सपने, चंद साथी हैं अभी तक गाँव में |


चंद सपने, चंद साथी हैं अभी तक गाँव में |
कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में |

वो चुराना आम खाकर कुछ रसीली गालियाँ,
भोर सी यादें सुहानी हैं अभी तक गाँव में |
मुह बनाकर बंदरों सा बंदरों को छेड़ना,
जागती रातें निराली हैं अभी तक गाँव में |
मेड पर वो बैठना वो हाथ लेना हाथ में,
वो फिजायें मुस्कुराती हैं अभी तक गाँव में |
मैं कहाँ तुम भी कहाँ हैं गुम शहर की भीड़ में,
पनघटें हमको बुलाती हैं अभी तक गाँव में |
होती है सुनहली सुबह-ओ-शाम अभी तक गाँव में।
मर्यादा की महीन लकीर बची है अभी तक गांव में।






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