शनिवार, 19 जुलाई 2014

ख़ाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती छोटी मोटी बात पे हिज़रत नहीं होती

ख़ाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती 
छोटी मोटी बात पे हिज़रत नहीं होती
पहले दीप जलें तो चर्चे होते थे 
और अब शहर जलें तो हैरत नहीं होती
तारीखों की पेशानी पर मोहर लगा 
ज़िंदा रहना कोई करामात नहीं होती
सोच रहा हूँ आखिर कब तक जीना है 
मर जाता तो इतनी फुर्सत नहीं होती
रोटी की गोलाई नापा करता है 
इसीलिए तो घर में बरकत नहीं होती
हमने ही कुछ लिखना पढना छोड़ दिया 
वरना ग़ज़ल की इतनी किल्लत नहीं होती
मिसवाकों से चाँद का चेहरा छूता है 
बेटा ......इतनी सस्ती जन्नत नहीं होती
बाजारों में ढूंढ रहा हूँ वो चीज़े 
जिन चीजों की कोई कीमत नहीं होती
कोई क्या राय दे हमारे बारे में 
ऐसों वैसों की तो हिम्मत नहीं होती .

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