गाज़ीपुर के लाल - भोलानाथ गहमरी को इतनी जल्दी भुला दिया जाएगा जिसकी कल्पना नहीं थीं. जब तक ज़िनदा रहे तबतक आगे पीछे गायक, कवि गज़ले, भोजपुरी गीत पाने के लिए घूमा करते थे. अब गाज़ीपुर मे होने वाले सामारोह - सेमिनार मे उनका कोई नाम भी नहीं लेता - यह अफ़सोस की बात है 🪭
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कभी आकाशवाणी केन्द्रों ने गांव-गिरांव के सामान्य कवियों - लोक कलाकारों को जमीन से उठा कर, बड़े मंचों तक पहुुंचाया था - वहां से निकले अनेक अनमोल हीरे, भोजपुरी दुनिया की थाती बन कर रह गये । उन्हीं में से निकले गाज़ीपुर के एक अनमोल हीरों भोलानाथ गहमरी साहब भी थे.
🪭 कवना खोतवा में लुकइलू, आहिरे बालम चिरई । आहि रे बालम चिरई….🪭
इस गीत के गायक थे मोहम्मद खलील और रचयिता - गाजीपुर जनपद के गहमर गांव के रहने वाले भोलानाथ गहमरी - भोजपुरी लोेकगीतों की उम्दा रचना हुई और उम्दा स्वर से गायकी परवान चढ़ी।
उनका यह गीत -‘ एक त मरीला हम नागिन के डसला से, दूसरे सतावति बा सेजरिया हे, हे ननदो दियना जरा द’ तब तन-मन सिहर जाता है।
भोलानाथ गहमरी ने लिखा था- 'लाली-लाली डोलिया हमरे दुअरिया, पिया लेहले अहिले संगवा में चारू हो कहार’।
गहमरी के गीतों की रचना मे भाव समाहित हैं - आत्मा की धड़कन है। गहमरी जी के एक शिष्य
मोहम्मद खलील थे.
गहमरी और खलील की बैठकी में गीतों की रचना और उनका धुन, एक साथ तैयार किया जाता । दोनों कलाकार साथ-साथ रातभर गीतों में सुधार करते और मांजते - गहमरी सुबह चार से छः बजे तक गीतों की रचना करते- गहमरी के कई गीत रचना का मूलमंत्र खलील ने सुझाया है, यह तथ्य भोजपुरी समाज को शायद पता न हो।
गुरु-चेले के विमर्ष से भोलानाथ गहमरी ने जो गीत लिखा, और जिसे गाकर खलील अमर हो गये, उसके पीछे की कहानी उनके बेटे आजाद बताते हैं। वह चश्मदीद हैं एक वाकये के । कहते हैं कि अब्बा ने गहमरी से कहा, ‘गुरुजी, कहां तुझे ढूंढू, कहां तुझे पाऊं, गाने को सुन मेरे दिल में एक भाव आया है- कवना खोतवा में लुकइलू । भोलानाथ जी ने जब खलील की बात सुनी तो एकदम से उचक गये । बोले, वाह! अद्भुत गीत बनेगा। इसे लिखता हूं - और तब वह यादगार गीत लिखा गया-
कवना खोतवा में लुकइलू, आहि रे बालम चिरई ।
बन-बन ढूँढलीं, दर-दर ढूँढलीं, ढूँढलीं नदी के तीरे,
साँझ के ढूँढलीं, रात के ढूँढलीं, ढूँढलीं होत फजीरे
जन में ढूँढलीं, मन में ढूँढलीं, ढूँढलीं बीच बजारे,
हिया हिया में पैस के ढूँढलीं, ढूँढलीं बिरह के मारे
कवने अतरे में, कवने अतरे में समइलू, आहि रे बालम चिरई ।
गीत के हर घड़ी से पूछलीं, पूछलीं राग मिलन से,
छंद छंद लय ताल से पूछलीं, पूछलीं सुर के मन से
किरन किरन से जाके पूछलीं, पूछलीं नील गगन से,
धरती और पाताल से पूछलीं, पूछलीं मस्त पवन से
कवने सुगना पर, कवने सुगना पर लुभइलू, आहि रे बालम चिरई ।
मंदिर से मस्जिद तक देखली, गिरजा से गुरूद्वारा,
गीता और कुरान में देखलीं, देखलीं तीरथ सारा
पंडित से मुल्ला तक देखलीं, देखलीं घरे कसाई,
सगरी उमिरिया छछनत जियरा, कैसे तोहके पाईं
कवने बतिया पर, कवने बतिया पर कोन्हइलू, आहि रे बालम चिरई ।
कवने खोतवा में लुकइलू, आहि रे बालम चिरई ।
आहि रे बालम चिरई, आहि रे बालम चिरई ॥
देखा जाये तो खलील जैसी भोजपुरी गायकी परंपरा अब गायब है। उन्हीं के शब्दों में कहा जा सकता है कि -वह गायकी लुका गई है।
उनके स्वर में यह मार्मिक निर्गुन गीत, मन को सुकुन देता था-
अइसन पलंगिया बनइहा बलमुवा
हिले ना कवनो अलंगीया हो राम
हरे-हरे बसवा के पाटिया बनइहा
सुंदर बनइहा डसानवा
ता उपर दुलहिन बन सोइब
उपरा से तनिहा चदरिया हो राम
अइसन पलंगीया…..
पहिले तू रेशम के साडी पहिनइह
नकिया में सोने के नथुनिया
अब कइसे भार सही हई देहियाँ
मती दिहा मोटकी कफनिया हो राम
अईसन पलंगिया…….
लाल गाल लाल होठ राख होई जाई
जर जाई चाँद सी टिकुलिया
खाड़ बलम सब देखत रहबा
चली नाही एकहू अकिलिया हो राम
अइसन पलंगिया……..
केकरा के तू पतिया पेठइबा
केकरा के कहबा दुलहिनिया
कवन पता तोहके बतलाइब
अजबे ओह देस के चलनिया हो राम
अइसन पलंगिया……..
चुन चुन कलियन के सेज सजइहा
खूब करिहा रूप के बखानवा
सुंदर चिता सजा के मोर बलमू
फूंकी दिहा सुघर बदनियाँ हो राम
अइसन पलंगिया…….
भोलानाथ गहमारी + मोहम्मद खलील को नमन।।
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