शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

हम धर्म परिवर्तन को ऐच्छिक विषय मानते हैं प्रलोभन देकर धर्म बदलवाना अपराध है-

शिया मुस्लिम बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने सनातन धर्म अपनाया था और अपना नाम जितेंद्र त्यागी रख लिया था !उन्हें हिन्दू धर्म में आकर क्या मिला इसका जवाब शंकराचार्यों, महामंडलेश्वरों और अखाड़ों को देना चाहिए?

रिजवी कुरान पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में जेल काट रहे हैं, बाहर आएंगे तो किसी दिन सर तन से जुदा हो सकता है !
कोई मठाधीश उनकी सुध नहीं ले रहा, जिस दोयम दर्जे की कथित धर्मसंसद में उन्होंने आपत्तिजनक भाषण दिया था, उन्होंने भी वसीम का साथ छोड़ दिया है !
वह दिन दूर नहीं जब उनका परिवार बर्बादी की गर्द में छिप जाएगा और सनातनधर्म में लौटने का ख़्वाब फिर कोई नहीं देखेगा !

बीमारी के कारण तीन महीने इलाज कराकर वसीम रिजवी लौटे तो काफी उदास थे। एक समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में उन्होंने अपना दर्द बताते हुए स्वीकार किया कि सबने किनारा कर उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। बेहद मायूस जितेंद्र त्यागी ने आत्महत्या तक की इच्छा जताई। उनकी बिखर रही मानसिकता यदि उन्हें एक बार फिर इस्लाम में वापस ले जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।

बड़े बड़े अखाड़ों, सैकड़ों आश्रमों और अध्यात्म की इस भूमि पर वसीम रिजवी अकेले नहीं, जो धर्म बदलकर उपेक्षा का यह दंश भोग रहे हैं। अपनी बस्ती के निवासी स्वर्गीय शांतिप्रिय आर्य और उनके परिवार को अच्छी तरह जानता हूँ। साठ साल पहले आर्यसमाज जाकर हिन्दू धर्म अपनाया था, किसी हिंदू ने सुध न ली, पूरा परिवार घोर गरीबी में जीवन यापन कर रहा है।

हम धर्म परिवर्तन को ऐच्छिक विषय मानते हैं। प्रलोभन देकर धर्म बदलवाना अपराध है, स्वैच्छिक धर्म परिवर्तन संविधान सम्मत है। हाल ही में आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत ने कहा था कि भारत के मुसलमानों का डीएनए एक जैसा है। पर उनकी बात मानकर यदि कोई मुस्लिम, हिन्दू धर्म में वापस आए तो क्या संघ परिवार उसके साथ खड़ा होगा?

वसीम रिज़वी के साथ न तो आरएसएस आया, न विश्व हिंदू परिषद, न बजरंग दल और न कथित हिन्दू सेना? देश का कोई धर्माचार्य उन्हें समाहित नहीं कर पा रहा। सर्वे भवन्तु सुखिनः के जयघोष करने वाले बड़े बड़े संत उन्हें अपने आश्रम में बुलाकर किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते। वे जितेंद्र त्यागी तो बन गए, परंतु त्यागी समाज ने ही उन्हें कहाँ अपनाया? हाल ही में नोएडा में सांसद महेश शर्मा के विरोध में महापंचायत करने वाले त्यागी समाज को जितेंद्र त्यागी की याद नहीं आई।

वसीम रिजवी मुस्लिम धर्म पर तल्ख बयानबाजी कथित धर्मसंसद में न करते तो आराम से रहते। यद्यपि वे शिया हैं और मुस्लिम जगत में शियाओं को अधूरा मुसलमान माना जाता है। जिस धर्म में उनका जन्म हुआ उसकी सबसे पवित्र किताब पर टिप्पणी करने की उन्हें कोई जरूरत नहीं थी। लेकिन कुछ उग्र साधुओं के जाल में फँसकर वे भी उग्र हो उठे। खैर, जो होना था वह हुआ। अब हिंदू समाज और संत समाज का दायित्व है कि रिजवी को अपनाएं। नहीं अपनाना चाहते तो रिजवी पश्चाताप करें और इस्लाम में वापस लौट जाएं।



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