मंगलवार, 15 जुलाई 2025

इस क़दर आइना से वो डरने लगे छुप छुप करके अब तो संवरने लगे

इस क़दर आइना से वो डरने लगे  

छुप छुप करके अब तो संवरने लगे


चांद निकला सफ़र पे लिये रोशनी 

दाग़ उसका दिखाकर वो हंसने लगे


तोड़ना जोड़ना जिनकी फितरत रही 

टूट कर अब तो ख़ुद ही बिखरने लगे


कैसा अंधों का ये तो शहर हो गया 

खोटे सिक्के धड़ल्ले से चलने लगे


खूब कोशिश से वे तो सुधर ना सके 

 वक्त बदला तो "सागर"सुधरने लगे





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