गुरुवार, 16 जनवरी 2025

रजाइयों में बस्ती रचना डाॅ एम डी सिंह

रजाइयों में बस्ती :

गांव घर शहर गली खेत सड़क परती
कोहरे की धुंध में डूबी है धरती

चांद भी दिखा नहीं
सूर्य भी उगा नहीं
है खड़ा श्वेत पटल
किन्तु कुछ लिखा नहीं

नाव नदी नहर रेत सब एक करती
कोहरे की धुंध में डूबी है धरती

हाथों को हाथ ना
पैरों को साथ ना
दिखता बस कोहरा
करता कुछ बात ना

रेल बस वायुयान की खत्म हुई हस्ती
कोहरे की धुंध में डूबी है धरती

चाय की चुस्की में
मंद मधुर मुस्की में
लगी हुई आग है
हर ओर खुश्की में

जेबों में मुट्ठी रजाइयों में बस्ती
कोहरे की धुंध में डूबी है धरती

डाॅ एम डी सिंह।



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