सोमवार, 4 सितंबर 2023

अपने भारत को क्या हो गया बीना राय गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

 अपने भारत को क्या हो गया*

अब क्या कहा जाए कि
इस वक्त को क्या हो गया
तार-तार हो रही नारी
इंसानियत को क्या हो गया
हर दिन हर पल ये हाहाकार
मानो घड़ी प्रलय की आई है
फिर भी क्षणभंगुर जीवन से
सबने कितनी आस लगाई है
कुछ मुक्त नहीं मिलावट से
अब असलियत को क्या हो गया।
हर बार चुनावी मौसम में
वादा करते हैं खोखला
सच्चाई का सहारा कोई ना ले
हर तरफ है सिर्फ ढकोसला
कर रहे घिनौनी राजनीति
उनके फितरत को क्या हो गया
जो निर्दोष नारी को नंगी कर
कुत्तों से जूझ पड़े थे
शायद था ना उसमें एक पुरुष
दानव से बद्तर हो गए थे
क्यों लगे विवेक में कीड़े
उस ख़लक़त को क्या हो गया।
जला कर बस्तियां निर्दोषों की,
कुछ तुच्छ अधिकार मांग रहे हैं
क्यों शर्म नहीं आती उन्हें,
हैवानियत की सीमा लांघ रहे हैं
लग गई नज़र ये किसकी
अपने भारत को क्या हो गया ।
स्वरचित कविता
बीना राय


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें