उतरते हुओं को देख कर कहो नहीं चढ़ाई बहुत है
बेशर्म हैं महफ़िलें जहां पर ख़ुद की बड़ाई बहुत है
दूरियाँ उनके लिए हैं जिनमें मिलने की हूक ना हो
निभाने का हुनर हो तो ढाई अक्षर पढ़ाई बहुत है
वो साथ होते मगर हो न सके कहते हैं तबीयत से
उलझनें हैं कि मजबूरियाँ बातों में सफ़ाई बहुत है
बिना साये के दरख़्त का रिश्ता राहगीरों से कहाँ
सच बोलने वालों के हिस्से आती लड़ाई बहुत है
योगेश विक्रान्त
#yogeshvikrant
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें