नवगीत - अक्षय पाण्डेय
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...अधिनायक जय हे !
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लोकतंत्र के 'लायक' जय हे!
जन गण मन 'अधिनायक' जय हे!
घूम-घूम कर अपनी डफ़ली
चारों ओर बजाए,
ऊॅंची-ऊॅंची तान उठाए
ऊॅंचे स्वर में गाए,
विरुद विरचने वाले ऐसे
देश-राग के गायक जय हे!
नाटक थोड़ा ही बीता है
अभी बहुत है बाकी,
पंगत का जूठन अब सुख से
खाती बूढ़ी काकी,
सेवा-भाव निराला तेरा
जन के सच्चे पायक जय हे!
हुआ सबेरा जनता जागी
बीती काली रातें,
मणिपुर, राजस्थान, नूंह सब
बेमतलब की बातें,
बीत गये दुख के दिन सबके
जनता के सुखदायक जय हे!
ooo
- अक्षय पाण्डेय
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