उलझन तुझको और भी उलझा सकती है
सूझबूझ ही मंज़िल को पा सकती है
तदबीरों से बन जाती हैं तक़दीरें
मेहनत ही क़िस्मत को चमका सकती है
रिज़्क़ नहीं मिलता है मुक़द्दर से ज़्यादा
वक़्त से पहले मौत नहीं आ सकती है
संभल संभल के राहों पे चलना होगा
ठोकर ही इस बात को समझा सकती है
हुब्बे अली में डूब के मुशरिक बन बैठे
बुग़ज़े अली ईमान को भटका सकती है
सुर सरगम संगीत की थोड़ी समझ है तो
रफ़ी के नग़मे नई नस्ल गा सकती है
सुखनवरी की कला ही ऐसी है इरशाद
उजलत में भी ग़ज़ल को निपटा सकती है
#इरशाद_जनाब_ख़लीली
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