प्रारूप
नाम : इरशाद अहमद
(इरशाद जनाब ख़लीली)
जन्मतिथि : 01/05/1981
माता का नाम : सलामुन नेसा
पिता का नाम : मोहम्मद आशिक़
जन्म स्थान : जमालपुर (यूसुफपुर-मोहम्मदाबाद)
शैक्षिक योग्यता : एम. ए. एम. एड.
संप्रति (पेशा) : डायट प्रवक्ता
विधाएं : गीत, ग़ज़ल, नज़्म, निबंध, इतिहास लेखन, जीवन परिचय
साहित्यिक गतिविधियां : काव्य गोष्ठी, शेरी नशिस्त, कवि सम्मेलन, मुशायरोंं में प्रतिभाग करना
प्रकाशित कृतियां : कोई नहीं
पुरस्कार सम्मान : कोई नहीं
संपर्क सूत्र : 8182076748
विशेष परिचय : शायर, लेखक, शिक्षक, आयोजक, संयोजक, संचालक, गायक, प्रस्तोता
रचना
दुनिया को युद्ध के संकट से हमने हर बार बचाया है
हिंसा करने वालों को अहिंसावाद का पाठ पढ़ाया है
प्राचीन काल से कुटुंबकम् वसुधैव प्रेम की धारा है
गौतम चिश्ती बाबा कबीर नानक गांधी का नारा है
वीरों ने अपना लहू दिया जब जब भारत ने पुकारा है
जब देश पे संकट आया है हमने जौहर दिखलाया है
मन चंगा और कठौती में गंगा हाथों में तिरंगा है
नन्दा देवी सागरमाथा के टू और कंचनजंघा है
जो मठाधीश बनते फिरते हैं उनसे लेना पंगा है
हमने ऊंची दुर्गम पहाड़ियों पर झण्डा लहराया है
साम्राज्य वाद की नीति विश्व के लिए भयंकर ख़तरा है
दुश्मन को घुसकर मारेंगे इस बार हमारा जतरा है
हां मातृभूमि को पेश जिस्म के लहू का अंतिम क़तरा है
छेड़ो न हमें छोड़ेंगे नहीं हमने अक्सर समझाया है
यदि युद्ध चाहते हो तो फिर कायरता क्यों दिखलाते हो
अंधियारे में छुप कर धोखे से हमला क्यों करवाते हो
निः शस्त्र निहत्थों को मरवाकर बड़े वीर कहलाते हो
तुम जैसे कितने वीरों को हमने ही धूल चटाया है
ये सीधे सीधे भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है
दिल्ली में बैठे लोगों से मेरा प्रत्यक्ष निवेदन है
तत्काल कुचल दो सांपो को जो उठा तनिक उनका फन है
इच्छा शक्ति मज़बूत करो दुश्मन घर में घुस आया है
अब्दुल हमीद सा परमवीर उस्मां ब्रिगेडियर देखा है
कारगिल की चढ़ाई देखी है और सन इकहत्तर देखा है
टाइगर हिल पर दुनिया ने हिंदुस्तान का जौहर देखा है
जय हिन्द की सेना ने जनाब घुसपैठ को मार भगाया है
इरशाद जनाब खलीली
रचना-२
गंध है कैसा रंग स्वेद का?
काम यही है नस्लभेद का!
नाव किनारे क्यों कर डूबी?
प्रश्न यही है अनुच्छेद का!
धर्म कर्म खतरे में आ गया!
लोग पढ़ें सन्देश खेद का!
नेता है तो ज्ञाता होगा!
साम दाम का दण्ड भेद का!
एक है पालनहार सभी का!
कहना है क़ुरआन-वेद का!
उसके द्वारे सब समान हैं!
भेद नहीं काले सफ़ेद का!
रचना ३
झूठ के आगे लब खोलो
हिम्मत हो तो सच बोलो
पहले मन को साफ़ करो
फिर बातों में रस घोलो
कुछ भी कहने से पहले
अपने शब्दों को तौलो
सूरज सर पे चढ़ आया
बिस्तर छोड़ो मुँह धो लो
कौन यहाँ दुःख बाँटेगा
चुपके से मन में रो लो
जीवन झूला कहता है
देख संभल के तुम डोलो
अपनी ज़िम्मेदारी को
अपने कांधो पर ढो लो
इश्क़ आग का दरिया है
डूब सको तो फिर हो लो
अब तो फोन रखो इरशाद
आँखें भारी हैं सो लो
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें