“भइल बिदाई मंगरु क मेहरारू क”
पहिल-पहिल जब भइल बिदाई मंगरु क मेहरारू क।
लागल आवे खबर फोन पर सास-ससुर अउर साढ़ू क॥
साली कइलस फोन की जीजा दिदिया के बिदा कइ दीं।
सुन के प्रान सुखल मंगरु क, मेहरारू नइहर जाई।
बिना प्राणप्यारी क इहवाँ हमसे नाहिं जियल जाई॥
धकधक-धकधक धड़कत छाती, ओठ सूखि के भइल करार।
अंखियन से झर-झर-झर होखे लागल, सावन के बउछार॥
डहक-डहक के मंगरु रोवें, चिला-चिला के बाप रे बाप।
सुबुक-सुबुक समझावे मेहरिया, जल्दी हमें बोलाइब आप॥
रउवा बिना त हमरो जियरा नाहिं लगी नइहरवा में।
रउवा अइसन प्राननाथ हमके जे मिलल ससुरवा में॥
मंगरु-बो गाड़ी में चढ़ली, मंगरु भेंटइं भरि अँकवार।
जुटल महल्ला-टोला समझावे, मंगरु के भरल दुवार॥
लोग लगल बानs मंगरु के समझावे क करस उपाय।
केहु कुछ, केहु कुछ बोले, बारी-बारी से बतियाय॥
जल्दी गंवना क दिन धरिहs, अबहीं तनकी धीर धरs।
सबकर जालीं, तोहरो जात हईं त तनकी सबुर करs॥
गाड़ी घुर्र-घुर्र कइ के चलि दिहलस, देखल सभे निहार।
दुवरे पर मुरझाई मंगरुवा, बइठल हाथे पकड़ कपार॥
- शिब्बू गाजीपुरी,
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