शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

भइल बिदाई मंगरु क मेहरारू क- शिब्बू गाजीपुरी

 भइल बिदाई मंगरु क मेहरारू क”

पहिल-पहिल जब भइल बिदाई मंगरु क मेहरारू क।
लागल आवे खबर फोन पर सास-ससुर अउर साढ़ू क॥
साली कइलस फोन की जीजा दिदिया के बिदा कइ दीं।
छोटका भयवा जाई लियावे, ओकरा संगे पठवा दीं॥
सुन के प्रान सुखल मंगरु क, मेहरारू नइहर जाई।
बिना प्राणप्यारी क इहवाँ हमसे नाहिं जियल जाई॥
धकधक-धकधक धड़कत छाती, ओठ सूखि के भइल करार।
अंखियन से झर-झर-झर होखे लागल, सावन के बउछार॥
डहक-डहक के मंगरु रोवें, चिला-चिला के बाप रे बाप।
सुबुक-सुबुक समझावे मेहरिया, जल्दी हमें बोलाइब आप॥
रउवा बिना त हमरो जियरा नाहिं लगी नइहरवा में।
रउवा अइसन प्राननाथ हमके जे मिलल ससुरवा में॥
मंगरु-बो गाड़ी में चढ़ली, मंगरु भेंटइं भरि अँकवार।
जुटल महल्ला-टोला समझावे, मंगरु के भरल दुवार॥
लोग लगल बानs मंगरु के समझावे क करस उपाय।
केहु कुछ, केहु कुछ बोले, बारी-बारी से बतियाय॥
जल्दी गंवना क दिन धरिहs, अबहीं तनकी धीर धरs।
सबकर जालीं, तोहरो जात हईं त तनकी सबुर करs॥
गाड़ी घुर्र-घुर्र कइ के चलि दिहलस, देखल सभे निहार।
दुवरे पर मुरझाई मंगरुवा, बइठल हाथे पकड़ कपार॥
- शिब्बू गाजीपुरी,





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