मुकाम युद्ध के
खून से सनी धरती
मानवता के धूप को
हर वक्त है तरसती
ऐसी ही कुछ उपलब्धियां
नाम हैं युद्ध के।
भूखमरी और बेरोज़गारी
लाचारी और महामारी
ऐसे ही कुछ खास
परिणाम हैं युद्ध के।
किसी के अहं और
ज़िद की सरपरस्ती
नफ़रतों के आग
हर दिशा में उगलती
ऐसे ही कुछ मुकाम हैं युद्ध के।
किया भारत ने बहुत बार
युद्ध का सामना स्वीकार
लेकिन कभी किसी देश पर
खुद से किया ना वार
क्यों कि हम समझते हैं
विनाशक अंजाम युद्ध के
युद्ध से हम डरते हैं
ऐसा ना तुम समझना
वसुधैव कुटुंबकम् है
हिंद का सलोना सपना
मगर साक्षी समय रहा है
और जानती है दुनिया
जब जंग दुश्मन चाहे
समझौते से ना माने
किस क़दर लिए हैं
हमने इंतिक़ाम युद्ध के
स्वरचित कविता
बीना राय
ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश
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