मंगलवार, 4 अक्टूबर 2022

भारतीय संस्कृति में नायक ही नहीं खलनायक की भी एक गरिमा होती है- डॉ चन्द्र प्रकाश सिंह जी (लेखक)

-डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह जी ( लेखक )
भारतीय संस्कृति में नायक ही नहीं खलनायक की भी एक गरिमा होती है। भारत के मानस में एक छवि राम की है तो एक छवि रावण की भी है। राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो रावण देवताओं का भी विजेता है। राम और रावण का युद्ध दो अलग-अलग वैचारिकी का युद्ध था। एक लोक को जीवन की मर्यादाओं की शिक्षा देता है तो दूसरा स्वच्छन्द उपभोग की।  एक का मार्ग सामंजस्य, समन्वय और संतुलन का है तो दूसरा प्रकृति की सभी शक्तियों को अपने अधीन करना चाहता है। एक आत्मनिग्रह का साक्षात विग्रह है तो दूसरा अनियंत्रित भोग का। एक लोक-जीवन में धारणा का प्रतीक है, इसलिए 'रामो विग्रहवान् धर्मः' कहा गया तो दूसरा लोक को अपने अहंकार और भोग को तुष्ट करने के लिए सभी संसाधनों के अनियंत्रित और असीमित भोग का प्रतीक है। आधुनिक शब्दावली में यदि राम एकात्म मानववाद के प्रतीक हैं तो रावण पूंजीवाद का प्रतीक है।

रावण सड़क छाप गुण्डा नहीं था और न ही मूर्ख था वह ज्ञान रहित प्रकाण्ड विद्वान था। आज किसी चलचित्र में रावण की भूमिका निभा रहे एक पात्र का चित्र देखने को मिला और देखकर ऐसा लगा कि इससे हमारे खलनायक की मर्यादा का भी हनन हो रहा है। जैसा जेहादी मनोभाव को प्रदर्शित करने वाले रावण को प्रदर्शित किया गया है हम ऐसे रावण की भी कल्पना नहीं करते। रामनन्द सागर जी के रामयण धारावाहिक में अरविन्द त्रिवेदी ने जैसी भूमिक का निर्वहन किया था वह रावण की मर्यादा की एक आदर्श भूमिका थी। हमें रावण भी हमारी सांस्कृतिक मर्यादा के अनुरूप चाहिए। ऐसे चलचित्रों के माध्यम से  केवल हमारे नायक ही नहीं अपितु खलनायक की मर्यादा के हनन का प्रयास हो रहा है। इन मजहबी लोगों के दुष्चक्र से हमें अपने नायकों के ही नहीं खलनायकों के चरित्र की भी रक्षा करनी होगी। जैसे हमें हमारे श्रीराम चाहिए वैसे ही हमें हमारा ही रावण चाहिए कोई अरब छाप रावण का विद्रूप स्वरूप स्वीकार नहीं हो सकता।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें