राम बहादुर राय ( भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश):----
हिंद केसरी मंगला राय जी शाकाहारी थे:-
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मंगला राय जी को शुरुआती प्रसिद्धि तभी मिल गई थी जब वो रंगून से अपने वतन वापस लौट कर आए थे। वापस आते ही उन्होंने उत्तर भारत के मशहूर पहलवान मुस्तफा हुसैन को अखाड़े में ललकारा। इलाहाबाद में हुई इस कुश्ती में मुस्तफा ने इस नौजवान को शुरु में हल्के में लिया लेकिन जब इस नौजवान ने जब मुस्तफा के खतरनाक दांव को काटकर अपना प्रिय दांव ‘टांग’ और ‘बहराली’ का प्रहार किया तो महाबली मुस्तफा भहराकर चारो खाने चित हो गया। दर्शकों को सांप सूंघ गया। किसी को अपनी आंखो पर यकीन ही नहीं हो रहा था। लेकिन राय साहब ने तो संयुक्त प्रांत में कुश्ती का इतिहास पलट दिया था। भारतीय कुश्ती में एक नए सितारे ने रोशनी बिखेर दी थी। मंगला राय की प्रसिद्धि जंगल की आग की तरह फैल गई। नतीजा ये हुआ कि बत्तीस साल के मंगला राय को साल भर के भीतर लगातार 100 कुश्तियां लड़नी पड़ी। महाबली मुस्तफा को पटकने के बाद महामल्ल मंगला राय से हर तीसरे-चौथे रोज कोई न कोई पहलवान भिड़कर जोर आजमाइश करना चाहता था। सिलसिला लंबा चला लेकिन लगातार धूल चाटने के बाद उत्तर भारत के पहलवानों का हौसला पस्त हो गया। इसके बाद पटियाला,पंजाब के रुस्तम-ए-हिंद केसर सिंह चीमा ने मंगला राय से अखाड़े में हाथ मिलाया। दोनों महामल्ल सूरमा एक दूसरे से भिड़ गए। अखाड़े की दहलीज थरथराने लगी। लोगों की सांसे थम गईं। दोनो भीमकाय योद्धाओं को समा पाने में वो अखाड़ा छोटा पड़ने लगा। दोनों ताल ठोंकते तो बादल की गड़गड़ाहट फीकी पड़ने लगती। कोई नतीजा नहीं निकला और दंगल बराबरी पर छूट गया। मंगल राय जी ने बाद में कहा था कि ये कुश्ती गंगा के किनारे खुले रेत में होनी चाहिए तभी इसका कोई फैसला हो पाएगा। लेकिन बाद में बहुत कम लोग मंगला राय जी को चुनौती देने की हिम्मत जुटा पाए।
मंगला राय जी प्रतिदिन जो अभ्यास करते थे उसके बारे में सुनकर ही कई पहलवानों का कलेजा कांप जाता था। खुद राय साहब के मुताबिक वो रोजाना चार हजार बैठकें और ढाई हजार दंड लगाते थे। इसके बाद वो 25 धुरंधरों से तीन-तीन बार कुश्ती लड़ते थे। बाद में दौड़ने रस्सी चढ़ने और मुगदर भांजने की कसरतें वो अलग से करते थे। इतना सुनकर भला कौन पहलवान उनसे हाथ मिलाने का साहस कर पाता। 6 फीट लंबे 131 किलो वजनी भीमकाय कदकाठी के बावजूद मंगला राय जी पूरे सात्विक और शाकाहारी व्यक्ति थे। उनके आहार में आधा किलो घी, आठ लीटर दूध और एक किलो बादाम शामिल था।
मंगला राय का मानना था कि गुरु तो कोई भी बन सकता है लेकिन सच्चा गुरु वही है जो अपने शिष्यों को शिक्षा के साथ उनकी देखभाल भी वैसे ही करे जैसे वो अपनी संतान का करता है। और इस मायने में राय साहब एक आदर्श गुरु थे। बाद के दिनों में जब उन्होंने कुश्ती से संन्यास ले लिया तो उनको नौजवान पहलवानों को देखकर ग्लानि होती थी। उनका मानना था कि आज के पहलवान कुश्ती-कला के बुनियादी उसूलों से भटककर फैशनपरस्त हो गए हैं। उनमें सिर्फ नाम और दौलत कमाने की ललक रह गई है। जबकि एक पहलवान का जीवन योगी के मानिंद होना चाहिए। शायद सही थे मंगला राय जी नमन् !!!
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